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'पंचायत से संसद' तक भाजपा को सत्ता में लाने वाले अमित शाह कैसे बने देश के सबसे शक्तिशाली नेता? पढ़ें BJP के चाणक्य का ‘जेल से गृह मंत्री’ तक का सफ़र

आज, 22 अक्टूबर को केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह अपना 60वां जन्मदिन मना रहे हैं। भारतीय राजनीति में अहम भूमिका निभाने वाले शाह का सियासी सफर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) से शुरू हुआ था।
11:53 AM Oct 22, 2024 IST | Vibhav Shukla

amit shah birthday: आज, 22 अक्टूबर को केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह अपना 60वां जन्मदिन मना रहे हैं। इस विशेष अवसर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के 60वें जन्मदिन पर उन्हें बधाई देते हुए सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर लिखा,

"श्री अमित शाह जी को उनके जन्मदिन पर शुभकामनाएं। वह एक मेहनती नेता हैं, जिन्होंने अपना जीवन भाजपा को मजबूत करने के लिए समर्पित कर दिया है। उन्होंने एक असाधारण प्रशासक के रूप में अपनी पहचान बनाई है और विकसित भारत के सपने को साकार करने के लिए कई प्रयास कर रहे हैं। उनके लंबे और स्वस्थ जीवन के लिए प्रार्थना करता हूं।"

22 अक्टूबर 1964 को गुजरात में जन्में अमित शाह ने भारतीय राजनीति में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। अपने करियर की शुरुआत से ही उन्होंने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के विकास में अहम योगदान दिया। पार्टी के संगठनात्मक ढांचे को मजबूत करने से लेकर विभिन्न महत्वपूर्ण मंत्रालयों का कार्यभार संभालने तक, अमित शाह ने राजनीतिक रणनीतियों और प्रशासन में अपनी क्षमताओं का परिचय दिया है। उनके नेतृत्व में भाजपा ने कई चुनावी सफलताएं हासिल की हैं।

भाजपा के 'चाणक्य' कहे जाने वाले शाह, शतरंज खेलने, क्रिकेट देखने और संगीत में दिलचस्पी रखते हैं। शाह ने 'पंचायत से संसद' तक भाजपा को सत्ता में लाने का सपना पूरा करने के लिए कड़ी मेहनत की है। जुलाई 2014 में भाजपा अध्यक्ष बनने के बाद, उन्होंने देशभर में दौरे किए और पार्टी कार्यकर्ताओं को समर्पण और मेहनत के साथ काम करने की प्रेरणा दी। उनके नेतृत्व में भाजपा ने कई चुनावों में शानदार जीत हासिल की है, जिससे पार्टी की स्थिति और मजबूत हुई है।

अमित शाह का सियासी सफर

अमित शाह का जन्म 22 अक्टूबर, 1964 को मुंबई में गुजराती माता-पिता कुसुमबेन और अनिलचंद्र शाह के घर हुआ। उन्होंने अपनी स्कूली शिक्षा अपने पैतृक गांव मनसा, गुजरात में पूरी की और बाद में अपने परिवार के साथ अहमदाबाद चले गए। बचपन से ही देशभक्ति और पढ़ाई के प्रति उत्साही, अमित शाह महान राष्ट्रवादियों की जीवनियों से प्रेरित रहे हैं।

16 साल की उम्र में, शाह ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) से जुड़कर अपना राजनीतिक सफर शुरू किया। 1980 में उन्होंने एक स्वयंसेवक के रूप में संघ में कदम रखा और छात्र संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (ABVP) की गतिविधियों में भी सक्रिय भागीदारी की। उनके संगठनात्मक कौशल और वक्तृत्व के कारण, दो साल के अंदर ही उन्हें ABVP की गुजरात इकाई का संयुक्त सचिव बनाया गया।

