बिहार में कांग्रेस को बड़ा झटका! कन्हैया कुमार की पदयात्रा से दूरी, लालू यादव के ‘राजनीतिक दबाव’ का असर?
Bihar Assembly Elections 2025: बिहार की राजनीति में हलचल तेज हो गई है... कांग्रेस की ‘पलायन रोको, नौकरी दो’ पदयात्रा को लेकर उत्साह चरम पर था, लेकिन एक बड़े चेहरे की गैरमौजूदगी ने सियासी गलियारों में नई चर्चाओं को जन्म दे दिया। यह नेता कोई और नहीं, बल्कि कांग्रेस के फायरब्रांड युवा नेता कन्हैया कुमार हैं। सुपौल में 28 मार्च 2025 को कांग्रेस की यह महत्वपूर्ण यात्रा जबरदस्त जोश के साथ निकली, लेकिन कन्हैया कुमार की अनुपस्थिति ने कई सवाल खड़े कर दिए।(Bihar Assembly Elections 2025) उनकी गैरमौजूदगी में एनएसयूआई के राष्ट्रीय अध्यक्ष वरुण चौधरी और कांग्रेस जिलाध्यक्ष प्रो. विमल कुमार यादव ने यात्रा का नेतृत्व किया। इसने अटकलों को और हवा दी कि क्या कन्हैया किसी खास रणनीति के तहत इस यात्रा से दूर रहे, या फिर इसके पीछे एक बार फिर राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) प्रमुख लालू प्रसाद यादव की प्रेशर पॉलिटिक्स काम कर रही है?
क्या लालू यादव की सियासी गणित कांग्रेस पर भारी?
बिहार में कांग्रेस और आरजेडी के रिश्ते हमेशा से दिलचस्प रहे हैं। गठबंधन के बावजूद कई मौकों पर दोनों पार्टियों के बीच खींचतान देखने को मिली है. ऐसे में सवाल उठता है कि क्या कन्हैया कुमार पर आरजेडी का कोई अप्रत्यक्ष दबाव था, जिसके कारण उन्होंने इस यात्रा से दूरी बना ली? या फिर यह कांग्रेस के अंदरूनी समीकरणों का हिस्सा था? अब यह देखना दिलचस्प होगा कि कन्हैया कुमार खुद अपनी गैरमौजूदगी पर क्या सफाई देते हैं और यह मामला आगे क्या मोड़ लेता है।
कन्हैया कुमार की गैरमौजूदगी ने बढ़ाए सवाल...
कांग्रेस के तेजतर्रार युवा नेता कन्हैया कुमार इस पदयात्रा के शुरुआती चरणों से सक्रिय रूप से जुड़े थे. उन्होंने भितिहरवा गांधी आश्रम, पश्चिम चंपारण से इस यात्रा की शुरुआत की थी। उनकी प्रभावशाली भाषण शैली और बेरोजगारी-पलायन जैसे मुद्दों पर सरकार को घेरने की क्षमता ने उन्हें कांग्रेस का बड़ा चेहरा बना दिया है। ऐसे में इस महत्वपूर्ण यात्रा से उनकी अनुपस्थिति स्वाभाविक रूप से सवाल खड़े करती है.
क्या यह कन्हैया की रणनीति का हिस्सा है?
एक संभावना यह जताई जा रही है कि कन्हैया ने जानबूझकर इस पदयात्रा से दूरी बनाई हो। यह उनकी अपनी राजनीतिक रणनीति का हिस्सा हो सकता है, ताकि वे कांग्रेस के भीतर अपनी स्थिति को मजबूत कर सकें या किसी बड़े सियासी कदम की तैयारी कर रहे हों। हालांकि, यह तर्क कमजोर पड़ता है, क्योंकि यह यात्रा कांग्रेस की बिहार में जमीन मजबूत करने की कोशिश का हिस्सा थी, और कन्हैया इसका नेतृत्व करने वाले सबसे प्रमुख चेहरों में से एक थे।
लालू की प्रेशर पॉलिटिक्स: कितना सच?
दूसरी ओर, कन्हैया की अनुपस्थिति को लालू प्रसाद यादव और आरजेडी की प्रेशर पॉलिटिक्स से जोड़कर देखा जा रहा है। बिहार की सियासत में लालू और तेजस्वी यादव महागठबंधन के लिए निर्णायक रहे हैं। लेकिन कन्हैया का उभरता कद तेजस्वी के लिए चुनौती बन सकता है। दोनों ही युवा नेता बेरोजगारी और पलायन जैसे मुद्दों पर जनता के बीच लोकप्रिय हैं, जिससे यह संभव है कि आरजेडी कन्हैया को अपने लिए खतरा मान रही हो।
कांग्रेस...आरजेडी के रिश्तों में तनाव?
पिछले कुछ महीनों में कांग्रेस और आरजेडी के बीच तनाव के संकेत मिले हैं। जब कन्हैया ने पदयात्रा शुरू की थी, तब भी खबरें आई थीं कि लालू और तेजस्वी इसे पसंद नहीं कर रहे थे। तेजस्वी ने 2020 में नौकरी के मुद्दे पर चुनाव लड़ा था और 2025 के लिए भी उनकी रणनीति इसी के इर्द-गिर्द घूम रही है। ऐसे में कन्हैया का उभार तेजस्वी की रणनीति को कमजोर कर सकता है। चर्चा यह भी है कि लालू ने कांग्रेस पर दबाव बनाया हो कि कन्हैया को इस यात्रा से दूर रखा जाए।
क्या कांग्रेस के भीतर अंतर्कलह कारण है?
एक और पहलू यह भी हो सकता है कि कन्हैया की अनुपस्थिति कांग्रेस के भीतर गुटबाजी का नतीजा हो। बिहार कांग्रेस में पहले से ही दो धड़े दिखाई दे रहे हैं... कन्हैया और बिहार प्रभारी कृष्णा अल्लावरु के साथ, और दूसरा अखिलेश प्रसाद सिंह जैसे पुराने नेताओं के समर्थन में. कन्हैया की बढ़ती लोकप्रियता और राहुल गांधी का उन पर भरोसा शायद कुछ नेताओं को असहज कर रहा हो।
गैरमौजूदगी से किसे होगा फायदा?
कन्हैया की गैरमौजूदगी का असर कई स्तरों पर हो सकता है..कांग्रेस की एकता और संगठनात्मक मजबूती पर सवाल उठते हैं। बीजेपी और जेडीयू को मौका मिल सकता है कि वे इसे कांग्रेस की कमजोरी के रूप में पेश करें, अगर यह लालू की प्रेशर पॉलिटिक्स का नतीजा है, तो यह महागठबंधन के भविष्य के लिए खतरे की घंटी हो सकता है।
ग्रेस महागठबंधन में अपनी स्थिति मजबूत कर पाएगी?
2025 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस अगर अपनी स्वतंत्र पहचान बनाना चाहती है, तो उसे आरजेडी के साथ रिश्तों को सावधानी से संभालना होगा। कन्हैया कुमार की पदयात्रा से दूरी के पीछे कई कारण हो सकते हैं। हालांकि, उनकी अनुपस्थिति ने निश्चित रूप से सियासी हलचल मचा दी है. आने वाले दिनों में यह स्पष्ट होगा कि यह महज एक संयोग था या इसके पीछे कोई बड़ा सियासी खेल चल रहा था।
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