संगठन, सोशल इंजीनियरिंग और रणनीति… 2 दिन के गुजरात मंथन से क्या कांग्रेस BJP को दे पाएगी सीधी चुनौती?
कांग्रेस आज से गुजरात के अहमदाबाद में अपने दो-दिवसीय अधिवेशन की शुरुआत कर रही है। 64 साल बाद गुजरात में हो रहा यह 86वां पूर्ण अधिवेशन पार्टी के लिए नया रास्ता तलाशने का मौका है। हाल के चुनावी उतार-चढ़ाव—2024 के लोकसभा में संजीवनी, फिर हरियाणा, महाराष्ट्र और दिल्ली में हार के बाद कांग्रेस के सामने संगठन को मजबूत करने और बीजेपी को टक्कर देने की रणनीति बनाने की चुनौती है। क्या यह मंथन कांग्रेस को जीत का मंत्र दे पाएगा? आइए, इसे आसान लहज़े में समझते हैं।
कांग्रेस के अधिवेशन की क्या रहेगी रूपरेखा?
‘न्यायपथ: संकल्प, समर्पण, संघर्ष’ की टैगलाइन के साथ यह अधिवेशन दो दिन तक चलेगा। पहले दिन (8 अप्रैल) सरदार वल्लभभाई पटेल राष्ट्रीय स्मारक में कांग्रेस वर्किंग कमेटी (CWC) की बैठक होगी, जिसमें 262 नेता हिस्सा लेंगे। अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे इसकी अगुआई करेंगे। दूसरे दिन (9 अप्रैल) साबरमती रिवरफ्रंट पर CWC के साथ-साथ प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष, कांग्रेस शासित राज्यों के मुख्यमंत्री और वरिष्ठ नेता शामिल होंगे।
यह मंच संगठन सुधार और सियासी एजेंडे को आकार देने का होगा। कांग्रेस नेता पवन खेड़ा का कहना है कि गुजरात—गांधी और पटेल की धरती—पार्टी को नई दिशा दिखाएगा, क्योंकि समाज का हर वर्ग बीजेपी से ठगा हुआ महसूस कर रहा है।
कांग्रेस करेगी जमीनी ताकत बढ़ाने की कवायद तेज़
कांग्रेस ने 2025 को ‘संगठन का साल’ घोषित किया है। अहमदाबाद अधिवेशन इसी का पहला बड़ा कदम है। पार्टी समझ चुकी है कि बिना मजबूत संगठन के बीजेपी से मुकाबला नामुमकिन है। राहुल गांधी और खरगे ने जिलास्तर पर संगठन को चुस्त करने की बात कही है। बिहार में कुछ महीनों में संगठन को मजबूत करने का प्रयोग कामयाब रहा, जहां नए नेताओं को मौका दिया गया। सूत्रों के मुताबिक, अधिवेशन में जिला अध्यक्षों को ज्यादा अधिकार, जवाबदेही और उम्मीदवार चयन में भूमिका देने जैसे प्रस्ताव आ सकते हैं। मगर सवाल यह है—ज्यादातर पुराने चेहरों के साथ नई शुरुआत कैसे होगी? कांग्रेस को कार्यकर्ताओं को भरोसा दिलाना होगा कि यह सिर्फ वादा नहीं, अमल का वक्त है।
मुद्दों पर स्पष्ट रुख अपनाते हुए तय करेगी सियासी एजेंडा
अधिवेशन में कांग्रेस अपने राजनीतिक और आर्थिक रुख को साफ करेगी। रणदीप सुरजेवाला CWC के सामने कार्यपत्र पेश करेंगे, जिसमें सामाजिक न्याय, रोजगार, महंगाई, शिक्षा, विदेश नीति और निजी क्षेत्र में आरक्षण जैसे मुद्दों पर चर्चा होगी। पार्टी एक व्यापक प्रस्ताव ला सकती है या मुद्दों पर अलग-अलग रिजॉल्यूशन पास कर सकती है।
खास तौर पर दलित, ओबीसी और आदिवासी समाज के लिए मौजूदा आरक्षण की रक्षा और निजी क्षेत्र में आरक्षण का वादा अहम हो सकता है। कांग्रेस संविधान पर हमले और धार्मिक ध्रुवीकरण जैसे मसलों पर भी बीजेपी को घेरेगी। यह एजेंडा पार्टी को बीजेपी के खिलाफ मजबूत नैरेटिव दे सकता है।
क्या है कांग्रेस की सोशल इंजिनियरिंग का फार्मूला?
राहुल गांधी की अगुआई में कांग्रेस सामाजिक न्याय को हथियार बना रही है। जातिगत जनगणना, 50% आरक्षण की सीमा बढ़ाने और रोजगार जैसे मुद्दों के जरिए दलित, ओबीसी, आदिवासी और अल्पसंख्यक वोटरों को साधने की रणनीति है। पहले कांग्रेस का कोर वोटबैंक दलित-मुस्लिम-ब्राह्मण था, लेकिन अब वह ओबीसी और अति पिछड़ा वर्ग को जोड़कर नई सोशल इंजीनियरिंग की राह पर है। बिहार में रोजगार पर पदयात्रा इसका उदाहरण है। अधिवेशन में इसे देशव्यापी बनाने का फैसला हो सकता है। मगर क्या यह रणनीति बीजेपी के हिंदुत्व कार्ड को काट पाएगी?
2025-26 के लिए क्या है कांग्रेस का प्लान?
2025 में बिहार और 2026 में पश्चिम बंगाल, असम, केरल, तमिलनाडु जैसे राज्यों में विधानसभा चुनाव हैं। अधिवेशन में इनके लिए रोडमैप बनेगा। लोकसभा 2024 में 99 सीटों के साथ कांग्रेस में जोश आया था, लेकिन हरियाणा, महाराष्ट्र और दिल्ली की हार ने उसे झटका दिया। गुजरात में भी 30 साल से सत्ता से बाहर है। ऐसे में अधिवेशन से नई उम्मीद जगाने की कोशिश होगी। पार्टी को बीजेपी के खिलाफ सीधे मुकाबले में रणनीति बनानी होगी, जहां वह अक्सर कमजोर पड़ती है।
बीजेपी से मुकाबला: कितनी तैयारी?
बीजेपी का ‘कांग्रेस मुक्त भारत’ नारा अब पुराना पड़ चुका है, लेकिन उसकी संगठनात्मक ताकत और चुनावी मशीनरी से पार पाना कांग्रेस के लिए चुनौती है। अधिवेशन में बीजेपी के खिलाफ चुनिंदा मुद्दों पर लड़ाई और मजबूत रणनीति पर जोर हो सकता है। राहुल और खरगे हर कदम पर विरोध की बजाय जनता से जुड़े मसलों को उठाने की बात कर रहे हैं। मगर जिन राज्यों में बीजेपी से सीधा टक्कर है, वहां कांग्रेस को अभी लंबा रास्ता तय करना है।
तो क्या निकलेगा जीत का मंत्र?
अहमदाबाद अधिवेशन कांग्रेस के लिए टर्निंग पॉइंट हो सकता है। संगठन पर जोर, मुद्दों पर स्पष्टता और नई सोशल इंजीनियरिंग से पार्टी बीजेपी को चुनौती देने की राह बना सकती है। लेकिन यह तभी मुमकिन होगा, जब वादों को अमल में बदला जाए। गुजरात की धरती से गांधी और पटेल की प्रेरणा लेकर कांग्रेस अगर जमीनी स्तर पर उतरती है, तो जीत का मंत्र मिल सकता है। नहीं तो यह मंथन भी एक और बैठक बनकर रह जाएगा।
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