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न्यायपालिका की आजादी बनाम सरकारी दखल! NJAC कानून पर फिर उठे सवाल, क्या बदलेगा संविधान संतुलन?

जस्टिस वर्मा के घर जली हुई नोटों की गड्डी मिलने की खबर ने हलचल मचा दी है। इस घटनाक्रम के बाद राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ ने परोक्ष रूप से नेशनल ज्यूडिशियल अपॉइंटमेंट कमीशन...
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Supreme Court NJAC verdict: जस्टिस वर्मा के घर जली हुई नोटों की गड्डी मिलने की खबर ने हलचल मचा दी है। इस घटनाक्रम के बाद राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ ने परोक्ष रूप से नेशनल ज्यूडिशियल अपॉइंटमेंट कमीशन (NJAC) कानून का ज़िक्र किया—जिसे सुप्रीम कोर्ट ने 2015 में असंवैधानिक ठहराया था। (Supreme Court NJAC verdict) उन्होंने कहा कि यदि वह कानून आज अस्तित्व में होता, तो शायद हालात कुछ और होते। धनखड़ ने यह भी याद दिलाया कि संसद के दोनों सदनों ने उस कानून को सर्वसम्मति से पारित किया था, और अब यह सोचने की ज़रूरत है कि उस कानून का क्या हश्र हुआ।

NJAC कानून की वापसी मुमकिन है?

दिल्ली हाईकोर्ट में सामने आए विवाद के बाद NJAC कानून पर एक बार फिर से बहस तेज हो गई है। अब बड़ा सवाल यह है कि क्या केंद्र सरकार इस निष्क्रय कानून को दुबारा लाने की तैयारी में है...एक ऐसा कानून जिसे सुप्रीम कोर्ट ने 2015 में अंसवैधानिक करार देया था...क्या उसे फिर से संसद में पेश कर पास किया जा सकता है, और अगर ऐसा होता है तो क्या शीर्ष अदालत फिर उस कानून की समीक्षा करेगी। यहां सबसे अहम सवाल यह भी है कि सात साल पहले रद्द हो चुके NJAC कानून को दोबारा लाने की जरूरत क्यों महसूस की जा रही है।

1993 से पहले कैसी थी जजों की नियुक्ति प्रक्रिया?

कलीजियम सिस्टम से पहले जो नियुक्ति प्रक्रिया थी, उसके तहत कानून मंत्रालय नए जजों के नाम सुझाता, देश के मुख्य न्यायाधीश (CJI) उस बारे में अपना विचार देते थे और फिर नाम राष्ट्रपति के पास भेजे जाते। 1993 में सुप्रीम कोर्ट की 9 जजों की बेंच ने आदेश पारित कर कलीजियम सिस्टम की शुरुआत की। इसमें हाईकोर्ट के जजों की नियुक्ति के लिए हाईकोर्ट कलीजियम नाम भेजता है। इन नामों पर सुप्रीम कोर्ट कलीजियम विचार करता है। वहीं सुप्रीम कोर्ट के जजों की नियुक्ति के लिए यह काम सुप्रीम कोर्ट कलीजियम करता है। वह ये नाम सरकार को भेजता है और तब सरकार की ओर से नाम राष्ट्रपति के पास भेजे जाते हैं। सुप्रीम कोर्ट कलीजियम में CJI और चार सीनियर जस्टिस होते हैं।

जजों की नियुक्ति की नई व्यवस्था का खाका

 2014 में जब BJP सत्ता में आई, तब नैशनल जुडिशल अपॉइंटमेंट कमिशन (NJAC) एक्ट लाया गया। इसके तहत छह लोगों का एक कमिशन बनाया गया, जो जजों के नाम का चयन करता और फिर राष्ट्रपति की मंजूरी से उन्हें जज बनाया जाता। प्रस्तावित आयोग में CJI, दो सुप्रीम कोर्ट के जज, कानून मंत्री और दो जाने-माने व्यक्तित्वों को शामिल करने की बात थी। इन दो नामों का चयन उच्चस्तरीय समिति को करना था, जिसमें प्रधानमंत्री, CJI और विरोधी दल के नेता को रखा गया था। NJAC के लिए संविधान में भी संशोधन किया गया।

जुडिशियल स्वतंत्रता पर खतरा

16 अक्टूबर 2015 को सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की संवैधानिक बेंच ने संविधान संशोधन कानून और NJAC एक्ट दोनों को असंवैधानिक करार देते हुए खारिज कर दिया। अदालत ने कहा कि जजों की नियुक्ति का अधिकार जुडिशरी का है और यह बेसिक स्ट्रक्चर का पार्ट है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि NJAC के कारण जुडिशरी की स्वतंत्रता प्रभावित होती है। अदालत का कहना था कि जजों की नियुक्ति के लिए बने आयोग में गैर-जज सदस्यों की भूमिका CJI और दो सीनियर मोस्ट जजों के बराबर रखी गई है, जजों की भूमिका के बराबर अन्य किसी का रोल नहीं हो सकता।

चूंकि सुप्रीम कोर्ट 2015 में कह चुका है कि NJAC असंवैधानिक है, इसलिए NJAC या इस तरह के किसी भी कानून का जुडिशल स्क्रूटनी में टिकना मुश्किल होगा। कारण यह है कि 13 जजों की बेंच द्वारा केशवानंद भारती केस में दिया गया फैसला लॉ ऑफ दि लैंड यानी देश का कानून है जिसके तहत संसद को संविधान संशोधन का अधिकार तो है, लेकिन मूल ढांचे में बदलाव लाने का अधिकार नहीं।

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