जाति जनगणना पर मोदी सरकार की मुहर, राहुल गांधी की रणनीति पर भारी पड़ा प्रधानमंत्री का 'सामाजिक गणित'
2025 के बिहार चुनाव से ठीक पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक ऐसा पत्ता चला है, जिसने विपक्ष खासकर कांग्रेस और राहुल गांधी को चौंका दिया है। जाति जनगणना को लेकर लंबे समय से जो सियासी जंग चल रही थी, उसमें अब बीजेपी ने बाजी मार ली है। विपक्ष जहां अब तक मोदी सरकार को पिछड़ों की अनदेखी के लिए घेरता रहा, वहीं अब जाति आधारित आंकड़े जुटाने की हरी झंडी देकर पीएम मोदी ने कांग्रेस के सबसे मजबूत मुद्दे की धार ही कुंद कर दी है।
जाति जनगणना आखिर क्यों है अहम?
जाति जनगणना का सीधा मतलब है—समाज में हर जाति की संख्या का स्पष्ट आंकड़ा सामने आना। इससे यह पता चलेगा कि कौन-सी जातियां कितनी बड़ी आबादी का प्रतिनिधित्व करती हैं और उन्हें सरकारी योजनाओं में कितना हिस्सा मिलना चाहिए। विपक्ष का तर्क रहा है कि पिछड़े वर्गों की संख्या तो अधिक है, लेकिन उनकी सामाजिक और राजनीतिक हिस्सेदारी कम है। राहुल गांधी ने इसी आधार पर 'जाति बताओ' जैसे अभियान चलाए, लेकिन अब बीजेपी ने यह एजेंडा खुद अपने हाथ में लेकर उन्हें बैकफुट पर ला दिया है।
बिहार में बदल सकते हैं सियासी समीकरण
बिहार, जो जातिगत राजनीति का गढ़ माना जाता है, वहां यह फैसला गेमचेंजर साबित हो सकता है। अपने इस एक फैसले से भाजपा ने कांग्रेस से सारे दांवो का चित्त करते हुए राज्य की राजनीति में एक बार फिर तूफान ला दिया है। इस एक अकेले फैसले के कई दूरगामी परिणाम होंगे जैसे:
- पिछड़े और अति पिछड़े वर्गों में बीजेपी की पैठ और मजबूत होगी।
- कांग्रेस और आरजेडी को अपनी रणनीति नए सिरे से बनानी पड़ेगी।
- नीतीश कुमार की JDU, जो पहले से जाति जनगणना की मांग कर रही थी, अब बीजेपी से और निकट आ सकती है।
मोदी सरकार के इस कदम से क्या होंगे फायदे और नुकसान?
मोदी सरकार के इस कदम से भाजपा को जहां एक ओर कई फायदे होंगे, वहीं कई नुकसान भी हो सकते हैं। जानिए इनके बारे में
फायदे:
- पिछड़ी जातियों को आरक्षण और विकास योजनाओं में वास्तविक हिस्सेदारी मिल सकती है।
- सरकार की नीतियां डेटा-बेस्ड और समाज के हर वर्ग को ध्यान में रखकर बनाई जा सकेंगी।
- सामाजिक न्याय की दिशा में एक बड़ा कदम माना जाएगा।
संभावित नुकसान या चुनौतियां:
- जातिगत आंकड़ों को लेकर समाज में तनाव या ध्रुवीकरण बढ़ सकता है।
- आरक्षण पर नई बहस छिड़ सकती है, जिससे राजनीतिक और सामाजिक टकराव संभव है।
- उच्च जातियों में असंतोष की संभावना बनी रह सकती है।
अब आगे क्या?
राहुल गांधी की 'सामाजिक न्याय' आधारित राजनीति को इस फैसले से तगड़ा झटका लगा है। अब उन्हें नए मुद्दों और नैरेटिव्स की तलाश करनी होगी। वहीं, दूसरे राज्यों में भी जाति जनगणना की मांग जोर पकड़ सकती है, जिससे केंद्र की सामाजिक नीति और आरक्षण व्यवस्था में बड़े बदलाव के संकेत मिल रहे हैं। जाति जनगणना की मंजूरी सिर्फ एक प्रशासनिक फैसला नहीं, बल्कि एक राजनीतिक मास्टरस्ट्रोक है। इससे न सिर्फ बिहार का चुनावी परिदृश्य बदलेगा, बल्कि राष्ट्रीय राजनीति की दिशा भी तय हो सकती है।
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