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36 साल बाद क्यों हटा रुश्दी के विवादित उपन्यास सैटेनिक वर्सेज से बैन? जाने विवाद की पूरी कहानी

भारत वह पहला देश था, जिसने सैटेनिक वर्सेज पर बैन लगाया था। ब्रिटेन में इसके प्रकाशन के केवल नौ दिन बाद ही भारत ने इसपर बैन लगाया था जो की अब हट गया है।
03:09 PM Dec 26, 2024 IST | Vyom Tiwari
Salman Rushdie's Satanic Verses book

36 साल पहले लेखक सलमान रुश्दी का उपन्यास ‘सैटेनिक वर्सेज’ भारत में बैन कर दिया गया था, लेकिन अब यह किताब फिर से भारत में बिकने लगी है। बता दें इस किताब के प्रकाशित होते ही दुनियाभर में विवाद छिड़ गया था। ईरान ने तो रुश्दी के खिलाफ फतवा तक जारी कर दिया था। भारत में भी मुस्लिम समुदाय की भावनाओं को ठेस पहुंचने की चिंता के चलते इस किताब के आयात पर बैन लगा दिया गया था। तो चलिए, जानते हैं कि क्या था पूरा मामला और अब यह किताब भारत में कैसे बिकने लगी है।

ब्रिटिश-अमेरिकी लेखक सलमान रुश्दी को सबसे पहले उनकी पहली किताब “मिडनाइट चिल्ड्रेन” (1981) से पहचान मिली थी। इसके बाद, 26 सितंबर 1988 को उनके दूसरे उपन्यास सैटेनिक वर्सेज को इंग्लैंड के वाइकिंग पेंग्विन पब्लिशिंग हाउस ने प्रकाशित किया। अगले साल 22 फरवरी 1989 को अमेरिका के रैंडम हाउस ने भी इस किताब को प्रकाशित किया था।

भारत सैटेनिक वर्सेज पर प्रतिबंध लगाने वाला पहला देश था

यह उपन्यास जब प्रकाशित हुआ, तो दुनिया भर में इसके खिलाफ विरोध शुरू हो गया। कई जगहों पर इसकी प्रतियां तक जलाई गईं और कई देशों ने इस पर प्रतिबंध लगा दिया। इस बीच ईरान के सुप्रीम लीडर अयातुल्लाह खुमैनी ने लेखक सलमान रुश्दी की हत्या करने वाले को इनाम देने का फतवा जारी किया था।

भारत सैटेनिक वर्सेज पर प्रतिबंध लगाने वाला पहला देश था। ब्रिटेन में इसके प्रकाशित होने के सिर्फ नौ दिन बाद ही भारत में इसे विदेश से लाने और आयात करने पर रोक लगा दी गई। यह कदम तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी की सरकार के वित्त मंत्रालय ने उठाया था, और इसके लिए सीमा शुल्क अधिसूचना संख्या 405/12/88-सीयूएस-III जारी की गई थी।

एक मुस्लिम लड़के ने रुश्दी पर किया था हमला  

इस उपन्यास के प्रकाशन के बाद दुनिया भर में विवाद खड़ा हो गया था, क्योंकि इसमें पैगंबर की निंदा की गई थी। कुछ हिस्सों में कथित रूप से मुस्लिम पैगंबर की आलोचना की गई थी, जिसके कारण मुस्लिम समुदाय ने इसे इस्लाम और पैगंबर का अपमान और ईशनिंदा करार दिया था। इस विवाद के चलते, अगस्त 2022 में सलमान रुश्दी पर न्यूयॉर्क के एक कॉलेज में हमला भी हुआ था।

जब रुश्दी वहां व्याख्यान देने के लिए पहुंचे थे, तब हमलावर ने उन पर चाकू से हमला किया। हमलावर ने 27 सेकंड तक उनके शरीर के अलग-अलग हिस्सों, जैसे गर्दन और पेट पर 12 बार वार किए थे। हमलावर की पहचान 24 वर्षीय लेबनानी-अमेरिकी हादी मटर के रूप में हुई थी।

