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जनसंघ से शुरू, जनजन तक पहुंचा – 44 सालों में कमल कैसे बना देश का सिरमौर?

6 अप्रैल 1980 से शुरू हुई भाजपा की यात्रा राम मंदिर आंदोलन से मोदी युग तक सत्ता, संगठन और सिद्धांतों की मिसाल बनी।
01:24 PM Apr 06, 2025 IST | Rohit Agrawal

BJP Foundation Day: 6 अप्रैल 1980—वह ऐतिहासिक दिन जब दिल्ली के फिरोजशाह कोटला मैदान में भारतीय राजनीति का एक नया अध्याय लिखा गया। इस दिन भारतीय जनता पार्टी (BJP) का जन्म हुआ, जिसने सिर्फ दो सीटों से शुरुआत करके आज देश की सबसे बड़ी राजनीतिक शक्ति का ताज पहन लिया है। अटल बिहारी वाजपेयी के विजन से लेकर नरेंद्र मोदी के नेतृत्व तक, यह कहानी सत्ता की नहीं, बल्कि संघर्ष, विश्वास और जनता के सपनों को साकार करने की है। आज जब भाजपा का कमल न सिर्फ संसद बल्कि देश के कोने-कोने में खिल रहा है, तो चलिए इस स्थापना दिवस पर उसके शानदार सफर को फिर से जीते हैं।

जब जनसंघ की नींव ने रखी BJP की बुनियाद

भाजपा की जड़ें 1951 में स्थापित भारतीय जनसंघ तक जाती हैं, जिसकी नींव डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने रखी थी। उनका सपना था एक ऐसा भारत जो सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की बुनियाद पर खड़ा हो। "एक देश, एक संविधान" का नारा देकर उन्होंने जम्मू-कश्मीर के विशेष दर्जे के खिलाफ लड़ाई शुरू की। 1953 में उनकी रहस्यमय मौत के बाद जनसंघ ने धीरे-धीरे अपनी पहचान बनाई, लेकिन कांग्रेस के साम्राज्य के आगे उसे संघर्ष करना पड़ा।

1975 में इंदिरा गांधी के आपातकाल ने देश को झकझोर दिया, और 1977 में जनसंघ ने अन्य दलों के साथ मिलकर जनता पार्टी बनाई, जिसने पहली बार कांग्रेस को हराया। मगर यह गठबंधन ज्यादा दिन नहीं चला, और जनसंघ के नेताओं ने एक नई पार्टी बनाने का फैसला किया।

6 अप्रैल 1980: वह दिन जब खिला कमल

दिल्ली के फिरोजशाह कोटला मैदान में 6 अप्रैल 1980 को भारतीय जनता पार्टी का जन्म हुआ। अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी और भैरो सिंह शेखावत जैसे दिग्गज नेताओं ने इस नई पार्टी की कमान संभाली। कमल का फूल चुना गया इसका प्रतीक—जो कीचड़ में भी खिलकर अपनी चमक बिखेरता है। मगर शुरुआती दिन आसान नहीं थे। 1984 के लोकसभा चुनाव में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद उठी सहानुभूति की लहर में भाजपा को सिर्फ दो सीटें मिलीं। तब अटल जी ने कहा था, "अंधेरा छंटेगा, सूरज निकलेगा, कमल खिलेगा।" और यह वादा आगे चलकर सच साबित हुआ।

राम मंदिर आंदोलन से मिला कमल को बल

1980 का दशक भाजपा के लिए निर्णायक साबित हुआ। राम जन्मभूमि आंदोलन ने पार्टी को एक नई पहचान दी। 1990 में लालकृष्ण आडवाणी की रथ यात्रा ने उत्तर भारत में भाजपा की जड़ें मजबूत कीं। 1991 के चुनाव में पार्टी ने 120 से ज्यादा सीटें जीतीं। 1992 में बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद भले ही विवाद हुए, लेकिन जनता का भरोसा नहीं डगमगाया। यह वह दौर था जब भाजपा ने साबित किया कि वह सिर्फ सत्ता के लिए नहीं, बल्कि अपनी विचारधारा के लिए लड़ रही है। आज अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण इसी संकल्प की सफलता है।

अटल युग से मोदी युग तक: सत्ता की लिखी गई नई इबारत

1बता दें कि 1996 के आम चुनावों में भाजपा सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी, लेकिन सरकार सिर्फ 13 दिन चली। 1998 में अटल बिहारी वाजपेयी भारत के प्रधानमंत्री बने, मगर 13 महीने बाद ही सरकार गिर गई। वहीं 1999 में NDA गठबंधन बनाकर उन्होंने पांच साल की सरकार चलाई। इस दौरान पोखरण परमाणु परीक्षण और कारगिल युद्ध में जीत जैसे ऐतिहासिक फैसले लिए गए। मगर 2004 में "इंडिया शाइनिंग" के बावजूद वह चुनाव हार गए। उसके बाद 2014 में नरेंद्र मोदी की अगुवाई में भाजपा ने ऐतिहासिक जीत दर्ज कर शानदार वापसी की ।

"अबकी बार, मोदी सरकार" के नारे के साथ पार्टी ने 282 सीटें जीतीं। 2019 में 303 और 2024 में 240 सीटों के साथ NDA ने 292 सीटें हासिल कर मोदी को तीसरी बार प्रधानमंत्री बनाया। अनुच्छेद 370 हटाना, तीन तलाक कानून और राम मंदिर निर्माण जैसे फैसलों ने भाजपा को नई ऊंचाइयों पर पहुंचा दिया।

'हर बूथ मजबूत' संकल्प के साथ संगठन की मजबूत पकड़

भाजपा आज सिर्फ एक पार्टी नहीं, बल्कि एक मजबूत संगठन है। राष्ट्रीय लेवल से लेकर बूथ स्तर तक बीजेपी का कार्यकर्ता राष्ट्रवाद की विचारधारा और समर्पण के भाव से कार्य करता है। कोरोना काल में इसी संगठन के कार्यकर्ताओं ने राशन, दवाइयां और ऑक्सीजन पहुंचाकर जनता का दिल जीता। नरेंद्र मोदी, अमित शाह, योगी आदित्यनाथ जैसे नेताओं के कारण पार्टी का कद और बढ़ा है।

हर साल 6 अप्रैल को स्थापना दिवस पर झंडारोहण, पदयात्रा और सेवा कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। प्रधानमंत्री और पार्टी अध्यक्ष कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हैं और आगे की रणनीति तय करते हैं। दो सीटों से शुरू हुआ यह सफर आज 300 से ज्यादा सीटों तक पहुंच चुका है, जो यह साबित करता है कि भाजपा का कमल न सिर्फ खिला है, बल्कि पूरे देश में महक रहा है।

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