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AFSPA Extension: गृह मंत्रालय का बड़ा फैसला! मणिपुर, नागालैंड, अरुणाचल में AFSPA बढ़ा, क्यों लिया गया ये कड़ा कदम?

पूर्वोत्तर के तीन राज्यों....मणिपुर, नगालैंड और अरुणाचल प्रदेश में AFSPA (आर्म्ड फोर्सेज स्पेशल पावर्स एक्ट) को छह महीने के लिए बढ़ा दिया गया है...
04:52 PM Mar 30, 2025 IST | Rajesh Singhal

AFSPA Extension: पूर्वोत्तर के तीन राज्यों....मणिपुर, नगालैंड और अरुणाचल प्रदेश में AFSPA (आर्म्ड फोर्सेज स्पेशल पावर्स एक्ट) को छह महीने के लिए बढ़ा दिया गया है। गृह मंत्रालय ने इसे लेकर एक नई अधिसूचना जारी की है। अधिसूचना के अनुसार, मणिपुर के 13 पुलिस थानों को छोड़कर बाकी पूरे राज्य में AFSPA लागू रहेगा। (AFSPA Extension)इसी तरह, नगालैंड के 8 जिलों और अरुणाचल प्रदेश के तीन जिलों में भी यह कानून प्रभावी रहेगा। इस फैसले के बाद एक बार फिर इस विवादास्पद कानून पर बहस छिड़ गई है।

मणिपुर में क्यों जरूरी था AFSPA का विस्तार?

मणिपुर में बीते दो साल से हिंसा जारी है। कभी हिंसा थमती है, तो कभी बढ़ जाती है, लेकिन हालात अब तक पूरी तरह सामान्य नहीं हो पाए हैं। मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह के इस्तीफे के बाद राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू है, बावजूद इसके हिंसा की घटनाएं थम नहीं रही हैं। हाल ही में कई जातीय संघर्ष के मामले सामने आए हैं, जिससे प्रशासन की चिंता बढ़ गई थी। ऐसे में केंद्र सरकार ने कानून-व्यवस्था को बनाए रखने के लिए AFSPA को और 6 महीने तक बढ़ाने का फैसला किया है।

क्या है AFSPA और इसका इतिहास?

AFSPA का मतलब आर्म्ड फोर्सेज स्पेशल पावर्स एक्ट है, जो 1958 में लागू किया गया था। इस कानून के तहत, किसी भी क्षेत्र को अशांत क्षेत्र (Disturbed Area) घोषित किया जा सकता है, जहां सेना और अर्धसैनिक बलों को विशेष शक्तियां मिलती हैं।

ब्रिटिश सरकार ने इसे 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन को दबाने के लिए लागू किया था। आजादी के बाद, प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने इसे जारी रखने का फैसला किया और इसे 1958 में कानून का रूप दिया गया। इस कानून का उद्देश्य उन क्षेत्रों में शांति व्यवस्था बनाए रखना है, जहां उग्रवाद और हिंसा की घटनाएं लगातार होती हैं।

AFSPA से जुड़े विवाद और आलोचना

AFSPA हमेशा से विवादों में रहा है। इसकी सबसे ज्यादा आलोचना मानवाधिकार संगठनों और विपक्षी दलों द्वारा की जाती है।

विशेषाधिकार: यह कानून सेना को बिना वारंट किसी को भी गिरफ्तार करने, घरों की तलाशी लेने और जरूरत पड़ने पर गोली चलाने का अधिकार देता है।

लोकतंत्र के खिलाफ: कई लोगों का मानना है कि यह लोकतांत्रिक मूल्यों के खिलाफ है और आम नागरिकों की स्वतंत्रता का हनन करता है।

मानवाधिकार हनन के आरोप: सेना के विशेषाधिकारों की वजह से कई बार फर्जी मुठभेड़ों, बलात्कार और मानवाधिकार उल्लंघन के मामले सामने आए हैं, जिससे यह कानून विवादित बना हुआ है।

 

पूर्वोत्तर में AFSPA कब-कब हटा?

हालांकि, कुछ राज्यों से AFSPA को धीरे-धीरे हटाया भी गया है। पंजाब पहला राज्य था, जहां 1997 में AFSPA हटा दिया गया। त्रिपुरा में इसे 2015 में हटा दिया गया। मेघालय में भी 2018 में AFSPA खत्म कर दिया गया। लेकिन नगालैंड, मणिपुर, असम और अरुणाचल प्रदेश के कुछ हिस्सों में यह अब भी लागू है।

सरकार का क्या कहना है?

गृह मंत्रालय का कहना है कि AFSPA को हटाने का निर्णय पूरी तरह कानून-व्यवस्था पर निर्भर करता है। जब किसी क्षेत्र में उग्रवाद और हिंसा कम हो जाती है, तो इसे हटा दिया जाता है।असम, मणिपुर और नगालैंड में पहले के मुकाबले हिंसा में कमी आई है, लेकिन स्थिति पूरी तरह सामान्य नहीं हुई है। सरकार का मानना है कि जब तक हालात पूरी तरह काबू में नहीं आते, तब तक AFSPA जारी रखना जरूरी है।

क्या आगे भी लागू रहेगा AFSPA?

AFSPA का भविष्य इस बात पर निर्भर करता है कि पूर्वोत्तर के राज्यों में कानून-व्यवस्था कितनी जल्दी सुधरती है। अगर हिंसा और उग्रवाद पूरी तरह खत्म हो जाते हैं, तो इसे धीरे-धीरे हटा दिया जाएगा। फिलहाल, सरकार का कहना है कि AFSPA का विस्तार एक जरूरत है, न कि कोई साजिश।

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