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‘किंगमेकर’ बनने का दावा कर रहे केजरीवाल हरियाणा में चारों खाने चित्त!

एग्जिट पोल के मुताबिक, अरविंद केजरीवाल की पार्टी को हरियाणा में एक भी सीट नहीं मिलने का अनुमान है। यह स्थिति उन दावों को भी धराशायी कर रही है, जिसमें केजरीवाल ने खुद को किंगमेकर बताने की कोशिश की थी।
01:47 PM Oct 06, 2024 IST | Vibhav Shukla

हरियाणा विधानसभा चुनाव 2024 के एक्जिट पोल के नतीजे सामने आ चुके हैं, और यह स्पष्ट हो गया है कि राज्य में कांग्रेस की सरकार बनने की संभावना प्रबल है। जहां भाजपा को भी नुकसान उठाने की बात कही जा रही है, वहीं सबसे बड़ा झटका आम आदमी पार्टी (आप) के लिए है। एग्जिट पोल के मुताबिक, अरविंद केजरीवाल की पार्टी को हरियाणा में एक भी सीट नहीं मिलने का अनुमान है। यह स्थिति उन दावों को भी धराशायी कर रही है, जिसमें केजरीवाल ने खुद को किंगमेकर बताने की कोशिश की थी। आइए समझते हैं उन कारणों को, जिनकी वजह से आप की स्थिति इतनी खराब हुई।

1. अति आत्मविश्वास का नतीजा

आप पार्टी ने हमेशा यह माना कि उनकी स्थिति हरियाणा में मजबूत है। पार्टी के नेता सुशील गुप्ता ने चुनाव प्रचार के दौरान यह दावा किया कि उनके कार्यकर्ता हर विधानसभा में मजबूती से मौजूद हैं। उन्होंने कहा, "हम 90 सीटों पर चुनाव लड़ने की ताकत रखते हैं।" लेकिन यह आत्मविश्वास वोट में तब्दील नहीं हो पाया। सही राजनीतिक रणनीति के बिना केवल आश्वासन देने से पार्टी को नुकसान उठाना पड़ा।

जमीनी स्तर पर काम करने का न समझ पाना पार्टी के लिए नुकसानदायक साबित हुआ। कार्यकर्ताओं का उत्साह वोट में बदलने में नाकाम रहा। जब चुनाव की घड़ी आई, तब तक मतदाता पहले से तय कर चुके थे कि वे किसे वोट देंगे।

2. कांग्रेस से गठबंधन की असफलता

अगर आप पार्टी ने कांग्रेस के साथ गठबंधन किया होता, तो शायद दिल्ली और पंजाब से सटे इलाकों में उनका प्रदर्शन बेहतर हो सकता था। राहुल गांधी ने आप से गठबंधन की पेशकश की थी, लेकिन आप ने 3 सीटों की पेशकश को ठुकराते हुए ज्यादा सीटों की मांग की। इस बातचीत का कोई नतीजा नहीं निकल सका और दोनों पार्टियों ने अलग-अलग चुनाव लड़ा।

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इसका सीधा असर यह हुआ कि कांग्रेस के कुछ वोट आप की तरफ नहीं आए, जिससे भाजपा को फायदा हुआ। कांग्रेस और आप के बीच का यह दूराव अब पार्टी की भविष्य की रणनीतियों को भी प्रभावित कर सकता है।

3. प्रमुख नेताओं का जेल में होना

आप पार्टी के दो बड़े नेता, अरविंद केजरीवाल और मनीष सिसोदिया, का जेल में रहना भी चुनाव पर प्रभाव डालने वाला था। जब जमानत मिली, तब तक चुनाव प्रचार में बहुत कम समय बचा था। पार्टी के अन्य नेताओं में पर्याप्त संवाद नहीं हो पाया। यह स्थिति उम्मीदवारों का चुनाव करने में मुश्किल पैदा करती रही।

सुशील गुप्ता ने जल्दबाज़ी में कई उम्मीदवारों को टिकट दे दिए, लेकिन बिना गंभीरता से विचार किए। अरविंद केजरीवाल की गैरमौजूदगी में सुनीता केजरीवाल ने चुनाव प्रचार की कमान संभाली, लेकिन उनकी कोशिशों का प्रभाव सीमित रहा।

4. पिछले चुनावों से सबक न लेना

आप ने 2019 में जिन 46 सीटों पर चुनाव लड़ा, उन सभी पर हार का सामना करना पड़ा। इस बार पार्टी ने लोकसभा चुनाव में अपने बेहतर प्रदर्शन के आधार पर विधानसभा चुनाव में अच्छा नतीजा पाने की उम्मीद की थी। लेकिन एक्जिट पोल में उनकी स्थिति बेहद खराब नजर आ रही है।

पार्टी ने पिछले चुनावों से सबक नहीं लिया। यदि उन्होंने इस बार जमीनी स्तर पर खुद को मजबूत करने का प्रयास किया होता, तो शायद नतीजे कुछ और होते। यह न केवल पार्टी की रणनीति का अभाव था, बल्कि मतदाता के साथ जुड़ाव की कमी भी थी।

5. वोट कटवा पार्टी की छवि

हरियाणा चुनाव इस बार मुख्य रूप से भाजपा और कांग्रेस के इर्द-गिर्द घूमता रहा। आप पार्टी मतदाताओं को आकर्षित करने में नाकाम रही। केजरीवाल ने फ्री की गारंटी देने का वादा किया था, लेकिन मतदाता उनके पक्ष में नहीं आए। यह धारणा बनी रही कि आप पार्टी केवल कांग्रेस का वोट काटने के लिए चुनाव लड़ रही है, जिससे भाजपा को फायदा हो सकता है।

इस स्थिति का कांग्रेस ने फायदा उठाया और आप के साथ गठबंधन करने से परहेज किया। राज्य में ज्यादातर मुकाबला कांग्रेस और भाजपा के बीच ही नजर आया। एग्जिट पोल में कांग्रेस की बढ़त ने यह स्पष्ट कर दिया कि आप केवल एक वोट कटवा पार्टी बनकर रह गई।

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