68 करोड़ की चंदन तस्करी में धरा गया असली 'पुष्पा'! जानिए ED के चंगुल में कैसे फंसा अब्दुल जाफर?
फिल्म 'पुष्पा' के असली किरदार ने स्क्रीन से उतरकर सुर्खियां बटोर ली हैं! प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने चेन्नई से अब्दुल जाफर नामक एक कुख्यात चंदन तस्कर को गिरफ्तार किया है, जो पिछले चार सालों से एजेंसी के रडार पर था। यह वही 'पुष्पा' है जिसने 68 करोड़ रुपये मूल्य की लाल चंदन की लकड़ी को कंटेनरों में छिपाकर दुबई तस्करी की थी। ED के मुताबिक, जाफर ने स्पंज आयरन के नाम पर चंदन भेजकर कस्टम विभाग को चकमा दिया था। लेकिन सवाल यह है कि आखिर यह गैंग इतने बड़े पैमाने पर प्रतिबंधित चंदन की तस्करी कैसे कर पाया? और इस काले धंधे से कमाई गई करोड़ों की संपत्ति का क्या हुआ?
कैसे काम करता था 'पुष्पा' गैंग?
अब्दुल जाफर का तरीका इतना पुख्ता था कि वर्षों तक उस पर शिकंजा नहीं कसा जा सका। ED की जांच में पता चला कि उसकी गैंग बड़ी-बड़ी निर्यातक कंपनियों के कंटेनरों का इस्तेमाल करती थी। सामान्य सामान के बीच लाल चंदन की लकड़ी को छिपाकर दुबई भेजा जाता था। हैरानी की बात यह है कि जाफर ने 13 बार इस तरह की तस्करी की, जिसमें हर बार करोड़ों का माल विदेश पहुंचाया गया। लाल चंदन, जिसका निर्यात भारत में प्रतिबंधित है, विदेशों में इसकी कीमत सोने से भी ज्यादा है। अधिकारियों का कहना है कि जाफर एक 'आदतन अपराधी' है और पहले भी तस्करी के कई मामलों में उसका नाम सामने आ चुका है।
तस्करी की कमाई से खरीदे फ्लैट और लक्जरी सामान
जांच में खुलासा हुआ है कि अब्दुल जाफर ने तस्करी से हुई कमाई का इस्तेमाल विलासितापूर्ण जीवन जीने में किया। ED को चेन्नई में उसके कई घरों, कमर्शियल प्रॉपर्टी और लग्जरी वाहनों के दस्तावेज मिले हैं। सबूत बताते हैं कि उसने करोड़ों रुपये की अचल संपत्ति खरीदी थी, जिसे अब जब्त किया जा सकता है। यह मामला सिर्फ तस्करी तक सीमित नहीं है, बल्कि मनी लॉन्ड्रिंग के आरोप भी इसमें जुड़ गए हैं। ED ने कस्टम एक्ट की धारा 135 के तहत चार्जशीट दाखिल कर दी है, जिसमें टैक्स चोरी और प्रतिबंधित सामान के निर्यात के आरोप शामिल हैं।
क्या लाल चंदन इतना कीमती?
लाल चंदन, जिसे रेड सैंडर्स भी कहा जाता है, भारत के जंगलों में पाई जाने वाली एक दुर्लभ प्रजाति है। यह अपनी खुशबू और औषधीय गुणों के लिए जाना जाता है। चीन और मध्य पूर्व के देशों में इसकी भारी मांग है, जहां इसका इस्तेमाल परफ्यूम, दवाइयां और लक्ज़री फर्नीचर बनाने में किया जाता है। भारत सरकार ने 1962 के कस्टम एक्ट के तहत इसके निर्यात पर पूर्ण प्रतिबंध लगा रखा है, क्योंकि अवैध कटाई से यह प्रजाति विलुप्त होने के कगार पर पहुंच गई थी। ग्रे मार्केट में इसकी कीमत 25-30 लाख रुपये प्रति टन तक होती है, जो इसे तस्करों के लिए 'लाल सोना' बना देता है।
ED की बड़ी कामयाबी से तस्करी का होगा अंत?
अब्दुल जाफर की गिरफ्तारी ED के लिए एक बड़ी सफलता है, लेकिन यह सवाल अभी बना हुआ है कि क्या यह तस्करी के पूरे नेटवर्क को खत्म कर पाएगी? जांचकर्ताओं का मानना है कि जाफर के पीछे बड़े अंतरराष्ट्रीय गैंग का हाथ हो सकता है, जो दुबई और चीन तक फैला हुआ है। ED अब उनके संपर्कों की पड़ताल कर रही है। साथ ही, यह मामला एक बार फिर वन्यजीव तस्करी और पर्यावरण संरक्षण कानूनों की कमजोरियों को उजागर करता है। क्या भारत को चंदन जैसी दुर्लभ प्रजातियों की सुरक्षा के लिए और सख्त कदम उठाने चाहिए? यह वह सवाल है जिस पर जल्द ही गंभीरता से विचार करने की जरूरत है।
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