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दलित के बाद अब निषाद कार्ड! अखिलेश ने जाति पॉलिटिक्स का खेला नया दांव, क्या है फूलन देवी से कनेक्शन?

आगरा में अखिलेश ने फूलन देवी का सहारा लेकर निषाद-दलित समीकरण साधा, क्या ये दांव 2027 में BJP को कड़ी टक्कर देगा?
04:55 PM Apr 20, 2025 IST | Rohit Agrawal

आगरा में एक कार्यक्रम के संबोधन में अखिलेश यादव ने फूलन देवी का जिक्र कर जातिगत राजनीति का तूफान खड़ा कर दिया है। उन्होंने बयान दिया कि जैसे फूलन को मारा, वैसे मुझे भी धमकी मिल रही है। बता दें कि अखिलेश का यह बयान SP सांसद रामजीलाल सुमन के घर हमले के बाद आया है। इससे साफ है कि अखिलेश कहीं न कहीं निषाद और दलित वोटों को साधने के लिए पुराने जातिगत फॉर्मूले को नया रंग दे रहे हैं। अब सवाल यह है कि क्या यह 2027 के यूपी चुनाव में BJP को टक्कर दे पाएगा? आइए, इसे चटपटी गपशप की तरह समझें, जैसे दोस्तों के साथ ढाबे पर चाय!

अखिलेश ने क्यों खेला फूलन देवी कार्ड?

आगरा में अखिलेश ने फूलन देवी का नाम लेकर जाति का दोहरा खेल खेला है। फूलन की निषाद बिरादरी और बागी छवि को भुनाकर उन्होंने निषाद समुदाय को लुभाया, जो यूपी में 3-5% वोटर बनाते हैं। साथ ही, रामजीलाल सुमन के बहाने दलितों को साधा, जिनका 21% वोट जाटवों के साथ अहम है। मुलायम सिंह ने फूलन को 1996 में सांसद बनवाकर निषादों को SP से जोड़ा था। अखिलेश अब उसी रास्ते पर चलकर BJP के खिलाफ भावनात्मक लहर बनाना चाहते हैं।

जाति पॉलिटिक्स के सहारे निषाद और दलित पर फोकस

आज ही नहीं वर्षों से यूपी और बिहार की सियासत में जाति ही चुनाव का मुख्य गणित रहा है। अखिलेश का PDA (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) फॉर्मूला 2024 में 37 लोकसभा सीटें जीतकर चमक भी चुका है। अब फूलन की निषाद पहचान को उभारकर वे पूर्वांचल और बुंदेलखंड में BJP और निषाद पार्टी को चुनौती दे रहे हैं। सुमन के घर हमले को “दलित उत्पीड़न” का मुद्दा बनाकर BSP के जाटव वोटों पर नजर है, जो 2024 में SP की ओर खिसके थे। वरिष्ठ पत्रकार रतन मणि लाल कहते हैं, अखिलेश जानते हैं कि जातिगत समीकरण ही SP को सत्ता दिला सकते हैं।

2027 की रणनीति: पुराने फॉर्मूला के साथ नया जोश

बता दें कि अखिलेश 2027 में BJP के 80% हिंदू वोट फॉर्मूले को 90% PDA वोटों से मात देना चाहते हैं। फूलन की हत्या को “सवर्ण साजिश” बताकर वे निषाद और दलितों में BJP के खिलाफ गुस्सा भड़का रहे हैं। अपनी धमकियों को मुद्दा बनाकर केंद्र को घेरा, जिसके लिए SP प्रवक्ता अनुराग भदौरिया ने सुरक्षा की माँग उठाई। 2024 में BSP नेताओं को तोड़कर दलित वोट हथियाने के बाद, अब निषाद नेताओं को जोड़कर BJP का वोट बैंक काटने की तैयारी है।

अखिलेश के इस बयान के क्या हैं मायने?

अखिलेश का यह बयान SP को सामाजिक न्याय की चैंपियन दिखा सकता है और BJP के हिंदुत्व को जातिगत लहर से चुनौती दे सकता है। धमकी का मुद्दा उन्हें विपक्षी एकता का चेहरा बना सकता है। लेकिन बार-बार फूलन का जिक्र SP को पुरानी सियासत में फँसा दिखा सकता है। BJP इसे “वोट बैंक की राजनीति” बताकर सवर्ण और गैर-निषाद OBC वोट एकजुट कर सकती है। दलित वोटर BSP की वापसी या BJP के “सबका साथ” की ओर भी जा सकते हैं।

क्यों अहम है यह रणनीति?

2024 की 37 सीटों ने अखिलेश को यूपी में BJP का सबसे बड़ा काट साबित किया। फूलन का जिक्र न सिर्फ निषाद-दलित वोटों को लामबंद करता है, बल्कि SP को वंचितों की आवाज बनाता है। मगर योगी के संगठन और BJP के हिंदुत्व के सामने अखिलेश को गैर-PDA वोटरों को भी लुभाना होगा। क्या यह पुराना फॉर्मूला 2027 में नया कमाल करेगा, या BJP फिर बाजी मारेगी? यह तो वक्त बताएगा, लेकिन सियासी शतरंज में अखिलेश की यह चाल चर्चा में है!

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