मंदिर या मस्जिद, क्या है अढ़ाई दिन का झोपड़ा? जानें पूरी कहानी
adhai din ka jhonpra survey demand: अजमेर की एक अदालत ने हाल ही में अजमेर शरीफ दरगाह के नीचे 'मंदिर' होने का दावा करने वाली याचिका को मंजूरी दी थी। अब अजमेर के डिप्टी मेयर नीरज जैन ने 'अढ़ाई दिन का झोपड़ा' को लेकर नया दावा किया है। उनका कहना है कि यह जगह पहले एक मंदिर और संस्कृत कॉलेज हुआ करती थी।
नीरज जैन, जो भारतीय जनता पार्टी के नेता भी हैं, का कहना है कि यह स्थान नालंदा और तक्षशिला विश्वविद्यालय की तरह एक ऐतिहासिक और धार्मिक केंद्र था, लेकिन बाद में इसे तोड़कर 'अढ़ाई दिन का झोपड़ा' बना दिया गया।
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'अढ़ाई दिन का झोपड़ा' भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) द्वारा संरक्षित स्मारक है और यह अजमेर शरीफ दरगाह से करीब 500 मीटर की दूरी पर स्थित है। नीरज जैन के मुताबिक, यह जगह पहले एक संस्कृत कॉलेज और मंदिर थी, जिसे बाद में मस्जिद में बदल दिया गया
अजमेर के डिप्टी मेयर नीरज जैन का दावा
अजमेर के डिप्टी मेयर नीरज जैन ने यह दावा किया है कि 'अढ़ाई दिन का झोपड़ा' की जगह पहले एक संस्कृत कॉलेज और मंदिर स्थित था। उनका कहना है कि जब आक्रमणकारी भारत आए थे, तो उन्होंने इस धरोहर को नष्ट किया और फिर वर्तमान में जो संरचना है, वह बनाई गई। बीबीसी की एक रिपोर्ट के मुताबिक नीरज जैन ने कहा, "आज जिसे 'अढ़ाई दिन का झोपड़ा' कहा जाता है, वह पहले एक संस्कृत पाठशाला और मंदिर था। उस समय जो आक्रमणकारी भारत आए थे, उन्होंने इस धरोहर को नष्ट कर दिया और फिर इस जगह पर मस्जिद बनाई।" ये भी पढ़ें-
नीरज जैन ने यह भी कहा कि इस बात के सबूत 'अढ़ाई दिन का झोपड़ा' में लगे खंभों पर मौजूद देवी-देवताओं की मूर्तियों, स्वास्तिक और कमल के चिन्हों में मिलते हैं। इसके अलावा, संस्कृत में लिखे श्लोक भी इस जगह की ऐतिहासिकता को साबित करते हैं।
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नीरज जैन ने अपनी बात को और मजबूत करते हुए हरबिलास सारदा की किताब 'अजमेर: हिस्टोरिकल एंड डिस्क्रिप्टिव' का हवाला दिया है, जो 1911 में प्रकाशित हुई थी। इस किताब के सातवें चैप्टर में 'अढ़ाई दिन का झोपड़ा' के बारे में उल्लेख किया गया है। सारदा के अनुसार, इस संरचना का निर्माण सेठ वीरमदेव काला ने 660 ईस्वी में एक जैन मंदिर के रूप में किया था। उनका यह भी कहना है कि 1192 में जब मोहम्मद गौरी ने भारत पर आक्रमण किया, तो इस इमारत को नष्ट कर दिया गया और बाद में इसे मस्जिद में रूपांतरित किया गया। सारदा ने यह भी लिखा है कि इस इमारत का पुनर्निर्माण 1199 से 1213 के बीच हुआ, जब सुलतान शम्सुद्दीन इल्तुतमिश के समय में इस संरचना को मस्जिद के रूप में ढाला गया था।
क्या कहता है पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग?
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) ने अपनी वेबसाइट पर 'अढ़ाई दिन का झोपड़ा' को लेकर जानकारी दी है। एएसआई के मुताबिक, यह संरचना दिल्ली के पहले सुलतान कुतुबुद्दीन ऐबक द्वारा 1199 में बनाई गई एक मस्जिद है। इसके बाद 1213 में सुलतान इल्तुतमिश ने इसमें सुधार किए थे। एएसआई ने यह भी कहा है कि इस मस्जिद के परिसर में कई हिंदू मंदिरों की मूर्तियां पाई जाती हैं, जो यह दर्शाती हैं कि इस स्थान पर पहले हिंदू मंदिर मौजूद था।
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इतिहासकारों की राय
इस पूरे मामले पर कई इतिहासकारों की राय अलग-अलग है। अलीगढ़ विश्वविद्यालय के प्रोफेसर और भारतीय इतिहास कांग्रेस के सचिव प्रोफेसर सैय्यद अली नदीम रिज़वी इस बहस को तर्कहीन मानते हैं। उनका कहना है कि 'अढ़ाई दिन का झोपड़ा' का मुद्दा इतिहास नहीं, बल्कि एक कानूनी मसला बन गया है। वह कहते हैं, "यह सब उस समय हुआ जब संविधान नहीं था और न ही लोकतंत्र था। आज की तारीख में संविधान है, नियम-कानून है, और यह इतिहास का मसला नहीं है।"
जैन समुदाय का रुख
इस मुद्दे पर जैन समुदाय का भी विरोध सामने आया है। मई 2024 में जैन मुनि सुनील सागर के नेतृत्व में जैन समुदाय के लोग 'अढ़ाई दिन का झोपड़ा' तक नंगे पैर मार्च करने पहुंचे थे। इस दौरान उन्होंने यह कहा था कि यह स्थल कोई 'झोपड़ा' नहीं, बल्कि एक महल था, और यहां हिंदू आस्था की टूटी हुई मूर्तियां मिलीं। इस पर अजमेर शरीफ दरगाह के खादिमों की प्रतिनिधि संस्था अंजुमन कमेटी के सचिव सैयद सरवर चिश्ती ने आपत्ति जताई थी। उन्होंने कहा कि जैन मुनि बिना कपड़ों के मस्जिद में प्रवेश नहीं कर सकते, जबकि जैन मुनियों ने यह दावा किया था कि वे किसी भी सरकारी इमारत में प्रवेश करने के अधिकार रखते हैं।
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