1987 में, अमित शाह ने भारतीय जनता युवा मोर्चा (BJYM) में शामिल होकर अपनी राजनीतिक यात्रा की शुरुआत की। 1997 में, उन्होंने गुजरात के सरखेज विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ा और भारी मतों के अंतर से जीत हासिल की। वह इस सीट से लगातार चार बार जीतते रहे, और हर बार उनका वोट का अंतर बढ़ता गया।

नवंबर 1997 में, शाह ने नारणपुरा सीट से भी चुनाव जीता, जहां उन्होंने 63,235 वोटों के अंतर से जीत हासिल की। विधायक रहते हुए, उन्होंने अपने क्षेत्र के विकास के लिए हजारों करोड़ रुपये जुटाए।

34 साल की उम्र में, 1998 में, उन्हें भाजपा की गुजरात इकाई का सचिव बनाया गया। अगले साल उन्हें उपाध्यक्ष का पद सौंपा गया। 2001 में, अमित शाह को भाजपा के सहकारी विंग का राष्ट्रीय समन्वयक नियुक्त किया गया, जहां उनकी कार्यक्षमता को देखकर सहकर्मियों ने उन्हें ‘सहकारी आंदोलन के पितामह’ का खिताब दिया।

बीजेपी में शामिल होने के बाद अमित शाह ने कई सफलताएँ हासिल कीं। उनकी सबसे बड़ी उपलब्धि 2002 में तब मिली जब उन्हें गुजरात का गृह मंत्री बनाया गया। उनकी काबिलियत को देखते हुए, 2014 में उन्हें पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष नियुक्त किया गया। उनके नेतृत्व में बीजेपी ने चुनावों में जोरदार जीत हासिल की और 10 साल बाद फिर से सत्ता में आई। अमित शाह लंबे समय तक पार्टी अध्यक्ष रहे, और बाद में जेपी नड्डा को ये जिम्मेदारी सौंपी गई। जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में बीजेपी की सरकार दूसरी बार बनी, तो अमित शाह को देश का गृह मंत्री बनाया गया।

 

वर्षघटना/उपलब्धिविवरण
1964जन्म22 अक्टूबर, 1964 को मुंबई में जन्म
1980RSS में शामिल होनाराष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) से राजनीतिक यात्रा की शुरुआत
1982ABVP में प्रवेशअखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (ABVP) में सक्रियता
1987BJYM में शामिल होनाभारतीय जनता युवा मोर्चा (BJYM) में कार्य करना
1997पहली बार विधायक बननासरखेज विधानसभा क्षेत्र से भारी मतों से जीत
1998भाजपा के गुजरात इकाई के सचिव बनेसंगठनात्मक कौशल का प्रदर्शन
2001गृह मंत्री का पदगुजरात के गृह मंत्री बने
2010सोहराबुद्दीन एनकाउंटर मामले में गिरफ्तारआरोप: हत्या और अपहरण, 2010 में आत्मसमर्पण किया
2012चुनावी राजनीति में वापसीगुजरात विधानसभा चुनाव में भाग लिया और जीते
2014भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनेभाजपा को 2014 के लोकसभा चुनावों में जीत दिलाई
2019दूसरी बार भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष बने2019 के लोकसभा चुनाव में पार्टी को फिर से जीत दिलाई
2019गृह मंत्री बनेनरेंद्र मोदी की सरकार में गृह मंत्री के रूप में कार्यभार संभाला

 

अमित शाह को जेल भी जाना पड़ा 

देश के गृहमंत्री अमित शाह के लिए 2010 से 2012 का समय काफी चुनौतीपूर्ण रहा। उन्हें सोहराबुद्दीन शेख एनकाउंटर मामले में जेल जाना पड़ा और दो साल के लिए गुजरात से बाहर रहना पड़ा।

