अखिलेश-अंबेडकर पोस्टर से गर्माई यूपी की सियासत, BJP ने बोला हमला तो मायावती भी भड़कीं ; सपा पर क्यों टूट पड़ा सियासी तूफान?
Akhilesh-Ambedkar poster controversy: लखनऊ की सड़कों से लेकर सोशल मीडिया तक, उत्तर प्रदेश की राजनीति में एक पोस्टर ने तूफान खड़ा कर दिया है। समाजवादी पार्टी के कार्यालय के बाहर लगा वह पोस्टर, जिसमें डॉ. भीमराव अंबेडकर के आधे चेहरे के साथ अखिलेश यादव की तस्वीर दिखाई गई थी, अब राज्य की सियासी गलियारों में आग का गोला बन चुका है। बीजेपी ने इसे बाबा साहेब का "सरेआम अपमान" बताते हुए प्रदेशव्यापी विरोध प्रदर्शन का ऐलान कर दिया है, जबकि बसपा सुप्रीमो मायावती ने चेतावनी दी है कि अगर सपा ने संभलने की कोशिश नहीं की तो दलित समाज सड़कों पर उतर आएगा।
क्या है पूरा मामला?
दरअसल समाजवादी पार्टी के कार्यालय पर लगे उस पोस्टर में डॉ. अंबेडकर और अखिलेश यादव के आधे-आधे चेहरे दिखाए गए थे, जिसे देखते ही बीजेपी और बसपा के नेताओं ने इसे बाबा साहेब के प्रति "घृणा का प्रतीक" बताया। बीजेपी नेताओं का आरोप है कि सपा ने जानबूझकर अंबेडकर की छवि को काटकर अखिलेश को उनके बराबर दिखाने की कोशिश की है, जो दलित समाज की भावनाओं के साथ खिलवाड़ है। वहीं, मायावती ने एक्स (ट्विटर) पर पोस्ट कर कहा कि "बाबा साहेब का अपमान बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। सपा और कांग्रेस को सावधान रहना चाहिए, वरना बसपा सड़कों पर उतर सकती है।"
"अखिलेश की दलित विरोधी मानसिकता उजागर": BJP
BJP ने इस मौके का पूरा फायदा उठाते हुए सपा पर जमकर हमला बोला है। यूपी के डिप्टी सीएम ब्रजेश पाठक ने कहा कि यह सपा की दूषित मानसिकता है। अखिलेश ने अपनी सरकार में बाबा साहेब के नाम पर बने मेडिकल कॉलेज और रमाबाई अंबेडकर जिले का नाम बदल दिया था। अब यह पोस्टर उनकी घृणा को दिखाता है।" वहीं, राज्यसभा सदस्य बृजलाल ने कड़े शब्दों में कहा, "अखिलेश बाबा साहेब के पैरों की धूल के बराबर भी नहीं हैं।" बीजेपी ने 30 अप्रैल को प्रदेशभर में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन की योजना बनाई है, जिसमें लखनऊ के अटल चौक पर अंबेडकर की प्रतिमा के सामने धरना दिया जाएगा।
"दलित समाज उतरेगा सड़कों पर": मायावती
बसपा प्रमुख मायावती ने इस पोस्टर को लेकर तीखी प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने कहा कि सपा और कांग्रेस को बाबा साहेब के प्रति संवेदनशील रहना चाहिए, नहीं तो दलित समाज उनके खिलाफ सड़कों पर उतर सकता है। उन्होंने याद दिलाया कि अखिलेश सरकार ने पहले भी दलित हितों के साथ समझौता किया था, जिसमें दलित कर्मचारियों के प्रमोशन में आरक्षण रोकना शामिल है। बसपा के नेताओं ने भी सपा पर आरोप लगाया कि वह दलित वोट बैंक को लुभाने के लिए अंबेडकर का इस्तेमाल कर रही है, लेकिन असल में उनकी नीतियां दलित विरोधी हैं।
क्या अखिलेश यादव देंगे जवाब?
इस पूरे विवाद में सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि अखिलेश यादव और सपा के अन्य वरिष्ठ नेताओं ने अभी तक कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है। क्या यह चुप्पी उनकी मूक सहमति है? या फिर वे इस मुद्दे को और हवा देना नहीं चाहते? राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि सपा ने यह पोस्टर दलित-पिछड़ा वोट बैंक को जोड़ने की रणनीति के तहत लगाया था, लेकिन यह उल्टा पड़ गया। अब देखना यह है कि अखिलेश इस मुद्दे पर क्या रुख अपनाते हैं - माफी मांगते हैं या फिर बीजेपी-बसपा के आरोपों का जवाब देते हैं?
किस राजनीतिक भूकंप की आशंका?
यह विवाद यूपी की राजनीति में एक नया मोड़ ला सकता है। बीजेपी इस मौके का इस्तेमाल दलित वोट बैंक को सपा से दूर करने के लिए कर सकती है, जबकि बसपा अपनी जमीन मजबूत करने की कोशिश करेगी। सपा के लिए यह बड़ा झटका हो सकता है, क्योंकि अगर दलित समाज उसके खिलाफ हो जाता है, तो 2027 के विधानसभा चुनाव में उसे भारी नुकसान उठाना पड़ सकता है। फिलहाल, यूपी की राजनीति में यह मुद्दा लंबे समय तक गूंजने वाला है, और इसका असर आने वाले दिनों में साफ दिखाई देगा।
यह भी पढ़ें: