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राहुल गांधी का बयान, मायावती का गुस्सा और बसपा का गिरता सियासी ग्राफ: क्या 2024 में गठबंधन होता तो बदल जाते नतीजे?

राहुल गांधी के बयान और बसपा के गिरते वोट शेयर का विश्लेषण। जानें क्या 2024 में गठबंधन होता तो बदल जाते नतीजे?
01:05 PM Feb 21, 2025 IST | Vibhav Shukla

राहुल गांधी, कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष और लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष, ने हाल ही में बसपा प्रमुख मायावती की सियासत पर एक ऐसा बयान दिया, जिससे मायावती नाराज हो गईं। राहुल ने कहा कि अगर मायावती 2024 के लोकसभा चुनाव में इंडिया ब्लॉक (कांग्रेस और सपा के गठबंधन) के साथ आ जातीं, तो भारतीय जनता पार्टी (BJP) चुनाव हार जाती।

राहुल ने कहा, "मैं चाहता था कि बहनजी (मायावती) लोकसभा चुनाव हमारे साथ मिलकर लड़ें, लेकिन वह हमारे साथ नहीं आईं। हमें काफी दुख हुआ। अगर तीनों पार्टियां (कांग्रेस, सपा और बसपा) एक साथ हो जातीं, तो रिजल्ट कुछ और ही होता।"

 

2019 से 2024 तक बसपा का वोट शेयर कैसे गिरा?

2019 के लोकसभा चुनाव में बसपा और सपा का गठबंधन था। उस समय बसपा को उत्तर प्रदेश में 19.26% वोट मिले थे, जबकि सपा को 16.96% और कांग्रेस को महज 6.31% वोट मिले। लेकिन 2024 के चुनाव में सपा और कांग्रेस ने मिलकर चुनाव लड़ा, जबकि बसपा अकेले मैदान में उतरी। इस बार बसपा का वोट शेयर घटकर 9.39% रह गया, जबकि सपा का वोट शेयर 33.59% और कांग्रेस का 9.46% रहा।

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अगर बसपा, सपा और कांग्रेस ने मिलकर चुनाव लड़ा होता, तो उनका कुल वोट शेयर 55% तक पहुंच सकता था। इसके विपरीत, BJP का वोट शेयर 41.37% रहा। कांग्रेस ने 9% वोट शेयर के साथ 7 सीटें जीतीं, लेकिन बसपा एक भी सीट नहीं जीत पाई।

कैसे बसपा ने खोया राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा?

बसपा की स्थापना 14 अप्रैल 1984 को कांशीराम ने की थी। उनका मकसद सामाजिक न्याय और दलित सशक्तीकरण था। मायावती ने पार्टी को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया और बसपा ने 1997 में राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा हासिल किया। लेकिन 2023 में चुनाव आयोग ने बसपा का राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा छीन लिया।

राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा पाने के लिए किसी पार्टी को कम से कम 4 राज्यों में 6% वोट और 4 लोकसभा सीटें जीतनी होती हैं। बसपा ने 2019 और 2024 के चुनावों में खराब प्रदर्शन किया, जिसके चलते उसे यह दर्जा खोना पड़ा।

 

2007 में पूर्ण बहुमत, 2024 में जीरो

2007 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में बसपा ने पूर्ण बहुमत हासिल किया था। मायावती ने 403 में से 206 सीटें जीतीं और चौथी बार मुख्यमंत्री बनीं। लेकिन 2012 के बाद से बसपा की सियासी जमीन लड़खड़ाने लगी। 2017 के चुनाव में बसपा को महज 19 सीटें मिलीं, और 2022 के चुनाव में तो पार्टी सिर्फ 1 सीट जीत पाई।

लोकसभा चुनावों में भी बसपा का प्रदर्शन खराब रहा। 2009 में बसपा ने 21 सीटें जीतीं, लेकिन 2014 में पार्टी शून्य पर आ गई। 2019 में बसपा ने सपा के साथ गठबंधन कर 10 सीटें जीतीं, लेकिन 2024 में फिर से एक भी सीट नहीं मिली।

क्या बसपा का वोट बैंक टूट रहा है?

बसपा का मुख्य वोट बैंक दलित और अन्य पिछड़े वर्ग के लोग हैं। लेकिन पिछले कुछ सालों में बसपा के वोट बैंक में कमी आई है। 2007 में बसपा को 30.43% वोट मिले थे, लेकिन 2022 में यह आंकड़ा घटकर 12% रह गया।

सियासी विश्लेषकों का मानना है कि मायावती की 'बहुजन राजनीति' ने अन्य पिछड़े वर्ग और सवर्ण वर्ग को दूर कर दिया। इसके अलावा, BJP ने दलित वोटों को अपने पक्ष में मोड़ने में कामयाबी हासिल की है।

 

सालवोट शेयर (%)जीती गई सीटें
20096.17%21
20144.19%0
20193.66%10
20242.04%0

क्या गठबंधन होता तो बदल जाते नतीजे?

राहुल गांधी का कहना है कि अगर बसपा कांग्रेस और सपा के साथ गठबंधन करती, तो BJP को हार का सामना करना पड़ता। लेकिन आंकड़े बताते हैं कि बसपा का वोट शेयर लगातार गिर रहा है। 2024 के चुनाव में बसपा को सिर्फ 2.04% वोट मिले, जो कि गठबंधन के लिए पर्याप्त नहीं थे।

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हालांकि, अगर बसपा, सपा और कांग्रेस ने मिलकर चुनाव लड़ा होता, तो उनका कुल वोट शेयर 55% तक पहुंच सकता था, जो BJP के 41.37% वोट शेयर से कहीं ज्यादा है। लेकिन राजनीति में गठबंधन केवल वोट शेयर का गणित नहीं होता, बल्कि इसमें नेताओं की महत्वाकांक्षाएं और विचारधाराएं भी शामिल होती हैं।

 क्या मायावती फिर से ला सकती हैं पार्टी को मुकाम पर?

बसपा के लिए यह सवाल बड़ा है कि क्या मायावती पार्टी को फिर से उसी मुकाम पर ले जा सकती हैं, जहां वह 2007 में थी। पार्टी का राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा खोना और लगातार चुनावों में खराब प्रदर्शन ने बसपा को कमजोर कर दिया है।

मायावती को अब नई रणनीति बनाने की जरूरत है। उन्हें न केवल दलित वोटों को वापस लाना होगा, बल्कि अन्य पिछड़े वर्ग और सवर्ण वर्ग को भी अपने साथ जोड़ना होगा। साथ ही, युवाओं और महिलाओं को लुभाने के लिए नई योजनाएं लानी होंगी।

 

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