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स्टारलिंक की भारत में एंट्री से क्या है खतरा? देश को उठाने होंगे ये बड़े कदम!

एलन मस्क की स्टारलिंक भारत में इंटरनेट क्रांति ला सकती है, लेकिन राष्ट्रीय सुरक्षा, डेटा गोपनीयता और साइबर खतरों की चिंताएं बनी हुई हैं।
05:23 PM Mar 20, 2025 IST | Rohit Agrawal

Starlink India Security Risks: एलन (Elon Musk) की कंपनी स्टारलिंक की भारत में एंट्री से इंटरनेट कनेक्टिविटी, खासकर ग्रामीण और दुर्गम इलाकों में, बेहतर होने की उम्मीद है। रिलायंस जियो और भारती एयरटेल जैसी कंपनियों के साथ साझेदारी से इसकी पहुंच और व्यापक हो सकती है। लेकिन इसके साथ ही राष्ट्रीय सुरक्षा, डेटा सिक्योरिटी और साइबर खतरों को लेकर गंभीर चिंताएं भी सामने आ रही हैं। आइए, इन खतरों और जरूरी कदमों को विस्तार से समझते हैं।

स्टारलिंक से भारत को क्या खतरा?

रक्षा डेटा लीक का जोखिम: बता दें कि स्टारलिंक एक सैटेलाइट-आधारित इंटरनेट सेवा है, जो लो-अर्थ ऑर्बिट (LEO) सैटेलाइट्स के जरिए डेटा ट्रांसमिट करती है। अगर इसका नियंत्रण विदेशी हाथों में रहा, तो भारतीय सेना के डिफेंस बेस, मिसाइल लॉन्च पैड्स, नौसेना डॉकयार्ड्स और सैन्य मूवमेंट की रियल-टाइम ट्रैकिंग संभव हो सकती है। भारत पहले भी साइबर हमलों का शिकार रहा है, जैसे 2018 में कुडनकुलम परमाणु संयंत्र पर हमला।

विदेशी निगरानी की आशंका: स्टारलिंक का डेटा अगर विदेशी सर्वरों पर स्टोर हुआ, तो संवेदनशील जानकारी—जैसे रणनीतिक योजनाएं, हथियारों की तैनाती और सरकारी संचार—विदेशी सरकारों या एजेंसियों के हाथ लग सकती है। भले ही भारत में सर्वर रखने की बात हो, डेटा तक अंतिम पहुंच कंपनी के मालिक यानी एलन मस्क के पास ही रहेगी।

साइबर हमलों का खतरा: स्टारलिंक के सिस्टम को अगर हैक किया गया, तो रक्षा और परमाणु प्रतिष्ठानों की जानकारी दुश्मन देशों तक पहुंच सकती है। यूक्रेन में स्टारलिंक की भूमिका इसका उदाहरण है, जहां यह सैन्य संचार की रीढ़ बना, लेकिन मस्क के "इंटरनेट बंद करने" वाले बयान ने इसकी भरोसेमंदता पर सवाल उठाए।

कम्युनिकेशन इंटरसेप्शन: भारतीय सेना गुप्त संचार प्रणालियों पर निर्भर है। स्टारलिंक जैसी विदेशी सेवा के इस्तेमाल से संवाद को इंटरसेप्ट या डिक्रिप्ट करने का खतरा बढ़ सकता है, खासकर संवेदनशील ऑपरेशनों में।

आतंकी और अशांति का दुरुपयोग: मणिपुर जैसे अशांत क्षेत्रों में स्टारलिंक का गलत इस्तेमाल संभव है। सैटेलाइट इंटरनेट को बंद करना मुश्किल होता है, जिससे दंगों या आतंकी गतिविधियों में इसका उपयोग हो सकता है। X पर यूजर्स ने भी इस चिंता को उठाया है।

भारत को क्या कदम उठाने होंगे ?

स्टारलिंक के फायदे (कनेक्टिविटी में सुधार) और खतरों को संतुलित करने के लिए भारत को ठोस कदम उठाने होंगे:

स्वदेशी तकनीक पर जोर: रक्षा मंत्रालय को ISRO और DRDO के साथ मिलकर स्वदेशी सैटेलाइट इंटरनेट नेटवर्क विकसित करना चाहिए। इससे विदेशी निर्भरता कम होगी और डेटा पर पूरा नियंत्रण भारत के पास रहेगा। NavIC (भारतीय क्षेत्रीय नेविगेशन सैटेलाइट सिस्टम) को मजबूत करना एक कदम हो सकता है।

मजबूत साइबर सुरक्षा नीतियां:मजबूत साइबर सुरक्षा नीतियों के तहत राष्ट्रीय साइबर सुरक्षा नीति को अपडेट कर विदेशी कंपनियों के लिए सख्त डेटा सुरक्षा नियम बनाए जाएं, डेटा एन्क्रिप्शन और क्लाउड सुरक्षा के लिए कठोर मानक लागू हों, साथ ही AI-आधारित साइबर खतरा निवारण प्रणाली विकसित की जाए।

भारत में कंट्रोल सेंटर: सरकार को स्टारलिंक से मांग करनी चाहिए कि शटडाउन और डेटा मॉनिटरिंग का कंट्रोल सेंटर भारत में हो। कॉल या डेटा को विदेश भेजने से पहले भारत में स्टारलिंक गेटवे से गुजरना अनिवार्य हो।

सैन्य नेटवर्क अलग करें: सभी सैन्य और सरकारी संचार के लिए एक स्वतंत्र, स्वदेशी नेटवर्क बनाया जाए, जिसमें BSNL, जियो या एयरटेल जैसी भारतीय कंपनियां शामिल हों। रक्षा क्षेत्र में विदेशी सेवाओं का इस्तेमाल पूरी तरह प्रतिबंधित हो।

निगरानी और जवाबदेही: स्टारलिंक के संचालन की निगरानी के लिए एक विशेष टास्क फोर्स बनाई जाए। डेटा उल्लंघन या सुरक्षा नियमों के पालन में कोताही पर सख्त कानूनी कार्रवाई हो, जैसे लाइसेंस रद्द करना।

 

स्टारलिंक डील पर चर्चा क्यों जरूरी?

एलन मस्क का यूक्रेन में स्टारलिंक को लेकर रुख कोई खास सही नहीं रहा है। आपको बता दें कि यूक्रेन में उन्होंने पूरा  इंटरनेट बंद करने तक की धमकी दी थी। जिससे जाहिर होता है कि ऐसी सेवाएं कितनी अनिश्चित हो सकती हैं। हालांकि यूक्रेन में स्टारलिंक ने सैन्य संचार को मजबूत किया, लेकिन मस्क के बयान ने इसकी भरोसेमंदता पर सवाल खड़े किए। पोलैंड जैसे देशों ने इस पर चिंता जताते हुए विकल्प तलाशने की बात कही। भारत के लिए यह सबक है कि विदेशी कंपनी पर निर्भरता रणनीतिक कमजोरी बन सकती है।

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