जब–जब आया अमेरिका तब–तब हुई अनहोनी! छत्तीसिंघपोरा से पहलगाम तक...क्या है आतंक का अमेरिकी दौरों से कनेक्शन?
22 अप्रैल 2025 को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम की बैसरन घाटी में आतंकियों ने 26 पर्यटकों को गोलियों से भून दिया। लश्कर-ए-तैयबा की शाखा TRF ने इस हमले की जिम्मेदारी ली है। यह खौफनाक वारदात ठीक उस वक्त हुई, जब अमेरिकी उपराष्ट्रपति जेडी वेंस भारत दौरे पर थे और ताजमहल देखने आगरा पहुंचने वाले थे। इतिहास बताता है कि जब भी अमेरिकी नेता भारत आते हैं, कश्मीर में आतंकी खून-खराबा मचाते हैं। 2000 में बिल क्लिंटन के दौरे के वक्त छत्तीसिंघपोरा में ऐसा ही नरसंहार हुआ था। आइए, इस साजिश को सरल भाषा में डिकोड करके समझते हैं।
पहलगाम में खून की होली का क्या है किस्सा?
दरअसल 22 अप्रैल की शाम बैसरन घाटी में 6-8 आतंकियों ने पर्यटकों पर ताबड़तोड़ गोलियां चलाईं। जिसमें 24 भारतीय, 2 विदेशी (UAE, नेपाल) और नौसेना के लेफ्टिनेंट विनय नरवाल शहीद हुए। आतंकियों ने पहले इलाके की रेकी की, फिर AK-47 और AK-56 से हमला किया। उस वक्त पर्यटक घुड़सवारी का मजा ले रहे थे। स्थानीय निवासी सैयद हुसैन शाह ने बताया, “वहां कोई सुरक्षा नहीं थी।” यह 2019 में धारा 370 हटने के बाद कश्मीर का सबसे बड़ा हमला है, जिसे लोग ‘पुलवामा 2.0’ कह रहे हैं। हमले के बाद कश्मीर में गुस्सा फूट पड़ा। लोग कैंडल मार्च निकाल रहे हैं, बाजार बंद हैं, और अखबारों ने फ्रंट पेज काला कर विरोध जताया।
अमेरिकी दौरे और आतंक का क्या है पुराना कनेक्शन?
बता दें कि पहलगाम हमला उस वक्त हुआ, जब अमेरिकी उपराष्ट्रपति जेडी वेंस चार दिन के भारत दौरे पर थे। 23 अप्रैल को वे पत्नी उषा और बच्चों के साथ ताजमहल देखने आगरा पहुंचे। हमला उनकी यात्रा से ठीक एक दिन पहले हुआ। वेंस ने X पर लिखा कि उषा और मैं पहलगाम के पीड़ितों के प्रति संवेदना जताते हैं। भारत की खूबसूरती देखी, हमारी प्रार्थनाएं पीड़ितों के साथ।
यह कोई नई बात नहीं। इतिहास में ऐसे कई मौके हैं, जब अमेरिकी नेताओं के भारत दौरे के साथ कश्मीर में आतंकी हमले हुए:
छत्तीसिंघपोरा नरसंहार (20 मार्च 2000): अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन के भारत दौरे (20-25 मार्च) के समय अनंतनाग के छत्तीसिंघपोरा में आतंकियों ने 36 सिखों को गुरुद्वारे में मार डाला। आतंकी सेना की वर्दी में आए और एक-एक कर गोली चलाई। इकलौते गवाह नानक सिंह ने यह खौफनाक मंजर बताया। यह हमला क्लिंटन की ताजमहल यात्रा (22 मार्च) से एक दिन पहले हुआ।
कालूचक नरसंहार (14 मई 2002): अमेरिकी सहायक विदेश सचिव क्रिस्टीना रोक्का के दौरे के दौरान जम्मू के कलुचक में आतंकियों ने बस और सेना क्वार्टर पर हमला कर 23 लोगों को मार डाला, जिसमें 10 बच्चे थे।
ये पैटर्न बताता है कि आतंकी अमेरिकी नेताओं के दौरे का फायदा उठाकर वैश्विक सुर्खियां बटोरना चाहते हैं।
अमरनाथ यात्रा पर भी उठे सवाल
पहलगाम हमले ने कश्मीर को दहला दिया। ‘ग्रेटर कश्मीर’, ‘कश्मीर उजमा’ जैसे अखबारों ने फ्रंट पेज काला कर लिखा, “Kashmir Gutted, Kashmiris Grieving.” संपादकीय में कहा गया कि यह कश्मीर की आत्मा पर हमला है।” 35 साल बाद कश्मीर में बंद रहा, लोग सड़कों पर उतरे। वहीं सबसे बड़ी बात कि पहलगाम अमरनाथ यात्रा (3 जुलाई से शुरू) का अहम पड़ाव है, जो इसे आतंकियों का निशाना बनाता है। NIA जांच में TRF कमांडर सैफुल्लाह कसूरी और रावलकोट के लश्कर आतंकियों का नाम सामने आया। सेना ने बारामूला में दो आतंकियों को मार गिराया, मगर यात्रा की सुरक्षा बड़ा सवाल है।
सरकार क्या एक्शन ले रही?
PM मोदी ने सऊदी दौरा रद्द कर दिल्ली में NSA अजीत डोवल, विदेश मंत्री जयशंकर और गृह सचिव से मुलाकात की। गृह मंत्री अमित शाह बैसरन पहुंचे और शहीदों को श्रद्धांजलि दी। CM उमर अब्दुल्ला और उपराज्यपाल मनोज सिन्हा श्रीनगर में हालात की निगरानी कर रहे हैं। 2019 के पुलवामा हमले के बाद भारत ने पाकिस्तान में एयर स्ट्राइक की थी। इस बार सरकार क्या करेगी? क्या सर्जिकल स्ट्राइक होगी, या कूटनीति से दबाव बनेगा? कश्मीरी जनता और देश की नजरें सरकार पर टिकी हैं।
क्यों अहम है यह हमला?
पहलगाम हमला सिर्फ खून-खराबा नहीं बल्कि कश्मीर की शांति, पर्यटन और अमरनाथ यात्रा पर भी बड़ा हमला है। अमेरिकी नेताओं के दौरे के साथ इसका समय संयोग नहीं, साजिश है। यह हमला वैश्विक मंच पर भारत की छवि को नुकसान पहुंचाने की कोशिश है। कश्मीर के लोग एकजुट होकर आतंक के खिलाफ खड़े हैं, मगर सवाल यह है कि क्या सरकार आतंकियों के इस नेटवर्क को जड़ से उखाड़ पाएगी? क्या पहलगाम फिर हंसी और शांति का गवाह बनेगा? यह वक्त बताएगा, मगर कश्मीर का दर्द हर हिंदुस्तानी महसूस कर रहा है।
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