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पानी को लेकर पंजाब और सिंध प्रांत के बीच बढ़ा बबाल! जानिए पाकिस्तान के चोलिस्तान नहर प्रोजेक्ट पर क्यों छिड़ी है रार?

चोलिस्तान नहर प्रोजेक्ट को लेकर सिंध-पंजाब में टकराव तेज, सिंध में हिंसक प्रदर्शन। लोग इसे पानी पर पंजाब की दादागिरी मान रहे हैं।
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पाकिस्तान में सिंधु नदी के पानी को लेकर सिंध और पंजाब प्रांतों के बीच खुली लड़ाई छिड़ गई है। चोलिस्तान नहर प्रोजेक्ट, जिसके तहत सिंधु का पानी पंजाब के रेगिस्तानी इलाके में ले जाने की योजना है, ने सिंध प्रांत में भारी विरोध को जन्म दिया है। बुधवार को हुए हिंसक प्रदर्शनों में दो लोगों की मौत हो गई, जबकि सिंध के गृह मंत्री के घर पर हमला कर उसे आग के हवाले कर दिया गया। सिंध के लोगों का आरोप है कि यह प्रोजेक्ट उनके हक के पानी को छीनकर पंजाब के कॉरपोरेट फार्मिंग हितों को सौंप देगा, जिससे पूरे प्रांत में भयावह सूखे की स्थिति पैदा हो जाएगी।

क्या है चोलिस्तान नहर प्रोजेक्ट?

दरअसल चोलिस्तान नहर प्रोजेक्ट पाकिस्तान सरकार की एक महत्वाकांक्षी योजना है जिसके तहत सिंधु नदी के पानी को 175 किलोमीटर लंबी छह नहरों के जरिए पंजाब के चोलिस्तान रेगिस्तान तक पहुंचाया जाएगा। इस 783 मिलियन डॉलर के प्रोजेक्ट का मकसद 1.2 मिलियन एकड़ बंजर जमीन को उपजाऊ बनाना बताया जा रहा है।

पाकिस्तानी राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी और प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने इस प्रोजेक्ट को हरी झंडी दिखाई है, जबकि सेना प्रमुख आसिम मुनीर भी इसका समर्थन करते नजर आए हैं। हालांकि, सिंध प्रांत के लोगों का मानना है कि यह प्रोजेक्ट उनके हक के पानी को छीनकर पंजाब के बड़े जमींदारों और कॉरपोरेट घरानों को दे देगा।

सिंध प्रांत क्यों हो रहा है आग बबूला?

सिंध प्रांत में चोलिस्तान नहर प्रोजेक्ट का जबरदस्त विरोध हो रहा है क्योंकि यहां के लोगों को डर है कि इससे उनके हिस्से का पानी छिन जाएगा। सिंधु नदी सिंध प्रांत की जीवनरेखा है जिस पर यहां की 90% आबादी की पीने के पानी और सिंचाई की जरूरतें निर्भर हैं। प्रदर्शनकारियों का कहना है कि अगर यह प्रोजेक्ट चालू हुआ तो सिंध वही हालात झेलेगा जो आज पंजाब का चोलिस्तान रेगिस्तान झेल रहा है। सिंध के किसान संगठनों, मजदूर यूनियनों और सिविल सोसाइटी का आरोप है कि यह प्रोजेक्ट पंजाब के बड़े जमींदारों और सेना के हितों को ध्यान में रखकर बनाया गया है, जबकि सिंध के आम लोगों को इसकी कीमत चुकानी पड़ेगी।

भारत के सिंधु जल समझौता रद्द होने से इसका क्या संबंध?

चोलिस्तान नहर प्रोजेक्ट की सफलता काफी हद तक भारत-पाकिस्तान के बीच 1960 में हुए सिंधु जल समझौते (IWT) पर निर्भर करती है। इस समझौते के तहत पाकिस्तान को सिंधु, झेलम और चिनाब नदियों का अधिकार मिला था, जबकि भारत को सतलुज, रावी और व्यास नदियों का नियंत्रण दिया गया था।

Operation Sindoor

हालांकि, भारत ने हाल में इस समझौते को स्थगित कर दिया है और अब पाकिस्तान के लिए सिंधु नदी के पानी की उपलब्धता एक बड़ा सवाल बन गई है। पाकिस्तानी अधिकारियों का दावा है कि वे सतलुज नदी के बाढ़ के पानी का उपयोग करेंगे, लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि यह एक अविश्वसनीय योजना है जो भारत के रुख पर निर्भर है।

क्यों फंस गया है चोलिस्तान प्रोजेक्ट?

बता दें कि चोलिस्तान नहर प्रोजेक्ट ने पाकिस्तान की अंदरूनी राजनीति में नया विवाद खड़ा कर दिया है। एक तरफ जहां पंजाब के नेताओं और सेना इस प्रोजेक्ट का समर्थन कर रही है, वहीं सिंध के राजनीतिक दल इसे प्रांत के साथ "धोखा" बता रहे हैं। पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी (PPP) के नेता बिलावल भुट्टो ने सरकार पर सिंध के हितों की अनदेखी करने का आरोप लगाया है। दिलचस्प बात यह है कि पाकिस्तान की काउंसिल ऑफ कॉमन इंटरेस्ट (CCI) ने इस प्रोजेक्ट को रद्द कर दिया था, लेकिन सरकार ने इसे फिर से शुरू कर दिया है, जिससे सिंध की जनता का गुस्सा और भड़क उठा है।

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