वैज्ञानिकों ने कर दिया नया कारनामा, लाइट को फ्रिज कर बनाया सॉलिड, क्या होगा इसका फायदा
हजारों साल पहले इंसानों ने आग जलाई और फिर कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। धीरे-धीरे विज्ञान के सहारे नई-नई खोजें होती गईं, जिन्होंने हमें बाकी जीवों से अलग बना दिया। अब हमारे लिए कुछ भी नामुमकिन नहीं रहा—हम चंद मिनटों में एक शहर से दूसरे शहर जा सकते हैं, और वो भी हवा में उड़ते हुए!
विज्ञान ने हमें उन रहस्यों से भी पर्दा उठाने में मदद की, जिन्हें पहले लोग चमत्कार या दैवीय शक्ति मानते थे। इसी कड़ी में, हाल ही में इतालवी वैज्ञानिकों ने एक बड़ी कामयाबी हासिल की है—उन्होंने रोशनी (Light) को ठोस पदार्थ में बदलने का तरीका खोज लिया है! यह खोज विज्ञान की दुनिया में एक नई क्रांति ला सकती है।
लाइट को किया फ्रिज
वैज्ञानिकों ने एक बड़ी खोज की है, जो क्वांटम फिजिक्स की दुनिया में नया अध्याय जोड़ सकती है। इस शोध से भविष्य में क्वांटम कंप्यूटिंग और ऑप्टिकल टेक्नोलॉजी में बड़े बदलाव आने की उम्मीद है।
'नेचर' जर्नल में प्रकाशित इस शोध में वैज्ञानिकों ने दिखाया है कि रोशनी को एक खास रूप में बदला जा सकता है, जिससे वह सुपरसॉलिड (यानि सुपर ठोस) की तरह व्यवहार करने लगती है। इसका मतलब है कि प्रकाश ठोस पदार्थ की तरह काम कर सकता है, लेकिन साथ ही उसमें सुपरफ्लुइड की खासियत भी बनी रहती है—यानी वह बिना किसी घर्षण के बह सकता है। यह खोज विज्ञान के लिए बहुत अहम साबित हो सकती है और भविष्य की तकनीकों को नया आकार देने में मदद कर सकती है।
क्या है सुपरसॉलिड?
सुपरसॉलिड एक अनोखी अवस्था होती है, जिसमें कोई पदार्थ बाहर से तो ठोस जैसा दिखता है, लेकिन अंदर से वह बिना किसी रुकावट के बह सकता है, जैसे कोई द्रव। अब तक, वैज्ञानिकों ने सुपरसॉलिडिटी को सिर्फ बोस-आइंस्टीन कंडेन्सेट्स (BEC) में ही देखा था। यह तब बनता है जब किसी पदार्थ को बेहद ठंडा कर दिया जाता है, जिससे उसके सभी परमाणु एक साथ मिलकर एक ही क्वांटम अवस्था में आ जाते हैं। लेकिन हाल ही में हुई एक नई खोज ने दिखाया है कि सिर्फ पदार्थ ही नहीं, बल्कि रोशनी भी इस तरह का अनोखा व्यवहार कर सकती है।
रोशनी को कैसे बदला सॉलिड में?
वैज्ञानिकों ने इस बार पारंपरिक तरीके नहीं अपनाए, जैसे तापमान घटाकर किसी तरल को ठोस में बदलना। इसके बजाय, उन्होंने क्वांटम तकनीक का इस्तेमाल किया।
इस प्रक्रिया में, वैज्ञानिकों ने एक खास सेमीकंडक्टर प्लेटफॉर्म लिया, जो फोटॉनों (प्रकाश कणों) को उसी तरह नियंत्रित कर सकता है, जैसे इलेक्ट्रॉनों को नियंत्रित किया जाता है।
उन्होंने गैलियम आर्सेनाइड नाम की एक सामग्री का उपयोग किया, जिसमें सूक्ष्म लकीरें बनी हुई थीं। फिर, एक लेजर की मदद से उन्होंने पोलारिटॉन नामक कण बनाए। ये कण प्रकाश और पदार्थ का मिश्रण होते हैं।
जब प्रकाश कणों की संख्या बढ़ी, तो वैज्ञानिकों ने देखा कि ये कण एक खास पैटर्न में आपस में जुड़ने लगे। यही संकेत था कि उन्होंने एक सुपरसॉलिड बना लिया है।
इस खोज के क्या हैं मायने?
यह शोध क्वांटम तकनीक के नए दरवाजे खोल सकता है, खासकर क्वांटम कंप्यूटिंग में। अगर सुपरसॉलिड लाइट को नियंत्रित किया जा सके, तो इससे अधिक स्थिर क्वांटम बिट्स (क्यूबिट्स) बनाए जा सकते हैं। इससे क्वांटम कंप्यूटर और ज्यादा ताकतवर और प्रभावी हो सकते हैं।
इस खोज का बड़ा असर ऑप्टिकल उपकरणों, फोटोनिक सर्किट और क्वांटम यांत्रिकी पर पड़ सकता है। आने वाले समय में, यह शोध सिर्फ क्वांटम कंप्यूटर के लिए ही नहीं, बल्कि ऑप्टिकल टेक्नोलॉजी और अन्य विज्ञान क्षेत्रों में भी नई संभावनाएँ खोलेगा।
इस खोज ने विज्ञान की नई राहें खोल दी हैं और आने वाले समय में क्वांटम तकनीक में बड़े बदलाव देखने को मिल सकते हैं। शोधकर्ताओं का मानना है कि भविष्य में इस तकनीक को और विकसित किया जाएगा, जिससे हम सुपरसॉलिड लाइट को और ज्यादा स्थिर और नियंत्रित बना सकेंगे।
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