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दक्षिण अफ्रीका में बिताए 21 सालों में कितने बदल गए महात्मा गांधी? प्रवासी दिवस के मौके पर जानें उनकी कहानी

महात्मा गांधी ने दक्षिण अफ्रीका में 21 साल बिताने के बाद 9 जनवरी, 1915 की सुबह कस्तूरबा के साथ मुंबई के अपोलो बंदरगाह पर कदम रखा।
03:05 PM Jan 09, 2025 IST | Vyom Tiwari

मोहनदास कर्मचंद गांधी ने लंदन में वकालत की पढ़ाई की और भारत लौट आए। इसी दौरान एक केस के सिलसिले में उन्हें दक्षिण अफ्रीका जाने का मौका मिला। वहां वकील के तौर पर कामयाबी तो मिली, लेकिन हालात ऐसे बने कि उन्होंने दक्षिण अफ्रीका के लोगों के अधिकारों के लिए संघर्ष शुरू कर दिया। इस बीच, भारत में आजादी की लड़ाई तेज हो रही थी। कांग्रेस ने अंग्रेजों की नीतियों का खुलकर विरोध करना शुरू कर दिया था। जब देश ने गांधीजी को पुकारा, तो वे वापस आए और भारतीयों की उम्मीदों का केंद्र बन गए।

महात्मा गांधी, जिन्हें हम प्यार से बापू कहते हैं, ने देश को आजादी दिलाने में अहम भूमिका निभाई। उनकी स्वदेश वापसी का दिन, 9 जनवरी, हर साल प्रवासी भारतीय दिवस के रूप में मनाया जाता है। उनकी दक्षिण अफ्रीका यात्रा ने उनके जीवन को पूरी तरह बदल दिया। वहां के अनुभवों ने उन्हें भारतीयों के अधिकारों की लड़ाई के लिए तैयार किया और वे हमारी उम्मीद बन गए। आइए समझते हैं कि उनकी यह यात्रा क्यों खास थी और उन्होंने इससे क्या सीखा।

1893 में एक केस के सिलसिले में गए थे दक्षिण अफ्रीका

24 साल के युवा वकील मोहनदास करमचंद गांधी साल 1893 में एक केस के सिलसिले में दक्षिण अफ्रीका गए। वहां उन्होंने 21 साल बिताए। इस दौरान उन्होंने न केवल कई मुकदमे जीते, बल्कि अंग्रेजों के खिलाफ स्थानीय लोगों के हक की लड़ाई भी लड़ी। उनकी इन कोशिशों की गूंज भारत तक पहुंची।

लोगों को लगने लगा कि अगर गांधी जी भारत लौटें, तो यहां भी अंग्रेजों के अत्याचारों से मुक्ति दिला सकते हैं। 21 साल बाद, 9 जनवरी 1915 को गांधी जी अपनी पत्नी कस्तूरबा के साथ बंबई (अब मुंबई) के अपोलो बंदरगाह पर पहुंचे।

उस समय गांधी जी 45 साल के अनुभवी वकील बन चुके थे। उनके स्वागत के लिए हजारों कांग्रेस कार्यकर्ता मौजूद थे। उनकी वापसी से करोड़ों भारतीयों में उम्मीद जग गई थी कि गांधी जी उनके देश को आजादी दिलाने की दिशा में नेतृत्व करेंगे।

पीटरमैरिट्सबर्ग स्टेशन पर उन्हें ट्रेन से बाहर फेंक दिया गया

दक्षिण अफ्रीका में लोग अंग्रेजों के नस्लभेद का सामना कर रहे थे। अंग्रेज गोरे और काले लोगों के बीच भेदभाव करते थे। महात्मा गांधी को भी अपने रंग की वजह से इस भेदभाव का सामना करना पड़ा। एक बार वह दक्षिण अफ्रीका में ट्रेन के फर्स्ट क्लास कोच में सवार हुए, लेकिन पीटरमैरिट्सबर्ग स्टेशन पर उन्हें ट्रेन से बाहर फेंक दिया गया क्योंकि वह कोच सिर्फ गोरे अंग्रेजों के लिए था। महात्मा गांधी को पूरी सर्दी में स्टेशन पर खड़ा रहना पड़ा। उस समय उन्होंने सोचा कि वह स्वदेश लौट जाएं, लेकिन अंत में उन्होंने इस भेदभाव का विरोध करने का फैसला किया। अगले ही दिन उन्हें ट्रेन में यात्रा करने की अनुमति मिल गई।

गोपाल कृष्ण गोखले को अपना राजनीतिक गुरु मानते थे

महात्मा गांधी का जीवन एक घटना से पूरी तरह बदल गया। जब वह दक्षिण अफ्रीका में थे, तो उन्होंने देखा कि वहां भारतीयों और स्थानीय अश्वेतों के साथ अंग्रेजों द्वारा भेदभाव किया जा रहा था। इस पर उन्होंने इन दोनों समुदायों के अधिकारों के लिए आवाज उठानी शुरू की और उनके हक के लिए कई संघर्ष किए। इन संघर्षों के दौरान गांधीजी के राजनीतिक और नैतिक विचारों में भी बदलाव आया। वे स्वाधीनता सेनानी और विचारक गोपाल कृष्ण गोखले को अपना राजनीतिक गुरु मानते थे। जब दक्षिण अफ्रीका में गांधीजी के कार्यों के बारे में खबरें भारत पहुंचीं, तो गोखले जी ने उन्हें स्वदेश लौटने का सुझाव दिया, जिसे गांधीजी ने स्वीकार कर लिया।

सत्य और अंहिसा पर रहे अडिग 

21 साल बाद भारत लौटने के बाद महात्मा गांधी ने कांग्रेस से जुड़ने का फैसला किया। उस समय कांग्रेस में दो समूह बन चुके थे – एक को नरम दल और दूसरे को गरम दल कहा जाता था। गरम दल के नेता चाहते थे कि अंग्रेजों को उनकी ही जुबान में, यानी हिंसा से जवाब दिया जाए, जबकि कुछ लोग अहिंसा और शांति के रास्ते पर चलकर आजादी की लड़ाई लड़ने के पक्षधर थे। महात्मा गांधी ने सत्य और अहिंसा का रास्ता अपनाया।

कांग्रेस की कमान संभालते ही उन्होंने इसे आम जनता से जोड़ने की कोशिश की और खासकर ग्रामीण भारत में संगठन का विस्तार किया। फिर उन्होंने सत्याग्रह और असहयोग आंदोलन शुरू किया। भारत आने के दो साल बाद, 1917 में, गांधीजी ने बिहार के चम्पारण में किसानों के अधिकारों के लिए सत्याग्रह शुरू किया, जिसे चम्पारण सत्याग्रह कहा जाता है।

2003 में सरकार ने प्रवासी भारतीय दिवस मनाने की शुरुआत की

महात्मा गांधी की वापसी के बाद देश में एक नया जोश आ गया और लोग उनकी राह पर चलने लगे, जिससे अंग्रेजों की सत्ता कमजोर होने लगी। अंत में, भारत को स्वतंत्रता मिली। गांधी जी की स्वदेश वापसी की याद में 2003 में सरकार ने प्रवासी भारतीय दिवस मनाने की शुरुआत की। यह दिन प्रवासी भारतीयों के सम्मान में मनाया जाता है, ताकि उनके योगदान को देश के विकास में पहचाना जा सके। हर साल इस दिन को एक खास थीम पर मनाया जाता है।

 

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