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सैफ अली खान हमला केस, क्या है फेस रिकॉगनाइजेशन टेस्ट और कैसे करेगा ये जांच में मदद?

सैफ अली खान पर हुए हमले की जांच में फेस रिकॉगनाइजेशन टेस्ट का इस्तेमाल हो रहा है। जानिए ये टेस्ट क्या है, कैसे होता है, और शरीफुल की पहचान में ये कैसे मदद करेगा।
02:28 PM Jan 25, 2025 IST | Girijansh Gopalan
सैफ अली केस फेस रिकॉगनाइजेशन टेस्ट का इस्तेमाल कर रही है पुलिस।

बॉलीवुड अभिनेता सैफ अली खान पर हमला हुए एक हफ्ता बीत चुका है, लेकिन मामला अब भी रहस्यों में घिरा हुआ है। आरोपी शरीफुल की गिरफ्तारी के बाद भी सवाल खत्म नहीं हुए हैं। दरअसल, सीसीटीवी फुटेज में कैद आरोपी और पुलिस की हिरासत में मौजूद व्यक्ति को लेकर संशय बना हुआ है। ऐसे में पुलिस ने इस गुत्थी को सुलझाने के लिए फेस रिकॉगनाइजेशन टेस्ट का सहारा लेने का फैसला किया है। लेकिन सवाल ये उठता है कि ये फेस रिकॉगनाइजेशन टेस्ट है क्या और इससे मामले की जांच में कैसे मदद मिलेगी? आइए जानते हैं विस्तार से।

क्या होता है फेस रिकॉगनाइजेशन टेस्ट?

फेस रिकॉगनाइजेशन टेस्ट एक ऐसी तकनीक है, जिसमें किसी व्यक्ति के चेहरे की 3D इमेज बनाई जाती है। इस इमेज का मिलान सीसीटीवी फुटेज या अन्य वीडियो में कैद चेहरे से किया जाता है। आसान शब्दों में कहें तो इस टेस्ट की मदद से किसी व्यक्ति की पहचान की जाती है कि वो वही है या नहीं। इस तकनीक का इस्तेमाल पुलिस आमतौर पर अपराधियों की पहचान और उन्हें ट्रैक करने के लिए करती है। इसमें व्यक्ति के चेहरे के हर पहलू को ध्यान में रखते हुए तुलना की जाती है। फेस रिकॉगनाइजेशन टेस्ट से यह सुनिश्चित करना आसान हो जाता है कि कोई संदिग्ध शख्स फुटेज में नजर आ रहे व्यक्ति से मेल खाता है या नहीं।

कैसे किया जाता है फेस रिकॉगनाइजेशन टेस्ट?

फेस रिकॉगनाइजेशन टेस्ट लैब में किया जाता है। इसमें कुछ इस तरह के चरण शामिल होते हैं:

1. 3D इमेज की तैयारी: आरोपी के चेहरे की एक 3D इमेज तैयार की जाती है।

2. फुटेज का विश्लेषण: सीसीटीवी फुटेज या वीडियो में कैद आरोपी के चेहरे की हर एंगल से जांच की जाती है।

3. तुलना: 3D इमेज और फुटेज में नजर आ रहे चेहरे का मिलान किया जाता है।

4. रिपोर्ट: सभी एंगल से फोटो और फुटेज का विश्लेषण करने के बाद एक निष्कर्ष पर पहुंचा जाता है।

यह प्रक्रिया लंबी और जटिल होती है। आमतौर पर इसे पूरा करने में 48 से 72 घंटे लग सकते हैं।

शरीफुल का टेस्ट कैसे होगा?

मुंबई पुलिस के पास पहले से ही सैफ अली खान के घर की सीढ़ियों का सीसीटीवी फुटेज मौजूद है। इन फुटेज में एक व्यक्ति को सीढ़ियां चढ़ते और उतरते देखा जा सकता है। अब पुलिस शरीफुल का फेस रिकॉगनाइजेशन टेस्ट करेगी, जिसमें उसके चेहरे की 3D इमेज बनाई जाएगी। इसके बाद इस इमेज का फुटेज में नजर आ रहे व्यक्ति के साथ मिलान किया जाएगा। हर एंगल से जांच के बाद ही यह साफ हो पाएगा कि शरीफुल वही व्यक्ति है या नहीं, जिसने सैफ अली खान पर हमला किया था।

जांच में कैसे मदद करेगा टेस्ट?

इस टेस्ट से क्या आएगा रिजल्ट

यह स्पष्ट हो पाएगा कि पुलिस द्वारा गिरफ्तार किया गया आरोपी असल हमलावर है या नहीं।

सीसीटीवी फुटेज में कैद व्यक्ति की पहचान सुनिश्चित हो सकेगी।

मामले में किसी भी प्रकार की शंका या विवाद खत्म हो जाएगा।

पुलिस को क्यों लेना पड़ा टेस्ट का सहारा?

शरीफुल की गिरफ्तारी के बाद कुछ लोगों का दावा है कि वह व्यक्ति, जिसे सीसीटीवी में देखा गया था, पुलिस की गिरफ्त में मौजूद आरोपी से मेल नहीं खाता। यही वजह है कि पुलिस ने टेस्ट कराने का फैसला किया।

मामले में अब तक क्या हुआ है?

सैफ अली खान पर यह हमला उनके घर के बाहर हुआ था। सीसीटीवी फुटेज में एक व्यक्ति को सीढ़ियां चढ़ते और उतरते हुए देखा गया। शरीफुल को इस मामले में आरोपी बनाया गया और गिरफ्तार किया गया। फिलहाल आरोपी को 29 जनवरी तक पुलिस हिरासत में रखा गया है।

क्या कह रहे हैं एक्सपर्ट्स?

फेस रिकॉगनाइजेशन तकनीक पर काम करने वाले एक्सपर्ट्स का कहना है कि यह तकनीक बेहद सटीक होती है। 3D इमेजिंग और फुटेज का गहन विश्लेषण किसी भी शख्स की पहचान करने में मददगार साबित होता है।

अब क्या है अगला कदम?

पुलिस की जांच अब फेस रिकॉगनाइजेशन टेस्ट पर टिकी हुई है। इस टेस्ट की रिपोर्ट आने के बाद ही तय हो पाएगा कि शरीफुल असली आरोपी है या नहीं। फेस रिकॉगनाइजेशन तकनीक आधुनिक जांच प्रक्रिया का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन चुकी है। यह तकनीक न केवल मामलों को सुलझाने में मदद करती है, बल्कि न्याय प्रक्रिया को भी तेज और पारदर्शी बनाती है।

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