यह मामला 23 नवंबर 2005 का है, जब गैंगस्टर सोहराबुद्दीन शेख अपनी पत्नी कौसर बी के साथ बस में हैदराबाद से अहमदाबाद जा रहा था। करीब 1:30 बजे गुजरात पुलिस के एंटी-टेरर स्क्वॉड ने सांगली में उनकी बस रोककर उन्हें उतार लिया। तीन दिन बाद, 26 नवंबर को सोहराबुद्दीन की गोली लगने से मौत हो गई, जिसे पुलिस ने एनकाउंटर करार दिया। इसके बाद उसके साथी तुलसी प्रजापति का भी एनकाउंटर कर दिया गया।

सोहराबुद्दीन का परिवार मामले को सुप्रीम कोर्ट ले गया, जिसके बाद इसकी जांच गुजरात सीआईडी और सीबीआई ने की। सीबीआई जांच के दौरान गुजरात सीआईडी के इंस्पेक्टर वीएल सोलंकी ने अमित शाह का नाम लिया, और उन पर आरोप लगाया गया कि उन्होंने मार्बल व्यापारियों के कहने पर सोहराबुद्दीन का एनकाउंटर करवाया।

जुलाई 2010 में अमित शाह ने आत्मसमर्पण किया और उन्हें जेल भेज दिया गया। उन पर अपहरण, हत्या और सबूत मिटाने के आरोप लगे। तीन महीने बाद, अक्टूबर 2010 में उन्हें जमानत मिल गई, लेकिन कोर्ट ने उन्हें दो साल तक गुजरात नहीं आने की शर्त रखी। इस दौरान वे मुंबई और दिल्ली में रहे।

2012 के गुजरात विधानसभा चुनाव में, उन्होंने कोर्ट से अनुमति लेकर चुनाव लड़ा और जीत हासिल की। 2014 में नरेंद्र मोदी की सरकार बनने के बाद, सोहराबुद्दीन एनकाउंटर मामले के सभी आरोपियों को बरी कर दिया गया। सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर, मुंबई सीबीआई कोर्ट ने अमित शाह समेत सभी सीनियर पुलिस अधिकारियों और राजनेताओं को ट्रायल से पहले ही बरी कर दिया।

बीजेपी का 'चाणक्य'

अमित शाह को बीजेपी का 'चाणक्य कहा जाता है और ऐसा इसलिए कहा जाता है क्योंकि वे संगठन को समझने और जमीनी स्तर पर रणनीति बनाने में माहिर हैं। उन्होंने 2014 और 2019 के लोकसभा चुनावों में यह साबित किया, जब बीजेपी ने शानदार जीत हासिल की और उन राज्यों में भी सरकार बनाई जहां वह लंबे समय से सत्ता में नहीं थी। शाह ने उत्तर प्रदेश, जम्मू-कश्मीर और पूर्वोत्तर में बीजेपी की स्थिति को मजबूत किया, यहां तक कि जब पार्टी की सरकार बनने की कोई उम्मीद नहीं थी, तब भी उन्होंने सफलता पाई।

जब शाह से चाणक्य कहलाने पर सवाल किया गया, तो उन्होंने कहा कि वे कभी चाणक्य होने का दावा नहीं कर सकते। हालांकि, उन्होंने चाणक्य के बारे में अच्छी तरह से पढ़ा है और उनके कमरे में उनकी तस्वीर भी है। शाह ने 1991 में गांधीनगर से बीजेपी के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी का चुनाव प्रबंधन संभालकर अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत की।

उनकी बूथ प्रबंधन की कला 1995 के उपचुनाव में साबरमती विधानसभा सीट पर देखने को मिली, जब उन्होंने तत्कालीन उपमुख्यमंत्री नरहरि अमीन के खिलाफ चुनाव लड़ रहे एडवोकेट यतिन ओझा का चुनाव प्रबंधन संभाला। यतिन खुद कहते हैं कि शाह को राजनीति के अलावा कुछ और नजर नहीं आता है।

