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दिल्ली की एकमात्र महिला सुल्तान! जिसने साबित किया कि महिलाएं भी कर सकती हैं राज

भारत की पहली महिला शासक रजिया सुल्तान थीं, जो गुलाम वंश के संस्थापक कुतुबुद्दीन ऐबक की नातिन और दिल्ली के सुल्तान इल्तुतमिश की बेटी थीं।
03:14 PM Mar 08, 2025 IST | Vyom Tiwari

भारत में महिलाओं के शासन के किस्से बहुत पुराने हैं। इन्हीं में से एक कहानी है भारत की पहली महिला सुल्तान की – रजिया सुल्तान। वह गुलाम वंश के संस्थापक कुतुबुद्दीन ऐबक की नातिन और दिल्ली के सुल्तान इल्तुतमिश की बेटी थीं। इतिहास में उनका नाम इसलिए खास है क्योंकि उन्होंने उस दौर में सत्ता संभाली, जब महिलाओं को राज करने का हक नहीं दिया जाता था। अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के मौके पर आइए, जानते हैं भारत की इस पहली महिला शासक की कहानी।

रजिया का जन्म 1205 ईस्वी में बदायूं में हुआ

भारत में गुलाम वंश की स्थापना कुतुबुद्दीन ऐबक ने की थी, लेकिन उनके बाद उनका दामाद इल्तुतमिश सुल्तान बना। इल्तुतमिश की बेटी रजिया का जन्म 1205 ईस्वी में बदायूं में हुआ था। उनका पूरा नाम जलालात उद-दिन रजिया था।

इल्तुतमिश के घर कई बेटे-बेटियों का जन्म हुआ, लेकिन जब रजिया पैदा हुईं, तो वह बेहद खुश हुए। उन्होंने इस खुशी में बड़ा जश्न मनाया और उनकी पढ़ाई-लिखाई का खास ध्यान रखा। रजिया ने छोटी उम्र से ही घुड़सवारी और तीरंदाजी में माहिर होना शुरू कर दिया। महज 13 साल की उम्र में वह एक कुशल घुड़सवार और तीरंदाज बन गईं। इतना ही नहीं, वह अपने पिता के साथ युद्ध अभियानों में भी जाने लगीं और शासन के गुर सीखने लगीं।

तो इसलिए बनाया रजिया को सुल्तान

एक बार की बात है, जब इल्तुतमिश ग्वालियर पर हमला करने गया, तो उसने दिल्ली की सत्ता अपनी बेटी रजिया को सौंप दी। जब वह वापस लौटा, तो उसने देखा कि रजिया ने शासन बहुत अच्छे से संभाला। वह उसकी काबिलियत से इतना प्रभावित हुआ कि उसने अपने बेटे रुक्नुद्दीन फिरोज की बजाय रजिया को अपना उत्तराधिकारी बनाने का फैसला किया।

लेकिन इल्तुतमिश की मृत्यु के बाद, रुक्नुद्दीन फिरोज को गद्दी पर बैठा दिया गया। उसने करीब सात महीने तक दिल्ली पर शासन किया।

साल 1236 में, रजिया ने दिल्ली के लोगों के समर्थन से सत्ता पर कब्जा कर लिया। इस तरह, वह दिल्ली की पहली महिला शासक बनीं और उनके सिंहासन पर बैठने के साथ ही सल्तनत काल की एक नई शुरुआत हुई। रजिया इतिहास में पहली मुस्लिम महिला शासक के रूप में जानी गईं।

रूढ़िवादियों को रास नहीं आई महिला की सत्ता

दिल्ली के रूढ़िवादी लोगों को यह मंजूर नहीं था कि कोई महिला सुल्तान बने। वे उसे सुल्तान के रूप में स्वीकार नहीं कर सके और उसके खिलाफ साजिशें रचने लगे। सल्तनत के वजीर निजाम-अल-मुल्क जुनैदी ने सुल्तान की वफादारी करने से इंकार कर दिया और कुछ अन्य लोगों के साथ मिलकर बगावत कर दी। इस हालात में अवध के मुखिया तबाशी मुइजी, सुल्तान की मदद के लिए दिल्ली रवाना हुए। लेकिन जब वे गंगा पार कर रहे थे, तो विरोधी कमांडरों ने उन्हें मिलने के बहाने बुलाया और फिर हिरासत में ले लिया।

याकूत और रजिया के रिश्ते पर क्यों भड़का अल्तूनिया?

अफ्रीकी सिद्दी गुलाम जमाल-उद-दीन याकूत, रजिया सुल्तान के सबसे करीबी लोगों में से एक बन गया। वह न केवल रजिया का विश्वासपात्र था, बल्कि सल्तनत में भी उसे खास दर्जा मिला हुआ था। रजिया ने उससे शादी करने का फैसला कर लिया। लेकिन, बठिंडा के प्रशासक मलिक इख्तियार-उद-दीन अल्तुनिया को यह रिश्ता मंजूर नहीं था।

अल्तुनिया और रजिया बचपन से एक-दूसरे को जानते थे, और अल्तुनिया के मन में रजिया के लिए खास लगाव था। जब उसे रजिया और याकूत के रिश्ते के बारे में पता चला, तो उसने नाराज होकर बगावत कर दी। इस विद्रोह में उसने याकूत की हत्या कर दी।

रजिया इस विद्रोह को रोकने के लिए बठिंडा पहुंचीं, लेकिन वहां उनके खिलाफ साजिश रच दी गई। नतीजा यह हुआ कि रजिया को सत्ता से हटा दिया गया और उनकी जगह बहराम को सुल्तान बना दिया गया।

सिर्फ चार साल तक दिल्ली की सुल्तान रहीं रजिया 

रजिया ने समझदारी से फैसला लिया और अल्तुनिया से शादी के लिए तैयार हो गई। जब दोनों दिल्ली की ओर बढ़ रहे थे, तो रास्ते में बहराम ने उन्हें रोक लिया। 13 अक्तूबर 1240 को उसने उन्हें हरा दिया और अगले ही दिन, 14 अक्तूबर को, दोनों की हत्या करवा दी। रजिया भले ही सिर्फ चार साल तक दिल्ली की सुल्तान रहीं, लेकिन उनके किए गए कामों की आज भी सराहना की जाती है।

दिल्ली की पहली और अकेली महिला सुल्तान

रजिया दिल्ली की पहली और अकेली महिला सुल्तान थीं। उनके बाद किसी भी वंश में कोई महिला सत्ता के सर्वोच्च पद तक नहीं पहुंची, हालांकि कुछ ने शासन में अप्रत्यक्ष रूप से दखल जरूर दिया।

अपने शासनकाल में रजिया ने पूरे इलाके में शांति बनाए रखी। लोग उनके नियमों का पालन करते थे, जिससे व्यवस्था बनी रही। उन्होंने सड़कों और कुओं का निर्माण करवाया, स्कूल और पुस्तकालय खुलवाए, ताकि लोग शिक्षा प्राप्त कर सकें।

रजिया कला और संस्कृति की भी समर्थक थीं। उन्होंने विद्वानों, चित्रकारों और शिल्पकारों को प्रोत्साहन दिया, जिससे शिल्प और ज्ञान का विकास हुआ।

 

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