SC में आज वक्फ एक्ट की परीक्षा, 6 बीजेपी शासित राज्य भी क्यों पहुंचे कोर्ट?
वक्फ (संशोधन) कानून 2025 को लेकर सुप्रीम कोर्ट में आज, 16 अप्रैल 2025 को, एक अहम सुनवाई हो रही है। इस कानून की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली 10 याचिकाओं पर चीफ जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस संजय कुमार और जस्टिस केवी विश्वनाथन की बेंच दोपहर 2 बजे सुनवाई करेगी। हैदराबाद के सांसद असदुद्दीन ओवैसी, कांग्रेस, डीएमके, आप और कई संगठनों ने इस कानून को "मुस्लिम विरोधी" और "असंवैधानिक" बताते हुए कोर्ट का रुख किया है। दूसरी ओर हरियाणा, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और असम समेत छह बीजेपी शासित राज्यों ने नए कानून के समर्थन में सुप्रीम कोर्ट पहुंचे हैं। आखिर यह कानून इतना विवादास्पद क्यों है, और बीजेपी शासित राज्य इसे क्यों बचा रहे हैं? आइए, इस कानूनी जंग को सरल अंदाज में समझते हैं।
सुप्रीम कोर्ट में क्या हो रहा है?
वक्फ (संशोधन) कानून 2025 को चुनौती देने वाली 70 से ज्यादा याचिकाएँ सुप्रीम कोर्ट में दाखिल हुई हैं, लेकिन आज 10 याचिकाओं पर सुनवाई होगी। इनमें असदुद्दीन ओवैसी (AIMIM), अमानतुल्लाह खान (AAP), मनोज कुमार झा (RJD), अरशद मदनी (जमीयत उलेमा-ए-हिंद), समस्त केरल जमीयत-उल उलेमा, और एसोसिएशन फॉर द प्रोटेक्शन ऑफ सिविल राइट्स जैसी हस्तियों और संगठनों की याचिकाएँ शामिल हैं।
दूसरी ओर, केंद्र सरकार ने 8 अप्रैल को कैविएट दाखिल कर कहा कि कोई भी फैसला सुनाने से पहले उसका पक्ष सुना जाए। छह बीजेपी शासित राज्यों ने भी हस्तक्षेप याचिकाएँ दाखिल की हैं, जिसमें वे इस कानून को संवैधानिक और जरूरी बता रहे हैं। यह सुनवाई इसलिए अहम है, क्योंकि इसका असर देश भर की वक्फ संपत्तियों और धार्मिक स्वायत्तता पर पड़ सकता है।
वक्फ़ को लेकर याचिकाओं की दलीलें क्या हैं?
बता दें कि वक्फ (संशोधन) कानून के खिलाफ याचिकाकर्ताओं ने कई गंभीर आरोप लगाए हैं:
धार्मिक स्वतंत्रता पर हमला: ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (AIMPLB) और जमीयत उलेमा-ए-हिंद का कहना है कि यह कानून संविधान के अनुच्छेद 25 और 26 का उल्लंघन करता है, जो धार्मिक स्वतंत्रता और धार्मिक संस्थानों के प्रबंधन का अधिकार देते हैं। जमीयत ने इसे "मुस्लिमों की धार्मिक स्वतंत्रता छीनने की साजिश" बताया।
भेदभाव का आरोप: असदुद्दीन ओवैसी और कांग्रेस सांसद मोहम्मद जावेद ने दावा किया कि यह कानून अनुच्छेद 14 और 15 का उल्लंघन करता है, क्योंकि यह मुस्लिमों के साथ भेदभाव करता है। जावेद ने कहा कि वक्फ संपत्तियों पर "मनमाने प्रतिबंध" लगाए गए हैं, जो अन्य धार्मिक संपत्तियों पर लागू नहीं होते।
वक्फ-बाय-यूजर का खात्मा: समस्त केरल जमीयत-उल उलेमा ने कहा कि "वक्फ-बाय-यूजर" की अवधारणा हटाने से सदियों पुरानी वक्फ संपत्तियाँ खतरे में पड़ जाएँगी। यह नियम उन संपत्तियों को वक्फ मानता था, जो लंबे समय से धार्मिक उपयोग में थीं।
अधिक सरकारी नियंत्रण: डीएमके और अन्य याचिकाकर्ताओं ने आरोप लगाया कि यह कानून वक्फ बोर्ड की स्वायत्तता छीनकर सरकार को असीमित नियंत्रण देता है। डीएमके ने कहा कि बिना चर्चा के इसे पास किया गया, जो अलोकतांत्रिक है।
मुस्लिम समुदाय का नुकसान: अमानतुल्लाह खान ने अनुच्छेद 14, 15, 21, 25, 26, 29, 30 और 300A का हवाला देते हुए कहा कि यह कानून मुस्लिमों के संपत्ति और धार्मिक अधिकारों को कमजोर करता है। वहीं याचिकाकर्ताओं का मानना है कि यह कानून न सिर्फ असंवैधानिक है, बल्कि मुस्लिम समुदाय की धार्मिक और सांस्कृतिक पहचान पर हमला है।
बीजेपी शासित राज्य क्यों कोर्ट में?
