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बदल रहा है संघ का चेहरा! मुसलमानों के लिए शाखा के दरवाजे खुले, मोहन भागवत की शर्त क्या है?

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) प्रमुख मोहन भागवत ने एक ऐसा बयान दिया है, जिसने सियासी गलियारों से लेकर सामाजिक मंचों तक हलचल मचा दी है। उन्होंने कहा कि मुसलमान भी संघ...
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Mohan Bhagwat:  राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) प्रमुख मोहन भागवत ने एक ऐसा बयान दिया है, जिसने सियासी गलियारों से लेकर सामाजिक मंचों तक हलचल मचा दी है। उन्होंने कहा कि मुसलमान भी संघ में शामिल हो सकते हैं, बशर्ते वे "भारत माता की जय" बोलने और भगवा ध्वज का सम्मान करने के लिए तैयार हों। (Mohan Bhagwat ) भागवत का यह बयान न सिर्फ संघ की नीति पर सवाल खड़े कर रहा है, बल्कि देश में हिंदू-मुस्लिम संबंधों को लेकर एक नई बहस भी शुरू कर चुका है।

संघ का दरवाजा सभी के लिए खुला

बनारस की पवित्र धरती पर, जहां गंगा की लहरें और मंदिरों की घंटियां आध्यात्मिकता का आलम बिखेरती हैं, मोहन भागवत ने एक सभा को संबोधित करते हुए यह बात कही। उन्होंने स्पष्ट किया कि RSS की विचारधारा में पूजा पद्धति या धार्मिक रीति-रिवाजों के आधार पर कोई भेदभाव नहीं है। उनके शब्दों में, “संघ का दरवाजा भारत के हर संप्रदाय, समुदाय और जाति के लिए खुला है। चाहे कोई हिंदू हो, मुसलमान हो, सिख हो या ईसाई....सबका स्वागत है। लेकिन एक बात साफ है, जो लोग खुद को औरंगजेब का वंशज मानते हैं, उनके लिए यहां जगह नहीं है।”

संघ में मुस्लिमों की एंट्री?

RSS के पास मुस्लिम समुदाय के लिए पहले से ही एक विंग मौजूद है....राष्ट्रीय मुस्लिम मंच। यह संगठन राष्ट्रवादी मुस्लिमों का एक मंच है, जो RSS की विचारधारा से प्रेरित है। राष्ट्रीय मुस्लिम मंच को विश्व के सबसे अच्छे संगठनों में से एक होने का गौरव प्राप्त है। इसके राष्ट्रीय संयोजक मुहम्मद अफजल हैं, जबकि इंद्रेश कुमार इसके मार्गदर्शक की भूमिका निभाते हैं। यह मंच उन मुस्लिम नागरिकों को एकजुट करता है जो भारतीय संस्कृति और राष्ट्रवाद के प्रति समर्पित हैं, और यह दर्शाता है कि संघ की विचारधारा में समावेशिता का एक पहलू पहले से मौजूद है।

मोहन भागवत ने आगे कहा, “पंथ, जाति और संप्रदाय की पूजा पद्धतियां भले ही अलग-अलग हों, लेकिन हमारी संस्कृति एक है। भारत माता की जय का नारा और भगवा झंडा उस संस्कृति के प्रतीक हैं। जो इनका सम्मान करेगा, वह संघ का हिस्सा बन सकता है।” उनके इस बयान से यह संदेश साफ झलकता है कि RSS अपनी वैचारिक नींव को मजबूत रखते हुए भी समावेशिता की बात कर रहा है, लेकिन अपनी शर्तों के साथ।

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