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Rental Deposit: अगर मकान मालिक डिपॉजिट मनी वापस नहीं करे तो कीजिए यह काम, जरूरी बात समझ लें किराएदार!

Rental Deposit: मकान मालिक और किराएदार के बीच एक लिखित एग्रीमेंट होता है। साथ ही एडवांश के तौर पर सिक्योरिटी डिपॉजिट की प्रोसेस होती है।
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Rental Deposit: कई लोगों को नौकरी, पढ़ाई या बिजनेस के लिए अपने शहर से बाहर जाकर रहना पड़ता है। ऐसे में आप किराए का रूम या मकान देखते हैं और मकान मालिक आपको कुछ शर्तों पर किराए से रखता है। मकान मालिक और किराएदार के बीच एख एग्रीमेंट होता है, जो लिखित होता है। साथ ही एडवांश के तौर पर सिक्योरिटी डिपॉजिट की प्रोसेस होती है। लेकिन, कई बार घर खाली करने के बाद भी मकान मालिक बिना किसी ठोस कारण के सिक्योरिटी मनी वापस लौटाने से मना कर देते हैं। ऐसे में किराएदार के लिए परेशानी खड़ी हो जाती है कि वह अपना रूपया वापस कैसे ले? आइए जानते हैं।

डिपॉजिट मनी वापस पाने का उपाय

कई बार किराएदारों को अपना पैसा ही वापस लेने में परेशानियों का सामना करना पड़ता है। खासकर जब मकान मालिक बिना किसी ठोस वजह के पैसा रोक लेते हैं। एक मीडिया रिपोर्ट में इस कारोबार से जुड़े एक एक्सपर्ट ने इस बारे में जानकारी देते हुए बताया कि उस वक्त किन कानूनों को अपनाना सही रहता है। कुछ कानूनी प्रोसेस से आप अपना रुपया वापस पा सकते हैं।

रेंट एग्रीमेंट की समझें अहमियत

किराए पर घर लेने से पहले एक साफ-सुथरा और विस्तृत रेंट एग्रीमेंट अवश्य करवाएं। इसमें डिपॉजिट की रकम, भुगतान का तरीका, कटौती की शर्तें और पैसा लौटाने की प्रोसेस और समय सीमा स्पष्ट लिखी होनी चाहिए। जब आप घर खाली करें तो मकान मालिक से लिखित रूप में दस्तावेज लें कि वह कितनी रकम लौटा रहा है। यह दस्तावेज बाद में विवाद की कंडीशन में आपके पक्ष में सबूत बनेगा। भारत में रेंट से जुड़े नियम हर प्रदेश में अलग होते हैं। लेकिन, ज्यादातर राज्यों में 2-3 महीने के किराए के बराबर डिपॉजिट लिया जाता है।

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इसके तहत केस कर सकते हैं-

यदि अगर मकान मालिक बिना वजह डिपॉजिट नहीं लौटाता तो किराएदार "इंडियन कॉन्ट्रेक्ट एक्ट 1872 के तहत केस कर सकते हैं। कंज्यूमर प्रोटेक्शन एक्ट 2019 में भी शिकायत दर्ज की जा सकती है। अगर मकान मालिक चेक दे और वह बाउंस हो जाए तो नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट 1881 की धारा 138 लागू होती है। इसके अलावा राज्य का रेंट कंट्रोल एक्ट भी मददगार हो सकता है। हालांकि, पहले बातचीत और ईमेल के जरिए ही मामला सुलझाना चाहिए। इसके बाद कानूनी नोटिस भेजें। इसके बाद केस सिविल कोर्ट में हो सकता है। आपके पास रेंट एग्रीमेंट से जुड़े डॉक्यूमेंट होना चाहिए।

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