पीएम नरेंद्र मोदी और अमित शाह की दोस्ती की कहानी

अमित शाह एक गुजराती व्यवसायी परिवार से आते हैं और उनका जुड़ाव राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) से बचपन से ही रहा है। वे छोटे उम्र से संघ की शाखाओं में जाने लगे थे। कॉलेज के दिनों में, उनकी पहली मुलाकात नरेंद्र मोदी से 1982 में हुई, जब मोदी संघ के प्रचारक थे और युवाओं से जुड़ी गतिविधियों का दायित्व संभालते थे।

1983 में शाह ने छात्र राजनीति में कदम रखा और अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) को जॉइन किया। चार साल बाद, 1987 में उन्होंने भारतीय जनता पार्टी युवा मोर्चा (भाजयुमो) से जुड़ गए। उसी समय नरेंद्र मोदी भी संघ के दायित्वों से बाहर निकलकर बीजेपी से जुड़े।

पीएम नरेंद्र मोदी और अमित शाह की दोस्ती की कहानी में एक दिलचस्प मोड़ साल 1987 में आता है, जब नरेंद्र मोदी ने अपनी राजनीतिक पहचान बनाना शुरू किया। उस समय अहमदाबाद में म्युनिसिपल इलेक्शन हो रहा था, और मोदी गुजरात में बीजेपी के महासचिव थे। यह चुनाव उनके लिए एक महत्वपूर्ण अवसर था, क्योंकि इससे उन्हें पार्टी के लिए काम करने का मौका मिला।

इस दौरान, अमित शाह अहमदाबाद सिटी के सचिव के रूप में काम कर रहे थे। कहा जाता है कि यही वह समय था जब मोदी और शाह की पहली मुलाकात हुई। दोनों नेता चुनावी गतिविधियों में जुटे थे और यह देखना जरूरी था कि पार्टी के उम्मीदवारों के पोस्टर सही जगह पर लगे हैं या नहीं।

मीडिया में यह किस्सा मशहूर है कि मोदी हर गली और नुक्कड़ पर जाकर बीजेपी के उम्मीदवारों के पोस्टरों की जांच करते थे। उसी दौरान अमित शाह स्कूटर चला रहे थे, जबकि मोदी पीछे बैठते थे।

जम्मू-कश्मीर में आर्टिकल 370 हटाने के मास्टरमाइंड थे शाह 

अमित शाह की जम्मू-कश्मीर में आर्टिकल 370 हटाने की कहानी 2019 में शुरू होती है, जब भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की सरकार ने इस संवैधानिक प्रावधान को समाप्त करने का निर्णय लिया। आर्टिकल 370 जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देता था, जिसके तहत राज्य को अपनी अलग संविधान और कुछ हद तक स्वायत्तता प्राप्त थी।

आर्टिकल 370 को हटाने का मुद्दा बीजेपी के लिए एक महत्वपूर्ण चुनावी वादा था। पार्टी ने लंबे समय से इस प्रावधान को समाप्त करने की मांग की थी, यह तर्क देते हुए कि इससे जम्मू-कश्मीर के विकास में बाधा आ रही है और यह राष्ट्रीय एकता के खिलाफ है।

5 अगस्त 2019 को, अमित शाह, जो उस समय केंद्रीय गृह मंत्री थे, ने संसद में आर्टिकल 370 को हटाने का प्रस्ताव रखा। इस प्रस्ताव पर चर्चा के बाद, लोकसभा और राज्यसभा में इसे मंजूरी दी गई। इसके साथ ही, जम्मू-कश्मीर को दो केंद्र शासित प्रदेशों में बांट दिया गया: जम्मू-कश्मीर और लद्दाख।

आर्टिकल 370 को हटाने के बाद, केंद्र सरकार ने जम्मू-कश्मीर में कई विकास योजनाएं शुरू कीं। अमित शाह ने इसे राष्ट्रीय एकता और विकास की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम बताया। हालांकि, इस फैसले का कुछ जगहों पर विरोध भी हुआ और इसे लेकर विभिन्न प्रतिक्रियाएं आईं।

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