• ftr-facebook
  • ftr-instagram
  • ftr-instagram
search-icon-img

Mp पुलिस ने सेक्स वर्कर्स पर खाया रहम! लेकिन देह व्यापार को लेकर क्या कहता है भारत का कानून?

MP पुलिस का बड़ा बयान: स्वैच्छिक देह व्यापार अपराध नहीं। सुप्रीम कोर्ट और ITPA कानून के तहत जानिए भारत में इसकी कानूनी स्थिति।
featured-img

भारत में देह व्यापार का मुद्दा हमेशा से बहस का विषय रहा है। हाल ही में मध्य प्रदेश पुलिस के एक आदेश ने इस पर फिर से चर्चा छेड़ दी है। पुलिस मुख्यालय ने कहा है कि देह व्यापार में शामिल महिलाओं को अब आरोपी नहीं बनाया जाएगा। यह सुनकर सवाल उठता है—क्या भारत में देह व्यापार वैध है या गैरकानूनी? आइए, इसे कानून, सुप्रीम कोर्ट के फैसले और मध्य प्रदेश पुलिस के ऑर्डर के जरिए आसान और सरल भाषा में समझते हैं।

मध्य प्रदेश पुलिस ने क्या सुनाया था फरमान?

मध्य प्रदेश पुलिस मुख्यालय की ओर से स्पेशल डीजी (महिला सुरक्षा) प्रज्ञा ऋचा श्रीवास्तव ने एक नया आदेश जारी किया। इसमें कहा गया कि अगर कोई महिला अपनी मर्जी से देह व्यापार कर रही है, तो उसे न तो गिरफ्तार किया जाए, न दंडित किया जाए और न ही परेशान। आदेश में साफ है कि वैश्यालय चलाना अवैध है, लेकिन स्वैच्छिक देह व्यापार में शामिल महिला को पीड़ित और शोषित की तरह देखा जाए, न कि अपराधी की तरह।

यह फैसला सुप्रीम कोर्ट के 2022 के एक फैसले पर आधारित है, जिसमें कहा गया था कि अपनी इच्छा से देह व्यापार करना गैरकानूनी नहीं है। अब पुलिस होटल-ढाबा मालिकों जैसे संचालकों पर सख्ती करेगी, न कि महिलाओं पर।

भारत में देह व्यापार वैध या अवैध?

बता दें कि भारत में देह व्यापार की स्थिति थोड़ी उलझन भरी है। अनैतिक व्यापार निवारण अधिनियम (ITPA) 1956 इसके लिए मुख्य कानून है। सुप्रीम कोर्ट के वकील अंजन दत्ता बताते हैं कि खुद देह व्यापार करना—यानी अपनी मर्जी से यौन कार्य में शामिल होना कोई अपराध नहीं है। लेकिन इससे जुड़ी कई गतिविधियां गैरकानूनी हैं। मसलन, वैश्यालय चलाना, दलाली करना, नाबालिगों को इसमें शामिल करना, या सार्वजनिक जगहों पर ग्राहकों को लुभाना—ये सब ITPA के तहत अपराध हैं। मतलब, देह व्यापार अपने आप में गैरकानूनी नहीं, पर इसके आसपास का ढांचा कानून की नजर में गलत है।

ITPA और IPC के नियम: क्या कहता है कानून?

ITPA की धारा 3 वैश्यालय चलाने पर 1 से 3 साल की सजा और दूसरी बार पकड़े जाने पर 5 साल तक की कैद की बात करती है। धारा 4 कहती है कि अगर कोई देह व्यापार की कमाई पर जिए, तो 2 साल की सजा हो सकती है। धारा 5 जबरन या लालच देकर इसमें शामिल करने पर 3 से 7 साल की सजा देती है।

नाबालिगों को वैश्यालय में रखने (धारा 6) पर 7 से 10 साल की कैद और सार्वजनिक जगहों पर वेश्यावृत्ति (धारा 7) या ग्राहकों को लुभाने (धारा 8) पर जुर्माना और 6 महीने से 1 साल की सजा का प्रावधान है। दूसरी तरफ, IPC की धारा 370 मानव तस्करी और धारा 372 नाबालिगों की खरीद-फरोख्त को अपराध मानती है। CrPC की धारा 100 पुलिस को वैश्यालय पर छापा मारने की इजाजत देती है।

देह व्यापार को लेकर क्या रहा है SC का नजरिया?

सुप्रीम कोर्ट ने 2022 में बुद्धदेव कर्मास्कर बनाम पश्चिम बंगाल केस में साफ कहा कि देह व्यापार करने वाली महिलाएं भी सम्मान और समानता की हकदार हैं। कोर्ट ने इसे पेशे के तौर पर मान्यता दी और पुलिस को गाइडलाइंस दीं कि स्वैच्छिक देह व्यापार में शामिल महिलाओं को न गिरफ्तार करें, न परेशान करें, उनकी पहचान छिपाएं और उनके बच्चों को शिक्षा का पूरा हक दें। कोर्ट का तर्क था कि संविधान का अनुच्छेद 21 हर नागरिक को गरिमापूर्ण जीवन का अधिकार देता है, चाहे उनका पेशा कुछ भी हो। यह फैसला मध्य प्रदेश पुलिस के नए ऑर्डर की बुनियाद बना।

कितनी महिलाएं शामिल और क्यों नहीं साफ आंकड़े?

संयुक्त राष्ट्र की 2016 की रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में करीब 6.5 लाख यौनकर्मी थीं, लेकिन NGO और कुछ रिपोर्ट्स 30 लाख से 1 करोड़ तक का दावा करते हैं। चूंकि देह व्यापार को कानूनी मान्यता नहीं है और इसे सामाजिक कलंक माना जाता है, इसलिए सटीक आंकड़े मिलना मुश्किल है। कोई अलग जनगणना भी नहीं होती। सभ्यता की शुरुआत से यह काम चलता आ रहा है, लेकिन कानून और समाज इसे पूरी तरह स्वीकार नहीं करते।

तो क्या समझा?

भारत में देह व्यापार अपने आप में गैरकानूनी नहीं है, बशर्ते यह अपनी मर्जी से हो। लेकिन वैश्यालय चलाना, तस्करी, दलाली या नाबालिगों को इसमें धकेलना सख्त अपराध है। मध्य प्रदेश पुलिस का आदेश सुप्रीम कोर्ट की सोच को जमीन पर उतार रहा है—महिलाओं को अपराधी नहीं, पीड़ित मानकर उनके सम्मान की रक्षा करना। यह कदम कानून और इंसानियत के बीच एक नया संतुलन बनाने की कोशिश है। अब सवाल यह है कि क्या इससे समाज का नजरिया भी बदलेगा? यह वक्त बताएगा।

यह भी पढ़ें:

जनसंघ से शुरू, जनजन तक पहुंचा – 44 सालों में कमल कैसे बना देश का सिरमौर?

यासीन मलिक का सुप्रीम कोर्ट में दावा: "मैं नेता हूं, आतंकवादी नहीं"—क्यों दे रहा ऐसी दलीलें?

.

tlbr_img1 होम tlbr_img2 शॉर्ट्स tlbr_img3 वेब स्टोरीज tlbr_img4 वीडियो tlbr_img5 वेब सीरीज