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नेहरू-अंबेडकर विवाद या साजिश? संविधान समिति में कैसे पहुंचे बाबा साहेब, सामने आई सच्चाई!

संविधान निर्माता और भारत के पहले कानून मंत्री डॉ. भीमराव अंबेडकर का आज 135वां जन्मदिन है। हाल ही में कुछ नेताओं ने दावा किया कि नेहरू ने उन्हें संविधान प्रारूप समिति का अध्यक्ष बनाने...
03:31 PM Apr 14, 2025 IST | Rajesh Singhal

Dr. Bhim Rao Ambedkar: संविधान निर्माता और भारत के पहले कानून मंत्री डॉ. भीमराव अंबेडकर का आज 135वां जन्मदिन है। हाल ही में कुछ नेताओं ने दावा किया कि नेहरू ने उन्हें संविधान प्रारूप समिति का अध्यक्ष बनाने का विरोध किया था। लेकिन ऐतिहासिक तथ्य इसके उलट हैं। दरअसल, अंबेडकर को समिति में शामिल करने और अध्यक्ष बनाने का सुझाव राजेंद्र प्रसाद, नेहरू और गांधी ने दिया था। 29 अगस्त 1947 को समिति बनी और अगले दिन अंबेडकर सर्वसम्मति से अध्यक्ष चुने गए। (Dr. Bhim Rao Ambedkar) भारतीय संविधान, यानी की दुनिया का सबसे बड़ा संविधान। जब-जब संविधान की बात की जाती है, तब-तब चर्चा होती है बाबा साहेब डॉक्टर भीमराव अंबेडकर की। उन्हें संविधान निर्माता भी कहा जाता है, लेकिन महान दलित नेता भी रहे हैं। आज जन-जन के हृदय में बसने वाले डॉक्टर भीमराव अंबेडकर को भी उस दौरान राजनीति का शिकार होना पड़ा था।

संविधान सभा में अंबेडकर की एंट्री रोकने की साजिश!

डॉक्टर अंबेडकर के खिलाफ कुछ इस तरह की राजनीतिक साजिश की गई कि वह संविधान सभा के सदस्य ही ना बन पाएं। जिस व्यक्ति को आज समाज भारत के संविधान निर्माता के तौर पर देखता है, उस व्यक्ति को पहले संविधान सभा उसके बाद लोकसभा में पहुंचने नहीं देने की साजिश रची गई। इसका आरोप तत्कालीन कांग्रेस सरकार और उसके मुखिया पंडित जवाहरलाल नेहरू के ऊपर लगाता रहा है।

इसकी शुरुआत होती है देश के बन रहे संविधान सभा में डॉक्टर अंबेडकर को नहीं पहुंचने देने से। कांग्रेस ने उस समय कुछ ऐसा किया कि डॉक्टर अंबेडकर अपने गृह प्रदेश महाराष्ट्र से संविधान सभा में ना पहुंच सके। हालांकि, डॉक्टर अंबेडकर कहां हार मानने वाले थे। वो अपने सहयोगी और बंगाल के दलित नेता योगेन्द्र नाथ मंडल के सहयोग से संविधान सभा के सदस्य बन गए।

जी हां, डॉक्टर भीमराव अंबेडकर बंगाल के जिस क्षेत्र से संविधान सभा के सदस्य बने थे, उस क्षेत्र को हिंदू बहुल होने के बावजूद पंडित जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व वाली सरकार के द्वारा एक समझौते में पाकिस्तान में शामिल करा दिया गया था। अब अंबेडकर की सदस्यता पर खतरा मंडराने लगा। किसी तरह से डॉक्टर अंबेडकर ने अपनी संविधान की सदस्यता बचाई और महाराष्ट्र से सदन में पहुंचे।

दलित नेता को बड़ा पद देने पर क्याें घबराए रूढ़िवादी नेता ?

जब डॉ. भीमराव अंबडेकर को संविधान सभा की प्रारुप समिति का अध्यक्ष बनाया गया, तो हल्का फुल्का विरोध भी सामने आया। यह विरोध मुख्यतर: हिंदू महासभा और कुछ उच्च वर्ग के नेताओं की ओर से था, जिन्हें अंबेडकर का दलित समुदाय से होना स्वीकार नहीं था। उस दौर के रूढ़िवादी समाज में यह बात कई लोगों को नागवार गुजरी कि एक दलित नेता को इतने अहम पद की जिम्मेदारी सौंपी जाए, जो देश के भविष्य का स्वरुप तय करने वाली थी।

क्या नेहरू ने किया था डॉ अंबेडकर का विरोध?

संविधान निर्माण की प्रकिया में डॉ. भीमराव अंबेडकर की भूूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण रही। संविधान प्रारुप समिति जिसकी स्थापना 29 अगस्त 1947 को हुई थी, जिसमें कुल 7 सदस्य थे..डॉ.अंबेडकर अध्यक्ष , एन. गोपालस्वामी आयंगर, अल्लादी कृष्णस्वामी अय्यर, के एम मुंशी , मोहम्मद सादुल्ला, बी. एल.मिटर (बाद में एन माधव राव), और देवी प्रसाद खैतान (बाद में टी.टी.कृष्णमाचारी )। समिति के अध्यक्ष पद के लिए अय्यर और मुंशी जैसे विशेषज्ञों के नाम भी चर्चा में थे, लेकिन डॉ अंबेडकर की कानूनी विद्वता और समाजिक दृष्टिकोण के कारण उन्हें सर्वसम्मति से अध्यक्ष चुना गया।

ऐतिहासिक दस्तावेजों में यह प्रमाण नहीं मिलता कि नेहरू ने अंबेडकर की नियुक्ति का विरोध किया। इसके विपरीत, नेहरू और पटेल ने उन्हें संविधान सभा में लाने में अहम भूमिका निभाई। जब अंबेडकर बंबई से चुनाव हार गए थे, तो उन्हें बंगाल से चुना गया, जिसके पीछे कांग्रेस और दलित नेता योगेन्द्र नाथ मंडल का सहयोग था।

ग्रैनविल ऑस्टिन और अशोक गोपाल जैसी प्रामाणिक पुस्तकों में अंबेडकर की नियुक्ति का समर्थन गांधी और नेहरू से जुड़ा बताया गया है। अंबेडकर की विशेषज्ञता, प्रतिबद्धता और दृष्टिकोण ने भारतीय संविधान को एक मजबूत नींव दी।

 

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