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वायरल चर्च, जहां होता है रेसलिंग का धमाल! जबड़े तोड़ते हैं पहलवान, और प्रार्थना करते हैं भक्त

 इंग्लैंड में एक ऐसा चर्च है जहां लोग पहले प्रार्थना करते हैं और फिर बैठकर रेसलिंग के मुकाबले देखते हैं। अनोखा है ये Wrestling Church।
06:06 PM Apr 07, 2025 IST | Girijansh Gopalan

अब आप सोच रहे होंगे, चर्च में रेसलिंग का क्या काम? क्या पादरी भी स्मैकडाउन करते हैं? क्या प्रेयर के बाद लोगों को चेयर से मारा जाता है? तो रुकिए, पहले इस चर्च की कहानी जान लीजिए। क्योंकि ये स्टोरी सिर्फ वायरल नहीं है, बल्कि एक आदमी की आस्था, जुनून और समाज को जोड़ने की अनोखी कोशिश की मिसाल भी है।

कैसे शुरू हुआ ‘रेसलिंग चर्च’?

इस चर्च के पीछे हैं गैरेथ थॉम्पसन। उम्र 37 साल। खुद को रेसलिंग का दीवाना भी मानते हैं और प्रभु यीशू मसीह का भक्त भी। गैरेथ की जिंदगी में एक वक्त ऐसा आया जब वो बुरी आदतों में घिर चुके थे। डिप्रेशन, अकेलापन, और आत्महत्या तक के ख्याल। लेकिन दो चीजों ने उन्हें बचा लिया—रेसलिंग और ईसाई धर्म। गैरेथ ने खुद एक इंटरव्यू में बताया कि जब वो अपनी लाइफ से हार चुके थे, तब रेसलिंग की दुनिया और चर्च की शिक्षाओं ने उन्हें नई राह दिखाई। तभी उन्होंने सोचा, क्यों न दोनों को मिलाकर एक ऐसा मंच तैयार किया जाए, जो लोगों को एंटरटेन भी करे और आध्यात्म से भी जोड़े। बस, यहीं से जन्म हुआ ‘Wrestling Church’ का।

हर महीने होती है रेसलिंग, हर बार नया मैसेज

अब इस चर्च में हर महीने एक बार रेसलिंग का आयोजन होता है। बाकायदा एक रिंग लगाई जाती है, उसके चारों तरफ कुर्सियां बिछाई जाती हैं, और फिर होते हैं बड़े-बड़े मुकाबले। लड़ाई स्क्रिप्टेड होती है, लेकिन उसमें हिस्सा लेने वाले सभी प्रोफेशनल रेसलर होते हैं। गैरेथ बताते हैं कि ये कुश्ती सिर्फ मारधाड़ नहीं है, बल्कि एक कहानी है—अच्छाई और बुराई के बीच की जंग। जैसे-जैसे मैच आगे बढ़ता है, दर्शकों को ये समझ आता है कि रेसलर कौन सी नैतिकता या सोच को दर्शा रहा है। कोई 'बुराई' बनकर आता है, कोई 'अच्छाई' का रोल निभाता है। और अंत में अच्छाई की जीत होती है, जैसे हर धार्मिक कहानी में होता है।

धर्म को जोड़ने की जुगत

गैरेथ मानते हैं कि इस अनोखे फॉर्मेट के जरिए वो युवाओं को चर्च तक खींच पा रहे हैं। उन्होंने कहा कि पहले जहां चर्च में कुछ गिने-चुने बुजुर्ग आते थे, वहीं अब युवा, बच्चे और महिलाएं भी बड़ी संख्या में पहुंच रहे हैं। रेसलिंग के कार्यक्रम की शुरुआत होती है प्रार्थना से। लोग एक साथ प्रभु से जुड़ते हैं, फिर दो घंटे की जबरदस्त रेसलिंग होती है। इसमें न कोई अश्लीलता होती है, न ही कोई धर्म का मजाक। सब कुछ इस तरह से प्लान किया जाता है कि ईसाई धर्म की शिक्षाएं लोगों तक रोमांचक तरीके से पहुंचें।

घट रही थी चर्च में भीड़, तो सूझा ये आइडिया

गैरेथ का आइडिया यूं ही हवा में नहीं आया। इसके पीछे एक ठोस वजह है। एक रिपोर्ट के मुताबिक, 2021 के सेंसस में पाया गया कि इंग्लैंड और वेल्स में अब आधे से भी कम लोग खुद को ईसाई मानते हैं। वहीं, जिन लोगों का किसी धर्म से कोई वास्ता नहीं है, उनकी संख्या 25% से बढ़कर 37% हो चुकी है। ऐसे में चर्च के सामने बड़ी चुनौती खड़ी हो गई थी—कैसे लोगों को फिर से चर्च से जोड़ा जाए? कैसे नई पीढ़ी को धार्मिक मूल्यों से परिचित कराया जाए? इसी सोच से निकली ये रणनीति, जिसमें धर्म और रेसलिंग को एक साथ पिरोया गया।

जबड़ा टूटे, लेकिन मैसेज पहुंचे!

चर्च में होने वाली रेसलिंग में पूरी सावधानी बरती जाती है। रेसलर प्रोफेशनल होते हैं, स्टंट्स तय होते हैं, और चोट की आशंका कम होती है। लेकिन फिर भी दर्शकों को ऐसा फील होता है मानो रिंग में जंग छिड़ी हो। हाल ही में हुए एक इवेंट में करीब 200 लोग पहुंचे थे। पहले सभी ने मिलकर प्रार्थना की, फिर कुर्सियों पर बैठकर रेसलिंग का मजा लिया। वहां मौजूद एक महिला दर्शक ने कहा, “मुझे लगा था कि चर्च सिर्फ बुजुर्गों की जगह है, लेकिन यहां तो पूरा माहौल ही बदल गया है। बच्चों को भी मजा आया, और साथ ही कुछ सिखने को भी मिला।”

चर्च अब ट्रेंड में है

गैरेथ थॉम्पसन का यह प्रयोग अब इतना लोकप्रिय हो गया है कि दूसरे शहरों के चर्च भी इसी मॉडल पर इवेंट प्लान करने लगे हैं। सोशल मीडिया पर इसके वीडियो वायरल हो रहे हैं, जिसमें लोग लिख रहे हैं—“ऐसा चर्च हमारे शहर में क्यों नहीं है?” कई लोगों ने इसे एक क्रांतिकारी पहल बताया है, तो कुछ का मानना है कि धर्म और मनोरंजन का ये मेल थोड़ा रिस्की है। लेकिन थॉम्पसन को इन सब बातों की परवाह नहीं। उनका एक ही लक्ष्य है—लोगों को अच्छाई की ओर ले जाना, और उन्हें बताना कि प्रभु यीशू आज भी हमारे साथ हैं, बस उन्हें देखने का नजरिया बदल गया है।

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