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बीजेपी नेता ने दिया अनोखा सुझाव, कहा- गरबा पंडाल में सभी श्रद्धालुओं को पिलाया जाए गौ मूत्र

चिंटू वर्मा का कहना है कि गरबा पंडाल में कई तरह के लोग आते हैं, और उनकी पहचान करना मुश्किल होता है। इस वजह से, यदि हर व्यक्ति को गौ मूत्र दिया जाए, तो यह सुनिश्चित किया जा सकेगा कि केवल हिंदू श्रद्धालु ही पंडाल में प्रवेश कर सकें।
07:25 PM Sep 30, 2024 IST | Vibhav Shukla

नवरात्रि का पर्व अब नजदीक है और इसे देशभर में बड़े उत्साह के साथ मनाने की तैयारी चल रही है। मध्यप्रदेश के इंदौर में भी गरबा उत्सव की तैयारियाँ धूमधाम से हो रही हैं। इसी बीच, इंदौर के बीजेपी जिला अध्यक्ष चिंटू वर्मा ने एक विवादास्पद और अनोखा सुझाव दिया है। उन्होंने कहा है कि गरबा पंडाल में आने वाले सभी श्रद्धालुओं को गौ मूत्र पिलाना चाहिए। उनका तर्क है कि हिंदू समुदाय के लोगों को इससे कोई आपत्ति नहीं होगी और यह कदम पंडाल में आने वाले लोगों की पहचान सुनिश्चित करेगा।

गैर-हिंदुओं की पहचान के लिए गौ मूत्र

चिंटू वर्मा का कहना है कि गरबा पंडाल में कई तरह के लोग आते हैं, और उनकी पहचान करना मुश्किल होता है। उन्होंने यह भी कहा कि कुछ गैर-हिंदू लोग गरबा पंडाल में आकर तिलक लगवाते हैं, जिससे कई समस्याएँ उत्पन्न होती हैं। इस वजह से, यदि हर व्यक्ति को गौ मूत्र दिया जाए, तो यह सुनिश्चित किया जा सकेगा कि केवल हिंदू श्रद्धालु ही पंडाल में प्रवेश कर सकें।

इंदौर में इस तरह के विवादास्पद सुझाव नई बात नहीं हैं। पिछले वर्षों में भी कुछ स्थानों पर यह देखा गया था कि पंडालों में बाहरी लोगों की एंट्री रोकने के लिए बोर्ड लगाकर लिखा गया था कि "गैर-हिंदू एंट्री न करें"। हाल ही में, इंदौर से मिली खबरों में यह भी सामने आया था कि दो दिनों में कुछ मुस्लिम युवकों ने गरबा पंडाल में चोरी-छिपे प्रवेश किया था, जिन्हें बाद में पकड़ लिया गया। इन पर आरोप था कि उन्होंने अपनी पहचान छिपाकर पंडाल में घुसने की कोशिश की और लड़कियों पर अश्लील टिप्पणियाँ कीं।

उज्जैन में बढ़ी सतर्कता

इन घटनाओं के बाद, उज्जैन में गरबा उत्सव के दौरान भाग लेने वालों के आईडी कार्ड चेक करने की प्रक्रिया को सख्त किया गया। इसके अलावा, हर व्यक्ति को पंडाल में प्रवेश करने से पहले तिलक भी लगवाना पड़ा। इन सभी घटनाओं ने यह साबित कर दिया है कि गरबा पंडालों में सुरक्षा और पहचान को लेकर काफी जागरूकता बढ़ी है।

चिंटू वर्मा के इस सुझाव पर विभिन्न प्रतिक्रियाएँ सामने आई हैं। कुछ लोग इसे धार्मिक पहचान के संरक्षण के लिए एक उचित कदम मानते हैं, जबकि कई इसे भेदभावपूर्ण और कट्टरता का उदाहरण मान रहे हैं। समाज के एक वर्ग का मानना है कि इस प्रकार के कदम सामाजिक समरसता को प्रभावित कर सकते हैं।

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