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दिल्ली चुनाव 2025 में 'गाली', 'आप-दा' और 'झूठा' शब्दों ने मचाया सियासी बवाल

दिल्ली विधानसभा चुनाव 2025 के प्रचार के आखिरी दिन 'गाली', 'आप-दा', और 'झूठा' जैसे शब्दों ने सियासी माहौल को नया मोड़ दिया।
10:39 AM Feb 04, 2025 IST | Vibhav Shukla

दिल्ली विधानसभा चुनाव 2025 के प्रचार के आखिरी दिन (3 फरवरी), दिल्ली की सियासत में एक नई हलचल मच गई। इस चुनावी मुकाबले में तीन प्रमुख पार्टियों ने अपनी पूरी ताकत झोंकी। आम आदमी पार्टी (AAP), भारतीय जनता पार्टी (BJP), और कांग्रेस के नेताओं ने चुनाव प्रचार के अंतिम दिन जमकर अपना दमखम दिखाया। लेकिन इस बार दिल्ली चुनाव में एक ऐसी नई सियासी भाषा देखने को मिली, जो पहले कभी नहीं देखी गई। इन शब्दों ने ना सिर्फ दिल्ली चुनाव की सियासत को गरमाया बल्कि चुनाव प्रचार को नई दिशा भी दी। ये शब्द थे ‘गाली’, ‘आप-दा’ और ‘झूठा’। इन शब्दों का इस्तेमाल सीधे-सीधे विपक्षी दलों के खिलाफ किया गया, और इसने पूरे चुनावी माहौल को एक नई दिशा दी।

'गाली'—क्या आम आदमी पार्टी ने बीजेपी को गालीबाज कहकर सियासी हमला किया?

इस बार का चुनावी प्रचार कुछ अलग ही रंग में रंगा था, और इसमें सबसे ज्यादा चर्चा जिस शब्द की हुई, वह था ‘गाली’। आम आदमी पार्टी ने बीजेपी के नेताओं पर गाली देने का आरोप लगाया। AAP के नेता अरविंद केजरीवाल ने यह दावा किया कि बीजेपी के उम्मीदवार गाली देते हैं और गालियों से उनका प्रचार होता है। केजरीवाल ने सीधे तौर पर आरोप लगाया कि बीजेपी के दो प्रमुख उम्मीदवार—अमेह बिधूड़ी और प्रवेश वर्मा—गालियों का इस्तेमाल करते हैं।

आम आदमी पार्टी ने अपनी सोशल मीडिया पोस्ट्स में बीजेपी को ‘गालीबाज पार्टी’ का तमगा देते हुए कई बार इसे सार्वजनिक रूप से जाहिर किया। पार्टी का कहना था कि दिल्ली के लोग अब बीजेपी के इस गाली-गलौच से परेशान हो गए हैं और वे इसे कतई बर्दाश्त नहीं करेंगे। AAP ने अपने प्रचार में इसे महत्वपूर्ण मुद्दा बना दिया और इस मुद्दे को जनता के बीच रखते हुए बीजेपी को तगड़ा राजनीतिक संदेश दिया।

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'आप-दा'—बीजेपी का हमला, AAP को 'आपदा' बताया

अगर आप यह सोच रहे थे कि इस चुनावी बहस में शब्दों की गहमागहमी खत्म हो गई तो ऐसा नहीं था। दिल्ली चुनाव में एक और शब्द का बड़ा बोलबाला रहा, और वह था ‘आप-दा’। यह शब्द खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दिल्ली चुनाव प्रचार की शुरुआत में दिया था। मोदी ने दिल्ली में एक रैली के दौरान आम आदमी पार्टी को 'आपदा' कहा, और इसे अब दिल्ली के लिए एक बड़ी संकट के रूप में पेश किया।

प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि आम आदमी पार्टी, दिल्ली और यहां के लोगों के लिए किसी 'आपदा' से कम नहीं है। इसके बाद बीजेपी के नेता भी इस शब्द का इस्तेमाल करने लगे और अरविंद केजरीवाल की पार्टी को ‘आप-दा’ कहकर संबोधित करने लगे। बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा और गृह मंत्री अमित शाह ने अपनी रैलियों में आम आदमी पार्टी को ‘AAP-दा’ कहकर करारा हमला किया और इसे दिल्ली की सियासत के लिए खतरे की घंटी बताया।

बीजेपी का यह शब्द खेल पूरे चुनाव में चलता रहा और इसने दिल्ली के चुनावी माहौल को पूरी तरह से बदला।

'झूठा'—कांग्रेस का हमला, केजरीवाल को बताया झूठा 

कांग्रेस ने इस बार के चुनाव प्रचार में 'झूठा' शब्द का सबसे ज्यादा इस्तेमाल किया। कांग्रेस के नेताओं ने अरविंद केजरीवाल को झूठा बताने में कोई कसर नहीं छोड़ी। कांग्रेस ने केजरीवाल के द्वारा किए गए वादों और उनके बयान को झूठा करार दिया। राहुल गांधी, प्रियंका गांधी और मल्लिकार्जुन खरगे ने केजरीवाल को झूठ बोलने का आरोप लगाया और कहा कि वे दिल्ली की जनता से किए गए वादों को पूरा करने में विफल रहे।

राहुल गांधी ने केजरीवाल को याद दिलाया कि वह यमुना की सफाई का वादा करके सत्ता में आए थे, लेकिन आज भी दिल्ली के लोग गंदा पानी पीने को मजबूर हैं। इसके अलावा, मल्लिकार्जुन खरगे ने कहा कि केजरीवाल हरियाणा से आने वाले पानी में जहर मिलने का दावा कर रहे हैं, लेकिन मोदी सरकार का कहना है कि यह सब झूठ है।

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कांग्रेस ने अपने इस आरोप के जरिए जनता में यह संदेश दिया कि केजरीवाल का दावा केवल जनता को धोखा देने के लिए था और उन्होंने सत्ता में आने के बाद अपने वादों को पूरा करने में कोई रुचि नहीं दिखाई।

सियासी जंग के इन शब्दों की क्या है भूमिका?

इस चुनाव में 'गाली', 'आप-दा' और 'झूठा' जैसे शब्द न केवल सियासी बयानबाजी के औजार बने, बल्कि इन शब्दों के जरिए पार्टियों ने अपने विरोधियों को घेरने और जनता के बीच एक अलग छवि बनाने की कोशिश की। AAP ने बीजेपी को गालियों के लिए जिम्मेदार ठहराया, बीजेपी ने AAP को ‘आपदा’ और ‘AAP-दा’ से जोड़ा, और कांग्रेस ने केजरीवाल को झूठा साबित करने के लिए इन शब्दों का जोर-शोर से इस्तेमाल किया।

इन शब्दों के जरिए तीनों पार्टियों ने चुनावी प्रचार को न केवल तेज किया, बल्कि अपने विरोधियों की छवि को धूमिल करने का भी प्रयास किया। इन शब्दों ने सियासी लड़ाई को एक नई दिशा दी और चुनाव प्रचार में शब्दों के चुनाव की महत्ता को सामने रखा।

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