UNESCO ने भगवद गीता और नाट्यशास्त्र को किया शामिल, PM मोदी बोले - भारत की धरोहर को मिली नई पहचान!
भारत की सांस्कृतिक धरोहर को एक बार फिर दुनिया ने सलाम किया है। UNESCO ने श्रीमद्भगवद्गीता और भारत मुनि के नाट्यशास्त्र को अपनी ‘मेमोरी ऑफ द वर्ल्ड रजिस्टर’ में शामिल कर लिया। यह सूची उन ग्रंथों और दस्तावेजों की है, जिन्होंने मानव सभ्यता को दिशा दी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसे “हर भारतीय के लिए गर्वव का पल” बताया, तो केंद्रीय संस्कृति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने कहा कि ये ग्रंथ भारत की आत्मा हैं। आखिर क्या खास है इन ग्रंथों में, और क्यों मच रही है यह खुशी? आइए, इसे सरल भाषा में समझें, जैसे दोस्तों के साथ गपशप!
भगवद्गीता: जीवन का संपूर्ण दर्शन
बता दें कि श्रीमद्भगवद्गीता हिंदुओं का पवित्र ग्रंथ है, जो महाभारत के भीष्म पर्व में मिलता है। इसमें 18 अध्याय और 700 श्लोक हैं, जो भगवान श्रीकृष्ण और अर्जुन के बीच कुरुक्षेत्र की युद्धभूमि पर हुए संवाद को बयां करते हैं। जब अर्जुन अपने रिश्तेदारों के खिलाफ युद्ध से घबराते हैं, तब श्रीकृष्ण उन्हें कर्म, धर्म, आत्मा और मोक्ष का ज्ञान देते हैं। महर्षि वेदव्यास द्वारा रचित यह ग्रंथ न सिर्फ धार्मिक, बल्कि दार्शनिक भी है। यह वैदिक, बौद्ध, जैन और चार्वाक विचारों का मिश्रण है। दुनियाभर में इसे पढ़ा और अनुवादित किया जाता है, क्योंकि यह जीवन की हर उलझन का जवाब देता है।
A historic moment for Bharat’s civilisational heritage!
The Shrimad Bhagavad Gita & Bharat Muni’s Natyashastra are now inscribed in UNESCO’s Memory of the World Register.
This global honour celebrates India’s eternal wisdom & artistic genius.
These timeless works are more than… pic.twitter.com/Zeaio8OXEB
— Gajendra Singh Shekhawat (@gssjodhpur) April 18, 2025
जानें क्या है नाट्यशास्त्र?
भारत मुनि का नाट्यशास्त्र भारतीय रंगमंच और कला का पहला ग्रंथ है। संस्कृत में लिखे इस ग्रंथ में 36 अध्याय और करीब 6000 श्लोक हैं, जो नाटक, नृत्य, संगीत, अभिनय, मंच सज्जा और भाव-भंगिमाओं का बारीकी से वर्णन करते हैं। पौराणिक कथा के मुताबिक, ब्रह्मा ने चारों वेदों से तत्व लेकर नाट्यवेद बनाया और इसे भारत मुनि को सौंपा। भारत मुनि ने इसे नाट्यशास्त्र के रूप में दुनिया के सामने रखा। इसका ‘रस सिद्धांत’ और ‘नवरस’ (शृंगार, वीर, करुण आदि) आज भी नाटक, फिल्म और साहित्य की रीढ़ हैं। यह ग्रंथ सिर्फ कला नहीं, बल्कि भावनाओं का विज्ञान सिखाता है।
UNESCO की मान्यता क्यों खास?
UNESCO (यूनाइटेड नेशंस एजुकेशनल, साइंटिफिक एंड कल्चरल ऑर्गनाइजेशन) दुनिया की सांस्कृतिक धरोहरों को संरक्षित करती है। इसकी ‘मेमोरी ऑफ द वर्ल्ड रजिस्टर’ में उन ग्रंथों और पांडुलिपियों को जगह मिलती है, जो मानव इतिहास के लिए अनमोल हैं। 17 अप्रैल 2025 को UNESCO ने 74 नई प्रविष्टियों को शामिल किया, जिनमें गीता और नाट्यशास्त्र भी हैं। अब भारत के इस रजिस्टर में 14 प्रविष्टियाँ हैं, जिनमें ऋग्वेद की पांडुलिपियाँ और तैत्तिरीय संहिता भी शामिल हैं। यह मान्यता भारत की प्राचीन बुद्धिमत्ता और संस्कृति को वैश्विक मंच पर चमकाती है।
भारत के लिए क्यों है गर्व का पल?
गीता और नाट्यशास्त्र की यह उपलब्धि सिर्फ दो ग्रंथों की जीत नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति की वैश्विक स्वीकार्यता है। गीता जहाँ जीवन का दर्शन देती है, वहीं नाट्यशास्त्र कला और भावनाओं को सिखाता है। दोनों ने सदियों से दुनिया को प्रेरित किया। X पर लोग इसे “भारत की सांस्कृतिक जीत” बता रहे हैं। UNESCO की यह पहचान न सिर्फ इन ग्रंथों को संरक्षित करेगी, बल्कि दुनिया भर में इन्हें और फैलाएगी। जैसे गीता में श्रीकृष्ण कहते हैं, “कर्म करो, फल की चिंता मत करो,” वैसे ही यह सम्मान भारत के कर्म का फल है।
A proud moment for every Indian across the world!
The inclusion of the Gita and Natyashastra in UNESCO’s Memory of the World Register is a global recognition of our timeless wisdom and rich culture.
The Gita and Natyashastra have nurtured civilisation, and consciousness for… https://t.co/ZPutb5heUT
— Narendra Modi (@narendramodi) April 18, 2025
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