कर्नाटक में मुस्लिम आरक्षण का मुद्दा: क्या राहुल गांधी की राजनीति को लगेगा बड़ा झटका?
कर्नाटक की राजनीतिक सरगर्मियों में एक नया मोड़ आया है। राज्य सरकार द्वारा कराई गई जातिगत जनगणना के आंकड़ों के लीक होने से एक ऐसा तूफान खड़ा हो गया है जिसने कांग्रेस की नींद उड़ा दी है। रिपोर्ट के मुताबिक मुस्लिम समुदाय की आबादी अब वोक्कालिगा और लिंगायत जैसी प्रभावशाली जातियों से भी आगे निकल चुकी है। इस आधार पर मुस्लिम आरक्षण को 4% से बढ़ाकर 8% करने की सिफारिश ने राजनीतिक हलचल तेज कर दी है। राहुल गांधी के 'जितनी आबादी, उतना हक' के सिद्धांत को अब कर्नाटक की जमीनी हकीकत के सामने परखा जा रहा है। क्या यह सिद्धांत कांग्रेस के लिए राजनीतिक भूकंप ला देगा?
जनगणना के आंकड़ों ने ऐसे खोली पोल
लीक हुए आंकड़ों के अनुसार कर्नाटक में मुस्लिम समुदाय की आबादी लगभग 75.2 लाख है जो वोक्कालिगा (61.6 लाख) और लिंगायत (66.3 लाख) से अधिक है। ये आंकड़े कांग्रेस सरकार के लिए सिरदर्द बन गए हैं क्योंकि इनके आधार पर मुस्लिम आरक्षण बढ़ाने की सिफारिश की गई है। दिलचस्प बात यह है कि राज्य के उपमुख्यमंत्री डीके शिवकुमार ने खुद स्वीकार किया कि उन्होंने अभी तक यह रिपोर्ट देखी ही नहीं है। कांग्रेस ने अपने वोक्कालिगा और लिंगायत नेताओं को इस मुद्दे पर बोलने से रोक दिया है, जो पार्टी की मुश्किल स्थिति को दर्शाता है।
वोट बैंक का जटिल गणित
कर्नाटक की राजनीति में वोक्कालिगा और लिंगायत समुदाय का विशेष प्रभाव रहा है। इन समुदायों के बीच आरक्षण को लेकर पहले से ही तनाव की स्थिति बनी हुई थी। अब मुस्लिमों को अधिक आरक्षण दिए जाने की संभावना से यह तनाव और बढ़ सकता है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि कांग्रेस इस मुद्दे पर फंस गई है। एक तरफ उसे राहुल गांधी के सिद्धांत को लागू करना है तो दूसरी तरफ प्रभावशाली जातियों को नाराज नहीं करना है। इस संतुलन को बनाए रखना पार्टी के लिए बड़ी चुनौती बन गया है।
क्या कर्नाटक में भी हिंदू खतरे में?
जनसंख्या के आंकड़े और भी चिंताजनक तस्वीर पेश करते हैं। 1992 से 2021 के बीच हिंदुओं की प्रजनन दर 3.3 से गिरकर 1.9 पर आ गई है जबकि मुस्लिम समुदाय में यह दर 4.41 से घटकर 2.36 हुई है। हालांकि दोनों समुदायों में प्रजनन दर कम हुई है, लेकिन मुस्लिमों में यह अभी भी हिंदुओं से अधिक है। यदि यही प्रवृत्ति जारी रही तो भविष्य में मुस्लिम आबादी और बढ़ सकती है। इस पृष्ठभूमि में राहुल गांधी का जनसंख्या आधारित आरक्षण का सिद्धांत दीर्घकाल में कांग्रेस के लिए समस्या पैदा कर सकता है।
कांग्रेस की भूल लेकिन BJP को मिला मौका
बीजेपी इस मौके का पूरा फायदा उठाने में जुट गई है। पार्टी के नेता कांग्रेस पर अल्पसंख्यक तुष्टीकरण के आरोप लगा रहे हैं। 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले यह मुद्दा बीजेपी के लिए वरदान साबित हो सकता है। अगर कर्नाटक में हिंदू समुदाय कांग्रेस के खिलाफ हो जाता है तो इसका प्रभाव राष्ट्रीय राजनीति पर भी पड़ सकता है। विशेषज्ञों का मानना है कि कांग्रेस को इस मुद्दे पर बेहद सतर्क रुख अपनाने की आवश्यकता है। एक गलत कदम पूरे दक्षिण भारत में पार्टी की स्थिति को प्रभावित कर सकता है।
इस पूरे प्रकरण ने कर्नाटक की राजनीति में नई उथल-पुथल पैदा कर दी है। कांग्रेस के सामने अब एक दुविधापूर्ण स्थिति है - या तो वह राहुल गांधी के सिद्धांत पर अडिग रहकर मुस्लिम वोट बैंक को साधने की कोशिश करे या फिर प्रभावशाली जातियों को नाराज करने के जोखिम से बचे। इस संकट से निपटने के लिए पार्टी को बेहद सूझबूझ से काम लेना होगा। आने वाले दिनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि कर्नाटक की यह आरक्षण बहस राष्ट्रीय राजनीति को किस दिशा में मोड़ती है और क्या राहुल गांधी की यह राजनीतिक गणना सही साबित होगी?
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