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जकात, फितरा और सदका में क्या फर्क है? समझें इस्लामी TAX की पूरी ABCD

इस्लामी TAX यानी जकात क्या होता है? किन मुसलमानों पर जकात देना जरूरी है? क्या जकात का पैसा गैर-मुस्लिम को दिया जा सकता है? जानिए इसके सारे नियम और इसका सही तरीका।
06:43 PM Mar 11, 2025 IST | Girijansh Gopalan

मुसलमानों में ईद से पहले फितरा और साल भर में एक बार जकात निकालने का रिवाज है। इसे इस्लामी टैक्स भी कह सकते हैं, जो गरीबों और जरूरतमंदों की मदद के लिए दिया जाता है। जकात इस्लाम के पांच स्तंभों में से एक है और इसे निकालना हर उस मुसलमान पर फर्ज है, जिसके पास तयशुदा दौलत या संपत्ति हो।
फितरा इंसान के लिए निकाला जाता है, जबकि जकात संपत्ति का टैक्स होता है। इसे देने का सबसे अच्छा समय रमजान का महीना माना जाता है। सवाल यह उठता है कि किन मुसलमानों पर जकात देना जरूरी है और क्या इसे किसी गैर-मुस्लिम को दिया जा सकता है?

कौन से मुसलमानों पर जकात फर्ज है?

इस्लाम के नियमों के मुताबिक, हर मुसलमान जो आर्थिक रूप से संपन्न है और जिसके पास सालभर से ज्यादा वक्त से तयशुदा दौलत (निसाब) मौजूद है, उसे जकात देनी होगी।

निसाब के अनुसार

अगर किसी के पास 52.2 तोला चांदी या 7.5 तोला सोना है तो उस पर जकात फर्ज होगी।
अगर यह दौलत 1 साल से ज्यादा समय तक आपके पास रही हो, तब इस पर ढाई फीसदी जकात निकालनी होती है।
नकद पैसे, बिजनेस में लगाए गए पैसे, शेयर मार्केट की इन्वेस्टमेंट, प्राइज बॉन्ड और फाइनेंशियल वैल्यू वाली संपत्ति पर भी जकात देनी होती है।
जो संपत्ति घर बनाने के लिए रखी गई है, उस पर जकात नहीं है, लेकिन इन्वेस्टमेंट के लिए खरीदी गई जमीन और मकान पर जकात देना जरूरी होता है।
बैंक में जमा पैसा, जिस पर साल बीत चुका हो, उस पर भी जकात लागू होगी।

कितनी जकात देनी होती है?

इस्लाम में साफ कहा गया है कि दौलत का ढाई फीसदी (2.5%) हिस्सा जकात के रूप में देना जरूरी है। यानी अगर किसी के पास 4 लाख रुपये की संपत्ति है तो उसे 10,000 रुपये जकात निकालनी होगी।

जकात का पैसा किसे दिया जाता है?

इस्लाम में जकात उन्हीं लोगों को दी जाती है, जो गरीब और जरूरतमंद हों। कुरान में कहा गया है कि जकात इन लोगों को दी जा सकती है:

गरीब और बेसहारा लोग
कर्ज में डूबे हुए लोग
सफर में परेशान मुसाफिर
गरीब रिश्तेदार
इस्लाम अपनाने वाले नए मुसलमान
मदरसों में गरीब बच्चों की तालीम के लिए
जरूरतमंद धर्म उपासक
पहले अपने परिवार और रिश्तेदारों में तलाश करनी चाहिए कि कोई जरूरतमंद है या नहीं। फिर बाकी जरूरतमंदों तक जकात पहुंचाई जाए।

जकात किसे नहीं दी जा सकती?

इस्लाम में कुछ लोगों को जकात देने की मनाही की गई है:
माता-पिता, दादा-दादी, जीवनसाथी और बच्चे को जकात नहीं दी जा सकती।
पैगंबर मोहम्मद के वंशजों को भी जकात लेना मना है।
अगर कोई नौकर गरीब न हो तो उसे जकात नहीं दी जा सकती।
अल्लाह के रास्ते में लड़ने वाले को जकात नहीं दी जाती।

क्या जकात गैर-मुस्लिम को दी जा सकती है?

यह इस्लाम में सबसे ज्यादा बहस का मुद्दा रहा है। अधिकतर इस्लामी विद्वान मानते हैं कि गैर-मुस्लिम को जकात नहीं दी जा सकती। इसकी वजह यह है कि जकात मुस्लिम समुदाय को आर्थिक रूप से मजबूत करने और उनमें एकता बनाए रखने के लिए दी जाती है।

हालांकि, कुछ अपवाद हैं:

अगर कोई गैर-मुस्लिम खतरे में हो या जीवन-मृत्यु की स्थिति में हो, तो उसे जकात दी जा सकती है।
अगर कोई गैर-मुस्लिम इस्लाम अपनाने की सोच रहा हो, तो उसे भी जकात दी जा सकती है।
इस्लाम में गैर-मुसलमानों की मदद के लिए सदका और अन्य दान का प्रावधान है, जिससे उनकी मदद की जा सकती है।

इस्लाम गैर-मुस्लिम की मदद करने के लिए क्या कहता है?

इस्लाम सिर्फ मुस्लिमों की नहीं, बल्कि सभी जरूरतमंदों की मदद करने की शिक्षा देता है। इसमें कहा गया है कि:
किसी भी गरीब, भूखे या बेसहारा इंसान को सदका और खैरात दिया जा सकता है, चाहे वह मुस्लिम हो या गैर-मुस्लिम।
अच्छे पड़ोसी का ख्याल रखना जरूरी है, चाहे वह किसी भी धर्म का हो।
गरीबों को खाना खिलाना सबसे बड़ा पुण्य माना जाता है, फिर चाहे वह मुस्लिम हो या गैर-मुस्लिम।

 

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