वहीं बता दें कि छह बीजेपी शासित राज्यों ने भी वक्फ (संशोधन) कानून के समर्थन में सुप्रीम कोर्ट में हस्तक्षेप याचिकाएँ दाखिल की हैं। इन राज्यों का कहना है कि यह कानून वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन में सुधार लाएगा और पारदर्शिता सुनिश्चित करेगा। यहाँ उनके प्रमुख तर्क हैं:
हरियाणा: हरियाणा ने कहा कि वक्फ संपत्तियों में पुराने रिकॉर्ड की कमी, अधूरी सर्वे, और ट्रिब्यूनल में लंबित मामले जैसे मुद्दों को हल करने के लिए यह कानून जरूरी है। यह संपत्तियों के दुरुपयोग को रोकेगा।
मध्य प्रदेश: एमपी ने दावा किया कि यह कानून वक्फ संपत्तियों को तकनीक आधारित और कानूनी रूप से मजबूत प्रणाली देगा, जिससे पारदर्शिता और सामाजिक-आर्थिक लाभ होगा।
राजस्थान: राजस्थान ने चिंता जताई कि पहले निजी और सरकारी संपत्तियों को बिना उचित प्रक्रिया के वक्फ घोषित कर दिया जाता था। नए कानून में 90 दिन की सार्वजनिक नोटिस का प्रावधान इस कमी को दूर करता है।
छत्तीसगढ़: छत्तीसगढ़ ने डिजिटल पोर्टल की वकालत की, जो वक्फ संपत्तियों की ट्रैकिंग और ऑडिटिंग को आसान बनाएगा। इससे प्रशासनिक प्रक्रियाएँ सरल होंगी और स्थानीय अधिकारियों के साथ समन्वय बढ़ेगा।
असम: असम ने कानून की धारा 3E पर जोर दिया, जो संविधान की पाँचवीं और छठी अनुसूची के तहत आदिवासी क्षेत्रों की जमीन को वक्फ संपत्ति घोषित करने पर रोक लगाती है। असम के 35 में से 8 जिले छठी अनुसूची में आते हैं, इसलिए यह उनके लिए अहम है।
महाराष्ट्र: महाराष्ट्र ने संसदीय रिकॉर्ड और राष्ट्रीय परामर्श के आधार पर कानून का समर्थन किया, और कहा कि यह वक्फ प्रबंधन को मजबूत करेगा।
इसके अलावा, उत्तराखंड वक्फ बोर्ड ने भी कानून के समर्थन में याचिका दाखिल की है, जिसमें वक्फ प्रशासन में पारदर्शिता और दुरुपयोग रोकने की बात कही गई है। इन राज्यों का मानना है कि अगर यह कानून रद्द हुआ, तो वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन में अव्यवस्था बढ़ेगी और पुरानी समस्याएँ बनी रहेंगी।
वक्फ (संशोधन) कानून: क्या बदला?
वक्फ (संशोधन) कानून 2025 को लोकसभा और राज्यसभा ने मार्च 2025 में पास किया था, और 5 अप्रैल को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने इसे मंजूरी दी। 8 अप्रैल से यह लागू हो चुका है। प्रमुख बदलाव इस प्रकार हैं:
गैर-मुस्लिम सदस्य: सेंट्रल वक्फ काउंसिल और वक्फ बोर्ड में दो गैर-मुस्लिम और दो महिला सदस्यों की नियुक्ति का प्रावधान।
वक्फ-बाय-यूजर खत्म: अब कोई संपत्ति लंबे उपयोग के आधार पर वक्फ नहीं मानी जाएगी। वैध दस्तावेज जरूरी होंगे।
पाँच साल का नियम: वक्फ संपत्ति दान करने वाला व्यक्ति कम से कम पाँच साल से इस्लाम का पालन करने वाला होना चाहिए।
कलेक्टर की भूमिका: वक्फ संपत्तियों का सर्वे और विवादों का फैसला अब कलेक्टर करेगा, न कि वक्फ बोर्ड।
अपील का अधिकार: पहले ट्रिब्यूनल का फैसला अंतिम होता था, अब हाईकोर्ट में अपील हो सकती है।
डिजिटल पोर्टल: वक्फ संपत्तियों की ट्रैकिंग और प्रबंधन के लिए डिजिटल सिस्टम।
आदिवासी जमीन की सुरक्षा: पाँचवीं और छठी अनुसूची की जमीन को वक्फ संपत्ति घोषित नहीं किया जा सकता।
इस पर केंद्र का कहना है कि ये बदलाव पारदर्शिता, जवाबदेही और सामाजिक कल्याण के लिए हैं, खासकर मुस्लिम महिलाओं और हाशिए पर रहने वालों के लिए।
क्या है केंद्र की रणनीति और सियासी मायने?
केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कैविएट दाखिल कर अपना पक्ष रखने की माँग की है। अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री किरेन रिजिजू ने कहा कि यह कानून किसी समुदाय के खिलाफ नहीं है, बल्कि यह "पिछली गलतियों को सुधारने" के लिए है। उन्होंने पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी पर निशाना साधते हुए कहा कि कानून न लागू करने की उनकी बात संवैधानिक नहीं है। बीजेपी का दावा है कि यह कानून वक्फ संपत्तियों के दुरुपयोग को रोकेगा और गैर-कानूनी कब्जों को खत्म करेगा।
दूसरी ओर, विपक्ष इसे सियासी चाल बता रहा है। ममता बनर्जी ने कहा कि बंगाल में यह कानून लागू नहीं होगा। डीएमके ने तमिलनाडु विधानसभा में इसके खिलाफ प्रस्ताव पास किया। विपक्ष का आरोप है कि बीजेपी इस कानून के जरिए मुस्लिम समुदाय को निशाना बना रही है और धार्मिक ध्रुवीकरण की कोशिश कर रही है।
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