Robert Vadra land deal: DLF लैंड डील मामले को लेकर रॉबर्ट वाड्रा फिर सुर्खियों में क्यों? जानिए पूरी कहानी
Robert Vadra land deal Case: रॉबर्ट वाड्रा नाम सुनते ही सियासत और सनसनी की बू आती है। प्रियंका गांधी के पति और गांधी परिवार के दामाद वाड्रा एक बार फिर प्रवर्तन निदेशालय (ED) के रडार पर हैं। मामला है हरियाणा के शिकोहपुर में 2008 की एक ज़मीन डील का, जिसने 17 साल बाद भी हंगामा मचा रखा है। सस्ते दाम पर खरीदी गई ज़मीन को मोटे मुनाफे में बेचने का आरोप, ED की पूछताछ, और वाड्रा का पैदल मार्च—यह सब किसी बॉलीवुड थ्रिलर से कम नहीं। लेकिन आखिर इस डील में ऐसा क्या है, जो इसे इतना खास बनाता है? क्यों वाड्रा इसे "सियासी बदला" बता रहे हैं? चलिए, इस कहानी को सरल अंदाज़ में समझते हैं।
#WATCH | Delhi: Businessman Robert Vadra reaches the ED office after being summoned in connection with a Gurugram land case. pic.twitter.com/aCw5wvOCsW
— ANI (@ANI) April 15, 2025
क्या है पूरा केस?
दरअसल 2008 में रॉबर्ट वाड्रा की कंपनी स्काईलाइट हॉस्पिटैलिटी ने गुरुग्राम के शिकोहपुर में 3.5 एकड़ ज़मीन को 7.5 करोड़ रुपये में खरीदा। यह ज़मीन ओंकारेश्वर प्रॉपर्टीज़ नाम की कंपनी से ली गई थी। अब तक तो सब ठीक था। लेकिन इसके बाद जो हुआ, उसने सबके कान खड़े कर दिए। कुछ ही महीनों में हरियाणा की तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने इस ज़मीन को कमर्शियल लाइसेंस दे दिया। फिर वाड्रा की कंपनी ने इस ज़मीन को रियल एस्टेट की दिग्गज कंपनी DLF को 58 करोड़ रुपये में बेच दिया।
यानी, चंद महीनों में 50.5 करोड़ का मुनाफा!ED को शक है कि इस डील में मनी लॉन्ड्रिंग हुई। सवाल यह है कि इतना बड़ा मुनाफा कैसे हुआ? क्या तत्कालीन मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा की सरकार ने नियमों को तोड़कर वाड्रा को फायदा पहुँचाया? क्या यह डील सिर्फ़ बिज़नेस थी, या इसके पीछे कोई सियासी साज़िश? इन सवालों ने इस केस को हाई-प्रोफाइल बना दिया।
कैसे शुरू हुआ विवाद?
यह मामला पहली बार 2012 में तब सुर्खियों में आया, जब IAS अधिकारी अशोक खेमका ने इस डील के म्यूटेशन (ज़मीन के स्वामित्व हस्तांतरण) को रद्द कर दिया। खेमका ने दावा किया कि यह डील नियमों के खिलाफ थी और इसमें भ्रष्टाचार की बू आती है। इसके बाद 2018 में तौरू के रहने वाले सुरेंद्र शर्मा ने गुरुग्राम के खेरकी दौला थाने में शिकायत दर्ज की। उन्होंने वाड्रा, हुड्डा, DLF और ओंकारेश्वर प्रॉपर्टीज़ पर धोखाधड़ी, जालसाज़ी, और साज़िश का आरोप लगाया।
पुलिस ने IPC की धारा 420, 120B, 467, 468, 471 और बाद में 423 के तहत केस दर्ज किया।ED ने इस मामले को प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट (PMLA) के तहत लिया और वाड्रा से पूछताछ शुरू की। 8 अप्रैल 2025 को ED ने पहला समन भेजा, लेकिन वाड्रा नहीं आए। फिर 15 अप्रैल को दूसरा समन भेजा गया, और इस बार वाड्रा अपने समर्थकों के साथ ED दफ्तर पहुँचे।
पैदल मार्च वाला तेवर क्या इशारा कर रहा?
बता दें कि ED के समन पर वाड्रा अपने दिल्ली के घर से दफ्तर तक पैदल मार्च करते हुए पहुंचे हैं। काला कोट, काला चश्मा, और समर्थकों की भीड़—यह नज़ारा किसी रैली से कम नहीं था। पूछताछ से पहले वाड्रा ने कहा कि जब भी मैं जनता के लिए बोलता हूँ, मुझे चुप कराने की कोशिश होती है। 20 साल से जाँच चल रही है, 23,000 दस्तावेज़ दिए, फिर भी कुछ नहीं मिला। यह कुछ नहीं बस सियासी बदला है।" उन्होंने यह भी कहा कि लोग चाहते हैं कि वे राजनीति में आएँ, और शायद यही वजह है कि उन पर दबाव बनाया जा रहा है। वहीं वाड्रा का यह मार्च और बयान सियासत में भी नया रंग भर गया है। कोई इसे उनकी राजनीतिक एंट्री का ट्रेलर बता रहा है, तो कोई इसे गांधी परिवार की ताकत का प्रदर्शन। लेकिन सवाल वही—क्या वाड्रा सचमुच निर्दोष हैं, या डील में कुछ गड़बड़ थी?
#WATCH | Delhi: Businessman Robert Vadra says, " We told the ED we were organising our documents, I am always ready to be here... I hope there's a conclusion today. There is nothing in the case... When I speak in favor of the country, I am stopped, Rahul is stopped from speaking… pic.twitter.com/yndifxxBf6
— ANI (@ANI) April 15, 2025
तो क्यों है यह केस इतना खास?
गांधी परिवार का कनेक्शन: वाड्रा राहुल और प्रियंका गांधी के करीबी हैं। इसीलिए बीजेपी इसे कांग्रेस के खिलाफ हथियार बनाती है, और कांग्रेस इसे "विपक्ष को दबाने" की साज़िश बताती है।
हरियाणा की सियासत: हुड्डा पर वाड्रा को फायदा पहुँचाने का आरोप इस केस को सियासी रंग देता है।
मोटा मुनाफा: 7.5 करोड़ की ज़मीन का 58 करोड़ में बिकना हर किसी को हैरान करता है।
खेमका की ईमानदारी: अशोक खेमका की सख्ती ने इस मामले को राष्ट्रीय चर्चा में ला दिया।
Ed क्या कर रही है?
ED अब वाड्रा से पूछ रही है कि इतना मुनाफा कैसे हुआ? क्या नियम तोड़े गए? पैसा कहाँ गया? वाड्रा का कहना है कि उनकी कंपनी ने टैक्स भरा और सबकुछ कानूनी था। लेकिन अगर ED को कोई ठोस सबूत मिला, तो चार्जशीट दाखिल हो सकती है। अगर नहीं, तो वाड्रा को क्लीन चिट भी मिल सकती है। लेकिन इस केस ने सियासत को गरमा दिया है। क्या यह वाड्रा की राजनीतिक पारी की शुरुआत है, या फिर एक और जाँच जो बिना नतीजे के खत्म हो जाएगी? जवाब का इंतज़ार सबको है।
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