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मुर्शिदाबाद हिंसा पर गवर्नर की एंट्री, ममता सरकार घिरी, क्या लगेगा राष्ट्रपति शासन?

मुर्शिदाबाद हिंसा ने बंगाल सरकार को संकट में डाला, वक्फ कानून के विरोध में भड़की आग। गवर्नर की रिपोर्ट पर राष्ट्रपति शासन तय हो सकता है।
01:32 PM Apr 18, 2025 IST | Rohit Agrawal

मुर्शिदाबाद में वक्फ संशोधन कानून के विरोध में भड़की हिंसा अब सियासत की आग में जल रही है। तीन मौतें, सैकड़ों लोगों का पलायन, और पुलिस की भारी मौजूदगी के बीच अब बंगाल के गवर्नर सीवी आनंद बोस मैदान में उतर आए हैं। वो खुद हिंसा प्रभावित इलाकों का दौरा कर रहे हैं, पीड़ितों से मिल रहे हैं और अपनी रिपोर्ट सीधे दिल्ली भेजने वाले हैं। ममता सरकार इस वक्त चौतरफा दबाव में है। विपक्ष गरज रहा है, गवर्नर सक्रिय हैं, और लोग डरे-सहमे हैं। सवाल ये उठता है कि क्या इस सबके बाद बंगाल में राष्ट्रपति शासन लग सकता है?

मुर्शिदाबाद में क्या हुआ, कैसे बेकाबू हुआ मामला?

बता दें कि 8 अप्रैल से शुरू हुए विरोध प्रदर्शन धीरे-धीरे हिंसा में बदल गए। 11 अप्रैल आते-आते सुती, समसेरगंज, धुलिया और जंगीपुर में माहौल ऐसा बिगड़ा कि आगजनी, पथराव और लूटपाट शुरू हो गई। तीन लोगों की मौत हो गई, और कई सौ परिवार रातोंरात अपना घर छोड़ मालदा और झारखंड के पाकुड़ में शरण लेने पर मजबूर हो गए। BJP ने दावा किया कि 500 हिंदू परिवार पलायन कर चुके हैं, वहीं ममता बनर्जी इसे "पूर्व नियोजित सांप्रदायिक साज़िश" बता रही हैं। वहीं CRPF और BSF के आने के बाद हालात कुछ थमे, लेकिन तब तक 60 से ज्यादा FIR दर्ज हो चुकी थीं और 274 से अधिक गिरफ्तारियां हो चुकी थीं। लोगों में डर कायम है, और ममता सरकार पर सवाल उठने लगे हैं कि क्या वो वक्त रहते हालात काबू कर पाईं?

गवर्नर बोस अचानक क्यों पहुँचे मैदान में?

गवर्नर सीवी आनंद बोस 18 अप्रैल को खुद मुर्शिदाबाद और मालदा के राहत शिविरों में पहुँचे। उन्होंने पहले ही कहा था कि मैं कागज़ी रिपोर्टों से संतुष्ट नहीं हूँ, ज़मीनी सच्चाई देखना चाहता हूँ। ममता बनर्जी ने अपील की थी कि गवर्नर कुछ दिन रुक जाएं, क्योंकि "अगर मैं जाऊँगी तो बाक़ी नेताओं को भी अनुमति देनी पड़ेगी, और फिलहाल यह ठीक नहीं होगा।

 

लेकिन बोस ने उनकी अपील ठुकरा दी।BJP इसे गवर्नर की "संवैधानिक जिम्मेदारी" बता रही है, तो TMC इसे "राज्य सरकार की अनदेखी और दखलंदाज़ी" बता रही है। अब गवर्नर की फील्ड रिपोर्ट सीधे केंद्र को जाएगी और यही रिपोर्ट तय करेगी कि ममता सरकार की कुर्सी कितनी हिल चुकी है।

क्या वाकई गवर्नर सरकार गिरा सकते हैं?

इस मसले पर भारत का संविधान कहता है कि अगर किसी राज्य में संवैधानिक व्यवस्था फेल हो जाए, तो वहाँ राष्ट्रपति शासन लगाया जा सकता है। इसके लिए ज़रूरी है कि राज्यपाल केंद्र को रिपोर्ट भेजें और बताएं कि हालात सरकार के काबू से बाहर हैं।यानी गवर्नर बोस की रिपोर्ट में अगर लिखा गया कि बंगाल सरकार हिंसा रोकने में नाकाम रही, प्रशासन फेल रहा, और जनता असुरक्षित है तो केंद्र सरकार राष्ट्रपति को सिफारिश कर सकती है।

लेकिन रास्ता इतना आसान नहीं। इसके लिए संसद की मंज़ूरी लेनी होती है। जिसपर सुप्रीम कोर्ट की नज़र भी होती है। सबसे अहम राजनीतिक जोखिम होता है।बंगाल में ममता की पार्टी TMC मज़बूत है। अगर केंद्र राष्ट्रपति शासन लगाता है, तो ममता इसे "लोकतंत्र की हत्या" बताकर जनता में उबाल ला सकती हैं और BJP को उल्टा नुकसान भी हो सकता है।

ममता बनर्जी के सामने सबसे बड़ी चुनौती

बता दें कि गवर्नर बोस की रिपोर्ट एक तरह से ममता सरकार के लिए 'टेस्ट रिपोर्ट' जैसी है। जिसमें फेल हुए तो इलाज नहीं, सीधे ICU जाएगा मामला। हालात संभालने के लिए ममता बनर्जी ने राहत पैकेज की घोषणा की है। मृतकों के परिवार को 10 लाख का मुआवज़ा, घरों के पुनर्निर्माण की योजना, और पुलिस अधिकारियों को जवाबदेह ठहराने की बात।लेकिन विपक्ष को ये सब "बहाने" लग रहे हैं। वहीं ममता कह चुकी हैं कि "बंगाल में वक्फ संशोधन कानून लागू नहीं होगा", लेकिन हिंसा की आग अभी बुझी नहीं है। अब सबकी नज़र इस बात पर है कि गवर्नर की रिपोर्ट में क्या लिखा होगा, और केंद्र उस पर क्या कदम उठाएगा।

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