ईद के दिन जामा मस्जिद में काली पट्टी क्यों? Waqf Bill पर मुस्लिम समुदाय का गुस्सा उबाल पर
Waqf Bill Dispute Jama Masjid: ईद का दिन, जो खुशी और इबादत का मौका होता है, इस बार जामा मस्जिद में कुछ अलग नजारा देखने को मिला। नमाजियों ने काली पट्टी बांधकर नमाज अदा की, और ये तस्वीरें अब हर तरफ चर्चा में हैं। ये सब वक्फ संशोधन विधेयक 2024 के खिलाफ एक शांतिपूर्ण विरोध का हिस्सा था। मुस्लिम समुदाय का कहना है कि ये बिल उनकी मस्जिदों और कब्रिस्तानों जैसी वक्फ संपत्तियों को खतरे में डाल सकता है। आखिर क्या है ये पूरा मामला? चलिए, इसे आसान और रोचक अंदाज में समझते हैं।
क्या है जामा मस्जिद में काली पट्टी का माजरा?
ईद के मौके पर जामा मस्जिद में नमाजियों का हुजूम तो हमेशा की तरह था, लेकिन इस बार उनके हाथों पर काली पट्टियां देखकर सब हैरान रह गए। प्रदर्शनकारी मोहम्मद यासिर ने बताया, "हम जमीयत उलेमा-ए-हिंद के कहने पर शांतिपूर्ण विरोध कर रहे हैं। मेरे दादा ने ब्रह्मपुरी में अब्दुल्ला मस्जिद के लिए जमीन वक्फ की थी, जहां सब आराम से नमाज पढ़ते हैं। लेकिन ये बिल हमारी संपत्तियों को मुश्किल में डाल सकता है।" काली पट्टी उनके गुस्से और चिंता का प्रतीक बन गई।
वक्फ बिल से क्यों डर रहा है मुस्लिम?
वक्फ संशोधन विधेयक 2024 में एक बड़ा बदलाव ये है कि अब जिला कलेक्टर को ये तय करने का अधिकार होगा कि कोई जमीन वक्फ की है या नहीं। पहले ये काम वक्फ ट्रिब्यूनल करते थे। 50 साल के मोहम्मद आरिफ कहते हैं, "अब तक वक्फ की जमीन से कोई छेड़छाड़ नहीं हुई, लेकिन ये कदम राजनीति से प्रेरित लगता है।" वहीं, मोहम्मद इब्राहिम का कहना है, "ये संपत्तियां समुदाय ने दान की हैं, कानूनी रूप से पंजीकृत हैं। सरकार का दखल गलत है।" लोगों को डर है कि इससे उनकी मस्जिदें और कब्रिस्तान खतरे में पड़ सकते हैं।
संगठनों ने क्यों ठोकी ताल?
देशभर के मुस्लिम संगठन इस बिल के खिलाफ एकजुट हो गए हैं। जमीयत उलेमा-ए-हिंद जैसे बड़े संगठन इसे वक्फ बोर्ड की स्वतंत्रता पर हमला बता रहे हैं। उनका कहना है कि बिल से सरकार को वक्फ संपत्तियों पर कब्जा करने का रास्ता मिल सकता है। प्रदर्शनकारी चाहते हैं कि सरकार उनसे बात करे और उनकी चिंताओं को सुने। ईद जैसे पवित्र दिन पर काली पट्टी बांधना उनके लिए एक बड़ा संदेश देने का तरीका था, जो ये दिखाता है कि मामला कितना गंभीर हो चुका है।
सरकार का दावा क्या है?
बिल के समर्थक कहते हैं कि इसका मकसद वक्फ संपत्तियों को बेहतर करना है। उनका तर्क है कि कई वक्फ बोर्ड इन जमीनों का सही से ध्यान नहीं रख पाते। सरकार का कहना है कि जिला कलेक्टर को अधिकार देने से पारदर्शिता आएगी और संपत्तियों की सुरक्षा होगी। लेकिन विरोध करने वालों को ये बात हजम नहीं हो रही। वो पूछते हैं कि जब सब ठीक चल रहा था, तो बदलाव की जरूरत क्यों पड़ी? उनके लिए ये धार्मिक स्वतंत्रता और संपत्ति के अधिकार का सवाल है।
आगे की राह क्या होगी?
अब सबकी नजर इस बात पर है कि सरकार इस विरोध को कैसे संभालेगी। मुस्लिम समुदाय संवाद की मांग कर रहा है, ताकि उनकी चिंताएं दूर हों। जामा मस्जिद की तस्वीरों ने इस मुद्दे को और बड़ा बना दिया है। अगर सरकार अपने फैसले पर अड़ी रही, तो प्रदर्शन और तेज हो सकते हैं। वहीं, अगर बातचीत हुई, तो शायद कोई बीच का रास्ता निकल आए। ये बिल पास होगा या रुक जाएगा, ये आने वाला वक्त बताएगा। लेकिन इतना तय है कि ये विवाद अभी थमने वाला नहीं है।
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