अब तक दुनिया भर में इसकी 10 लाख से ज्यादा कॉपियां बिकीं 

उन्होंने बीबीसी से बात करते हुए बताया कि वह हमलावर से न तो लड़ पाए थे और न ही उससे भाग सके थे। फिर वह फर्श पर गिर पड़े और उनके चारों ओर खून फैलने लगा। तुरंत ही हेलीकॉप्टर बुलाकर उन्हें अस्पताल ले जाया गया, जहां छह हफ्ते में उनकी हालत ठीक हो गई। इस हमले और विवाद के बावजूद, उनके उपन्यास की बिक्री में कमी नहीं आई, बल्कि यह और भी ज्यादा बढ़ गई। हमले के बाद इसकी बिक्री में जबरदस्त बढ़ोतरी हुई और अब तक दुनिया भर में इसके 10 लाख से ज्यादा कॉपियां बिक चुकी हैं।

मंत्रालय के पास प्रतिबन्ध का कोई आदेश ही नहीं

कोलकाता के 50 साल के संदीपन ने एक उपन्यास पर लगे प्रतिबंध के खिलाफ हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। उन्होंने बताया कि साल 2017 में उन्हें इस उपन्यास के बारे में जानने का मन हुआ। वह इसे कई दुकानों पर ढूंढने लगे, लेकिन कहीं भी यह नहीं मिला। फिर उन्हें पता चला कि भारत में इस उपन्यास पर प्रतिबंध लगाया गया है, इसलिए यह देश में उपलब्ध नहीं है। प्रतिबंध का कारण जानने के लिए उन्होंने एक मंत्रालय को सूचना का अधिकार अनुरोध भेजा, लेकिन वह अनुरोध दूसरे मंत्रालय को भेज दिया गया। अंत में उन्हें बताया गया कि इस प्रतिबंध का आदेश कहीं उपलब्ध नहीं है।

दिल्ली हाईकोर्ट ने कैसे हटाया प्रतिबंध?

संदीपन ने बताया कि जब उन्हें यह पता चला कि किताब पर बैन लगाने का आदेश नहीं मिल रहा, तो उनके वकील दोस्त ने सलाह दी कि इस पर कोर्ट में चुनौती दी जा सकती है। इसके बाद, 2019 में उन्होंने दिल्ली हाईकोर्ट में याचिका दायर की। हाईकोर्ट ने आदेश दिखाने के लिए कहा लेकिन नौकरशाही ने यह कहकर मामला टाल दिया कि सीमा शुल्क विभाग के अधिकारी दस्तावेज़ ढूंढ रहे हैं। आखिरकार यह सामने आया कि इतने सालों में वह आदेश कहीं खो गया था और 5 अक्टूबर 1988 को जारी किया गया मूल आदेश अब नहीं मिल रहा था।

दिल्ली हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया कि अब उसके पास उपन्यास पर बैन हटाने और इसके आयात की अनुमति देने के अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं बचा है, क्योंकि केंद्रीय अप्रत्यक्ष कर और सीमा शुल्क बोर्ड सरकार के आदेश की कोई प्रति पेश नहीं कर सका है। इस वजह से, कोर्ट इसके आदेश की वैधता की जांच नहीं कर सकता।

दिल्ली के इस बुकसेलर के यहां बिक्री शुरू

डेढ़ महीने बाद, सैटेनिक वर्सेज अब भारत में सीमित संख्या में बिक्री के लिए उपलब्ध हो गया है। दिल्ली के प्रसिद्ध बुकस्टोर बहरीसंस में इसे लिमिटेड स्टॉक के रूप में रखा गया है। यह बुकस्टोर, जो खान मार्केट में स्थित है, ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर भी इसकी बिक्री की जानकारी दी है। उन्होंने लिखा है, ‘द सैटेनिक वर्सेज अब बहरीसंस बुकसेलर्स में उपलब्ध है।’ यह किताब अपनी दिलचस्प कहानी और विवादित विषयों के कारण दशकों से पाठकों का ध्यान आकर्षित करती रही है। रिलीज के बाद से ही यह किताब वैश्विक विवादों का हिस्सा बनी है और इसने स्वतंत्रता, विश्वास और कला पर महत्वपूर्ण चर्चाएं शुरू की हैं।

 

 

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