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रूह अफजा पर 'Sharbat Jihad' विवाद: क्या सच में सिर्फ़ मुसलमानों का है यह पेय, क्या है इसका पाक से संबंध?

बाबा रामदेव के 'Sharbat Jihad' बयान से रूह अफजा विवादों में, क्या यह मुस्लिमों से जुड़ा है या भारत की साझी सांस्कृतिक विरासत?
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Sharbat Jihad: योग गुरु बाबा रामदेव ने एक बार फिर रूह अफजा को लेकर सांकेतिक कमेंट कर विवादों को जन्म दे दिया है। दरअसल उन्होंने हाल ही में 'Sharbat Jihad' शब्द का इस्तेमाल करते हुए दावा किया कि एक खास कंपनी द्वारा बेचे जाने वाले शरबत से होने वाली कमाई मदरसों और मस्जिदों के निर्माण में लगाई जाती है। हालांकि उन्होंने सीधे तौर पर रूह अफजा का नाम नहीं लिया, लेकिन संकेत साफ थे। इस बयान ने सोशल मीडिया पर तूफान ला दिया और एक बार फिर इस पारंपरिक पेय को धर्म से जोड़कर देखा जाने लगा। आइए जानते हैं कि क्या वाकई रूह अफजा का कोई धार्मिक या पाकिस्तानी कनेक्शन है, या यह महज एक बेहतरीन भारतीय उत्पाद है जिसने दशकों से सभी धर्मों के लोगों की प्यास बुझाई है।

क्या है रूह अफजा का इतिहास?

रूह अफजा का इतिहास 119 साल पुराना है। इसकी शुरुआत 1906 में पुरानी दिल्ली के एक यूनानी चिकित्सक हकीम हाफिज अब्दुल मजीद ने की थी। उन्होंने गर्मियों में लोगों को तरोताजा करने के लिए फलों, जड़ी-बूटियों और फूलों के अर्क से एक अनूठा शरबत तैयार किया, जिसे 'रूह अफजा' नाम दिया गया। उर्दू में इसका मतलब है 'आत्मा का कायाकल्प'। हकीम साहब ने दिल्ली में 'हमदर्द' नाम की एक यूनानी क्लिनिक शुरू की, जिसका अर्थ है 'सभी के लिए सहानुभूति'। यहीं से रूह अफजा की यात्रा शुरू हुई, जो आज देश के कोने-कोने में पहुंच चुका है।

क्या रूह अफजा का पाकिस्तान से कोई संबंध है?

1947 में भारत-पाकिस्तान विभाजन के बाद हकीम अब्दुल मजीद के एक बेटे हकीम मोहम्मद सईद पाकिस्तान चले गए और वहां उन्होंने 'हमदर्द पाकिस्तान' की स्थापना की। बाद में बांग्लादेश में भी हमदर्द की एक शाखा खुली। हालांकि, हमदर्द इंडिया के वर्तमान ट्रस्टी हामिद अहमद के अनुसार, रूह अफजा का ट्रेडमार्क भारत के पास है और यह एक शुद्ध भारतीय उत्पाद है।

उन्होंने स्पष्ट किया कि तीनों देशों में अलग-अलग कंपनियां रूह अफजा बनाती हैं, लेकिन भारत में बिकने वाला शरबत पूरी तरह से स्वदेशी है।

क्या रूह अफजा की कमाई मदरसों और मस्जिदों में जाती है?

हमदर्द इंडिया एक गैर-लाभकारी संस्था है, जिसका मुनाफा हमदर्द फाउंडेशन को जाता है। इस फाउंडेशन द्वारा शिक्षा और चिकित्सा से जुड़े कई सामाजिक कार्य किए जाते हैं। हालांकि, यह दावा करना कि इसकी आय सिर्फ मदरसों और मस्जिदों के निर्माण में खर्च होती है, गलत होगा। कंपनी का कहना है कि उनके प्रोजेक्ट्स सभी समुदायों के लोगों के कल्याण के लिए हैं।

क्यों रूह अफजा सभी धर्मों में लोकप्रिय है?

रूह अफजा की खासियत यह है कि यह किसी एक धर्म या समुदाय तक सीमित नहीं है। रमजान के दौरान इफ्तारी में इसकी भरपूर मांग होती है, तो हिंदू त्योहारों पर लगने वाले शरबत के स्टालों और सिखों की लंगर छबीलों में भी यह समान रूप से पसंद किया जाता है। इसकी लोकप्रियता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि हमदर्द इंडिया को साल 2020 में केवल रूह अफजा की बिक्री से 37 मिलियन डॉलर की कमाई हुई थी।

राजनीति से परे एक प्यारा पेय

रूह अफजा पर 'शरबत जिहाद' जैसे आरोप लगाना न सिर्फ गलत है, बल्कि इसकी विरासत को नुकसान पहुंचाने जैसा है। यह पेय भारत की साझा संस्कृति का प्रतीक है, जिसने एक सदी से भी अधिक समय तक सभी धर्मों और वर्गों के लोगों को एक साथ जोड़ा है। बजाय इसे धर्म से जोड़ने के, हमें इसकी गुणवत्ता और स्वाद की सराहना करनी चाहिए, जिसने इसे भारतीय गर्मियों का अटूट हिस्सा बना दिया है।

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