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धरती हिली, बैंकॉक दहला, लेकिन भारत पर असर क्यों नहीं? भूकंप का चौंकाने वाला सच आया सामने!

प्रकृति के कहर से कोई नहीं बच सकता, लेकिन कई बार भौगोलिक संरचनाएं किसी देश को तबाही से बचा लेती हैं। म्यांमार में आए...
07:26 PM Mar 28, 2025 IST | Rajesh Singhal

Earthquake News: प्रकृति के कहर से कोई नहीं बच सकता, लेकिन कई बार भौगोलिक संरचनाएं किसी देश को तबाही से बचा लेती हैं। म्यांमार में आए 7.2 तीव्रता के भूकंप ने वहां भयानक तबाही मचाई, थाइलैंड की राजधानी बैंकॉक तक इमारतें हिल गईं, जान-माल का नुकसान हुआ। लेकिन आश्चर्य की बात यह है कि म्यांमार के सगाइंग क्षेत्र से महज 300KM दूर भारत पूरी तरह सुरक्षित रहा, जबकि बैंकॉक, जो 1300KM दूर था, वहां भी भारी नुकसान हुआ। (Earthquake News) आखिर ऐसा क्यों हुआ? जब म्यांमार से सटा भारत का पूर्वोत्तर इलाका भूकंप के झटके महसूस कर रहा था, तब कोई बड़ा नुकसान क्यों नहीं हुआ? इसका जवाब धरती की संरचना, प्लेट टेक्टोनिक्स और भौगोलिक स्थिति में छिपा है। आइए...इस रहस्य को विस्तार से समझते हैं।

टेक्टोनिक प्लेटों के टकराव से पैदा होता है भूकंप

म्यांमार और भारत की स्थितियां पूरी तरह से अलग हैं। म्यांमार मुख्य रूप से सुंडा प्लेट और बर्मा माइक्रोप्लेट पर स्थित है, जबकि भारत भारतीय प्लेट पर स्थित है। दोनों प्लेटों के बीच सबडक्शन जोन (Subduction Zone) होता है, जहां भारतीय प्लेट म्यांमार की बर्मा माइक्रोप्लेट के नीचे दबती है। यही टकराव भूकंप का कारण बनता है, लेकिन भारत में इस टकराव का असर धीमा और सीमित होता है।

भूकंप की गहराई का असर

भूकंप का केंद्र म्यांमार में था, और उस समय भूकंप की गहराई अधिक थी। गहरे भूकंप की तरंगें जब धरती की सतह तक पहुंचती हैं, तो उनकी ऊर्जा घट जाती है, और इस वजह से भारत में महसूस किए गए झटके कम तीव्र थे। म्यांमार में, जहां भूगर्भीय संरचना कमजोर थी, भूकंप के झटके अधिक महसूस हुए, लेकिन भारत में यह असर कम रहा।

भारत में भूकंप-रोधी उपाय...सतर्कता

भारत के पूर्वोत्तर क्षेत्र में भूकंप का खतरा हमेशा बना रहता है। ऐसे में यहां के लोग और प्रशासन पहले से सतर्क रहते हैं। भूकंप-रोधी निर्माण तकनीकें जैसे मजबूत इमारतें और द्रुत आपातकालीन उपाय भी नुकसान को कम करने में मदद करते हैं। वहीं, म्यांमार में इस तरह की तैयारियां कम होने की वजह से वहां ज्यादा तबाही मच गई।

दूरी... ऊर्जा का असर

भूकंप के केंद्र से दूरी भी एक महत्वपूर्ण कारण है। म्यांमार में भूकंप का केंद्र 7.2 की तीव्रता के साथ था, जबकि भारत इस केंद्र से करीब 300 किलोमीटर दूर स्थित था। भूकंप की तरंगें जब दूरी तय करती हैं तो उनकी ऊर्जा कम हो जाती है। इस वजह से भारत में जितने भी झटके महसूस हुए, उनकी तीव्रता कम रही। भूकंप के झटके अलग-अलग दिशाओं में फैलते हैं। म्यांमार में जहां तरंगों का मुख्य प्रभाव पड़ा, वहीं भारत में इसकी ऊर्जा कुछ कम हुई। भूकंप की दिशा और ऊर्जा के प्रवाह की वजह से भारत में ज्यादा नुकसान नहीं हुआ।

म्यांमार और भारत के बीच भूकंपीय अंतर

म्यांमार में आए इस भूकंप के बाद थाईलैंड की राजधानी बैंकॉक में भारी तबाही मच गई, लेकिन भारत में बहुत कम असर पड़ा। इसका मुख्य कारण दोनों देशों की भूकंपीय संरचनाओं में अंतर है। भारत में सतर्कता और भूकंप-रोधी उपायों की वजह से नुकसान को कम किया जा सका। भूकंप के झटके म्यांमार में अधिक महसूस हुए, क्योंकि वहां की जमीन कमजोर और ढीली थी। वहीं भारत की चट्टानी भू- संरचना और भूकंप की गहराई ने इस प्राकृतिक आपदा के असर को काफी हद तक कम कर दिया।

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