राहुल की रणनीति से हिली सियासत, कौन पड़ेगा भारी—तेजस्वी, ममता या बीजेपी?
राजनीतिक शतरंज की बिसात पर अब एक नया मोहरा सामने आया है—जातिगत जनगणना। राहुल गांधी ने इसे न सिर्फ सामाजिक न्याय का आधार बताया, बल्कि आरक्षण की 50% सीमा तोड़ने और हक़दारों को उनकी 'हिस्सेदारी' देने का वादा कर दिया है। इस अभियान में अब कांग्रेस की राज्य सरकारें खुलकर मैदान में आ चुकी हैं। तेलंगाना और कर्नाटक इसकी ताज़ा मिसाल हैं।
तेलंगाना-कर्नाटक ने दिखाई राह, कांग्रेस का बड़ा दांव
तेलंगाना सरकार ने अनुसूचित जातियों (SC) में डी-क्लासिफिकेशन लागू कर दिया है। वहीं कर्नाटक में मुसलमानों को ठेके में आरक्षण देने के बाद, जातिगत जनगणना रिपोर्ट को कैबिनेट की मुहर मिल चुकी है और 17 अप्रैल को इस पर खास चर्चा होगी। संकेत साफ हैं—कांग्रेस इसे जल्द लागू भी कर सकती है। यह रणनीति न सिर्फ कर्नाटक या तेलंगाना में, बल्कि बिहार और बंगाल के चुनावी समीकरणों पर सीधा असर डाल सकती है।
राहुल गांधी का विज़न या आरक्षण का नया युग
कांग्रेस का दावा है कि सरकार में आने पर वह एक नया कानून लाकर आरक्षण की 50% सीमा खत्म करेगी। इससे SC, ST और OBC वर्गों को अधिक प्रतिनिधित्व मिल सकेगा। निजी शिक्षण संस्थानों में भी इन्हें आरक्षण दिलाने के लिए संविधान के अनुच्छेद 15(5) के तहत कानून लाने का वादा किया गया है।
केजरीवाल की एंट्री, पंजाब में भी नया प्रयोग
सिर्फ कांग्रेस ही नहीं, अरविंद केजरीवाल भी इस मुद्दे पर एक्टिव हो गए हैं। दिल्ली में ओबीसी आरक्षण का वादा करने के बाद अब पंजाब में वकीलों के पैनल में आरक्षण लागू कर दिया गया है। दलितों को भी इसमें शामिल किया गया है। यानी AAP भी इस सामाजिक न्याय की लड़ाई में अपनी हिस्सेदारी तय करना चाहती है।
क्या तेजस्वी यादव को होगी परेशानी?
बिहार में तेजस्वी यादव लंबे समय से जातिगत जनगणना के पैरोकार रहे हैं। 2023 की जनगणना और 65% आरक्षण की मांग, आरजेडी की राजनीति की रीढ़ रही है। लेकिन अब कांग्रेस इस मुद्दे को तेज़ी से आगे बढ़ा रही है। इससे बिहार में कांग्रेस की राजनीतिक मांगें और पकड़ दोनों बढ़ सकती हैं। हो सकता है कि वह मुख्यमंत्री पद पर दावा भी ठोक दे। ऐसे में तेजस्वी को यादव और मुस्लिम वोटों के बिखराव का डर सताने लगा है।
ममता बनर्जी की नींद क्यों उड़ी?
पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी की राजनीति अल्पसंख्यक और ओबीसी वोट बैंक पर टिकी है। कांग्रेस अब मुस्लिम आरक्षण और SC वर्ग के डी-क्लासिफिकेशन जैसे मुद्दों से बंगाल में भी पैठ जमाना चाहती है। अगर कांग्रेस यहां जातिगत जनगणना को बड़ा मुद्दा बनाती है, तो टीएमसी के लिए मुश्किलें बढ़ सकती हैं। बीजेपी तो पहले से ही ममता पर हमलावर है—अब कांग्रेस भी चुनौती बन सकती है।
बीजेपी के लिए भी खतरे की घंटी?
बीजेपी ने कभी जातिगत जनगणना का खुलकर विरोध नहीं किया, लेकिन वह सामाजिक समीकरणों की राजनीति से अच्छी तरह वाकिफ है। बिहार में बीजेपी को नीतीश कुमार के साथ रहते हुए ओबीसी और ईबीसी वोट बैंक पर निर्भर रहना पड़ता है। अगर कांग्रेस इसे राष्ट्रीय मुद्दा बना देती है, तो बीजेपी का यह वोट बैंक डगमगा सकता है। बंगाल में भी अगर कांग्रेस अल्पसंख्यकों को साधने में कामयाब हुई, तो बीजेपी और ममता—दोनों के लिए टेंशन बढ़ेगी।
ममता बनर्जी, तेजस्वी और भाजपा के लिए बनी चुनौती
जातिगत जनगणना अब सिर्फ एक आंकड़ों की कवायद नहीं रह गई है, बल्कि यह भारत की सियासत का अगला बड़ा युद्धक्षेत्र बन चुकी है। कांग्रेस ने इसे हथियार बनाया है, केजरीवाल भी साथ खड़े हैं। अब देखना यह है कि तेजस्वी यादव, ममता बनर्जी और बीजेपी इस नई रणनीति का जवाब कैसे देते हैं। आने वाले चुनावों में यह मुद्दा बड़ी और महत्वपूर्ण निर्णायक भूमिका निभा सकता है।
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