मुंबई का जिन्ना हाउस, बंटवारे का गवाह और विरासत का प्रतीक, अब सरकार लेने जा रही है बड़ा निर्णय
Jinnah House: मोहम्मद अली जिन्ना ने 1936 में मुंबई के मालाबार हिल पर अपने लिए एक शानदार बंगला बनवाया था। जिन्ना ने अपने इस बंगले का नाम साउथ कोर्ट रथा था। अब यह बंगला फिर से नया होने जा रहा है। जानकारी के अनुसार विदेश मंत्रालय (MEA) से इसकी आखिरी मंजूरी का इंतजार है। मंजूरी मिलते ही जिन्ना के बंगले के मैंटीनेंस का काम शुरू हो जाएगा।
मुंबई हेरिटेज कंजर्वेशन कमेटी (MHCC) ने अगस्त 2023 में इस विरासत स्थल (ग्रेड II A हेरिटेज साइट) की मरम्मत को मंजूरी दे दी थी। (Jinnah House) विदेश मंत्रालय ने यह काम केंद्रीय लोक निर्माण विभाग (CPWD) को सौंपा है, और उन्होंने सर जेजे कॉलेज ऑफ आर्किटेक्चर को इस प्रोजेक्ट का सलाहकार बनाया है। खास बात यह है कि जिन्ना के इस आर्ट डेको स्टाइल वाले घर को क्लाउड बैटली ने डिजाइन किया था, जो उस समय जेजे स्कूल ऑफ आर्ट्स में आर्किटेक्चर विभाग के प्रमुख ।
2023 में हेरिटेज कमेटी ने किया था दौरा
2023 के मध्य में जब हेरिटेज कमेटी ने साइट का दौरा किया था तब उन्होंने सलाह दी थी कि पुराने फर्नीचर, झूमर, फिटिंग्स और बाकी सामान को ठीक करके फिर से इस्तेमाल किया जाए. उन्होंने यह भी कहा था कि बंगले की चारदीवारी को पहले की तरह पत्थर से बनाया जाए ताकि वह पुराने डिज़ाइन से मेल खाए। परियोजना से जुड़े लोगों का कहना है कि सारी जरूरी मंजूरियां और योजनाएं तैयार हैं, लेकिन अब केंद्र सरकार से अंतिम हरी झंडी का इंतजार है ताकि काम शुरू किया जा सके। दस्तावेजों के अनुसार, विदेश मंत्रालय (MEA) ने अभी तक बंगले के किसी भी हिस्से में कोई बदलाव नहीं किया है और न ही ज्यादा निर्माण की मांग की है. लेकिन ये कहा गया है कि भारत की पहचान, इतिहास और संस्कृति को दिखाने के लिए अंदर कुछ सौंदर्य से जुड़े बदलाव किए जा सकते हैं।
1500 करोड़ का बंगला
जिन्ना हाउस का असील नाम तो साउथ कोर्ट है। लेकिन अंग्रेजी राज में बंटवारे के दौरान इसे जिन्ना हाउस कहा जाने लगा और तब से वही प्रचलन में है। इसे जिन्ना ने 1936 में अपने रहने के लिए बहुत मन से बनवाया था, लेकिन फिर वह देश विभाजन के एजेंडे पर आगे बढ़े तो भारत उनके जेहन से छूट गया और भौतिक रूप से भी छूटना ही था। फिर उनका यह घर मुंबई में भारत सरकार की संपत्ति बन गया, जबकि उनकी बेटी दीना वाडिया मरते दम तक इस पर हक पाने के लिए मुकदमा लड़ती रहीं। 2018 में इस बंगले को भारत सरकार ने विदेश मंत्रालय को सौंपा था, जबकि उससे पहले भारत संस्कृति संबंध परिषद के पास था। इस बंगले को 2 लाख रुपये की लागत से तैयार कराया गया था, लेकिन वर्तमान में इसकी कीमत 1500 करोड़ रुपये है।
जिन्ना को यह बंगला लौटाना चाहते थे नेहरू
भारत विभाजन के पश्चात इस बंगले को शत्रु संपत्ति घोषित किया गया, जैसा उन तमाम संपत्तियों के साथ हुआ था, जिनके मालिक पाकिस्तान चले गए थे। फिर भी कहा जाता है कि नेहरू इस बंगले को मोहम्मद अली जिन्ना को लौटा देना चाहते थे। इसके अलावा एक विकल्प यह भी था कि जिन्ना की सहमति से किसी यूरोपियन को वहां किराये पर रहने दिया जाए। लेकिन जिन्ना की 1948 में मौत हो गई और नेहरू इस बंगले को लेकर कोई फैसला नहीं कर पाए। अंत में 1949 में इस बंगले को भारत सरकार ने अपने नियंत्रण में ले लिया। 1981 तक यहां से ब्रिटिश हाई कमिशन चला, उसके शिफ्ट होने के बाद पाकिस्तान सरकार ने मांग की थी कि हमें कौनसुलेट दफ्तर यहां से चलाने की परमिशन मिले।
क्यों बेटी को भी नहीं मिल पाया जिन्ना का बंगला
मोहम्मद अली जिन्ना ने 1939 में अपनी वसीयत लिख दी थी। इसमें उन्होंने कहा था कि उनकी सारी संपत्ति की मालिक उनकी बहन फातिमा जिन्ना होंगी। वजह थी कि बेटी दीना वाडिया के पारसी से शादी करने से वह खफा थे। फिर जब विभाजन हुआ तो उनकी बहन फातिमा भी साथ में पाकिस्तान चली गईं। ऐसे में बंगला शत्रु संपत्ति घोषित होना ही था। लेकिन उनकी बेटी दीना वाडिया ने इसे पाने के लिए कानूनी लड़ाई लड़ी। उनका कहना था कि वह बेटी हैं और कानूनी वारिस हैं। यहां तक कि उनकी दलील थी कि जिन्ना की संपत्ति में हिंदू उत्तराधिकार नियम लागू होना चाहिए क्योंकि दो पीढ़ी पहले ही जिन्ना का परिवार हिंदू था।
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