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क्या ChatGPT नस्लवादी है? Pet To Person ट्रेंड में यूजर्स की काली बिल्ली को बना रहा गोरा, इंटरनेट पर मचा बबाल!

ChatGPT के 'Pet to Person' फीचर पर विवाद, यूजर्स बोले—काले जानवरों को गोरा इंसान दिखा रहा AI, नस्लीय पूर्वाग्रह पर उठे गंभीर सवाल।
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ChatGPT racism controversy: सोशल मीडिया पर इन दिनों 'पैट टू पर्सन' ट्रेंड जबरदस्त वायरल हो रहा है, जहां लोग अपने पालतू जानवरों की तस्वीरों को AI की मदद से इंसानी रूप में बदल रहे हैं। लेकिन ChatGPT का यह मजेदार फीचर अचानक विवादों में घिर गया है। दरअसल, कई यूजर्स ने नोटिस किया कि AI टूल काले रंग के जानवरों को इंसानी रूप देते समय उन्हें गोरे चेहरे में बदल रहा है। यह मामला सोशल मीडिया पर तूफान की तरह फैला और ChatGPT पर नस्लीय पूर्वाग्रह के गंभीर आरोप लगने लगे।


कैसे शुरू हुआ विवाद?

ChatGPT ने हाल ही में अपने आधिकारिक इंस्टाग्राम अकाउंट पर यूजर्स को 'Pet toPerson' ट्रेंड में शामिल होने के लिए आमंत्रित किया। कंपनी ने सुझाव दिया कि यूजर्स अपने पालतू जानवरों की तस्वीरें अपलोड करके यह पूछ सकते हैं: "मेरा पालतू अगर इंसान होता तो कैसा दिखता?" इस ट्रेंड के तहत बनाई गई कई इमेजेज में देखा गया कि काले रंग की बिल्लियों और कुत्तों को गोरे इंसानों के रूप में दिखाया गया, जबकि उनके मूल रंग को पूरी तरह नजरअंदाज कर दिया गया।

सोशल मीडिया पर यूजर्स के तूफ़ानी रिएक्शन

इस मामले ने सोशल मीडिया पर तीखी बहस छेड़ दी है। कई यूजर्स ने आरोप लगाया कि ChatGPT का AI सिस्टम गोरी त्वचा को 'डिफॉल्ट' मानकर चल रहा है। एक यूजर ने कड़ी प्रतिक्रिया देते हुए लिखा कि "क्या किसी और ने गौर किया कि हर बार काली बिल्ली को गोरे इंसान में बदला जा रहा है? यह कोई संयोग नहीं है।" वहीं दूसरे यूजर ने सवाल उठाया: "क्या AI को लगता है कि केवल गोरे लोग ही इंसान हो सकते हैं?"

आखिर काली बिल्ली को गोरा क्यों दिखा रहा AI?

यह पहली बार नहीं है जब AI टूल्स को नस्लीय पूर्वाग्रह के लिए आलोचना झेलनी पड़ी है। इससे पहले भी कई AI इमेज जनरेशन टूल्स पर आरोप लग चुके हैं कि वे गोरी त्वचा को 'सौंदर्य का मानक' मानते हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि यह समस्या इसलिए आती है क्योंकि AI मॉडल्स को जिस डेटासेट पर ट्रेन किया जाता है, उसमें विविधता की कमी होती है। अक्सर ये डेटासेट पश्चिमी देशों के सौंदर्य मानकों से प्रभावित होते हैं।

AI इथिक्स एक्सपर्ट्स का क्या कहना है?

इस विवाद के बाद OpenAI से जवाब देने की मांग की जा रही है। हालांकि अभी तक कंपनी की ओर से कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है। AI इथिक्स एक्सपर्ट्स का कहना है कि ऐसे टूल्स को डिजाइन करते समय विविधता और समावेशिता पर विशेष ध्यान देना चाहिए। यह मामला एक बार फिर साबित करता है कि AI टेक्नोलॉजी को विकसित करते समय सामाजिक संवेदनशीलता को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।

क्या है समाधान का रास्ता?

विशेषज्ञों का सुझाव है कि AI डेवलपर्स को अपने ट्रेनिंग डेटासेट में विविधता लाने की जरूरत है। साथ ही, इमेज जनरेशन एल्गोरिदम में ऐसे फिल्टर्स लगाए जाने चाहिए जो नस्लीय और सांस्कृतिक संवेदनशीलता को बरकरार रख सकें। जब तक यह नहीं होता, तब तक AI टूल्स से ऐसे विवादों का सामना करना पड़ता रहेगा। यह मामला सिर्फ एक टेक्नोलॉजिकल मुद्दा नहीं, बल्कि सामाजिक पूर्वाग्रहों को दर्शाता है जो हमारे डिजिटल युग में भी मौजूद हैं।

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