Sunday, April 6, 2025
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इलेक्ट्रिक अग्निदाह से होगी विदाई, ऐसे होगा रतन टाटा का अंतिम संस्कार

Ratan Tata Last Rites Crematorium: रतन टाटा के निधन से पूरे देश में शोक की लहर दौड़ गई है। उन्होंने कल रात 86 वर्ष की उम्र में मुंबई के ब्रीच कैंडी अस्पताल में अंतिम सांस ली। आज उनका अंतिम...
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Ratan Tata Last Rites Crematorium: रतन टाटा के निधन से पूरे देश में शोक की लहर दौड़ गई है। उन्होंने कल रात 86 वर्ष की उम्र में मुंबई के ब्रीच कैंडी अस्पताल में अंतिम सांस ली। आज उनका अंतिम संस्कार मुंबई के वर्ली के पारसी श्मशान घाट में किया जाएगा, जहां उन्हें राजकीय सम्मान के साथ विदाई दी जाएगी। उनके पार्थिव शरीर को इलेक्ट्रिक अग्निदाह में रखा जाएगा, और इससे पहले प्रेयर हॉल में रखा जाएगा।

NCPA में अंतिम दर्शन का आयोजन

रतन टाटा का पार्थिव शरीर तिरंगे में लिपटा हुआ नरीमन प्वाइंट स्थित राष्ट्रीय प्रदर्शन कला केंद्र (NCPA) में रखा गया है। यहां भारी संख्या में लोग उनके अंतिम दर्शन के लिए पहुंच रहे हैं। दोपहर साढ़े तीन बजे तक लोग उनके पार्थिव शरीर को श्रद्धांजलि दे सकेंगे। इसके बाद, शाम 4 बजे वर्ली में उनका अंतिम संस्कार किया जाएगा।

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अंतिम संस्कार की प्रक्रिया

रतन टाटा, जो पारसी पंथ समुदाय से संबंधित थे, का अंतिम संस्कार पारसी रीति-रिवाजों के बजाय वर्ली के श्मशान घाट में किया जाएगा। उनका पार्थिव शरीर वर्ली के पारसी श्मशान भूमि में लाया जाएगा, जहां प्रेयर हॉल में शव को रखकर करीब 45 मिनट तक प्रार्थना होगी। प्रार्थना में पारसी परंपरा के अनुसार ‘गेह-सारनू’ का पाठ किया जाएगा। इसके बाद शव के मुख में एक कपड़े का टुकड़ा रखकर ‘अहनावेति’ का पहला अध्याय पढ़ा जाएगा, जो पारसियों की शांति प्रार्थना की प्रक्रिया है। अंत में, शव को इलेक्ट्रिक अग्निदाह में रखकर अंतिम संस्कार की प्रक्रिया पूरी की जाएगी।

दोखमेनाशिनी परंपरा का पालन नहीं किया जाएगा

रतन टाटा के अंतिम संस्कार में पारसी समुदाय की दोखमेनाशिनी परंपरा का पालन नहीं किया जाएगा। पारसी समुदाय में मृत्यु के बाद शव की अंतिम संस्कार प्रक्रिया को दोख्मा कहा जाता है, जिसमें शव को न जलाया जाता है, न दफनाया जाता है, और न ही बहाया जाता है। पारसी धर्म के अनुसार, शव को पारंपरिक कब्रिस्तान, जिसे टावर ऑफ साइलेंस या दखमा कहते हैं, में खुले आसमान के नीचे रख दिया जाता है, जहां गिद्ध शव को खाते हैं। यह परंपरा लगभग तीन हजार वर्ष पुरानी है और इसे पारसियों के लिए शुद्धता और पवित्रता का प्रतीक माना जाता है।

हालांकि, पारसी समुदाय की संख्या धीरे-धीरे कम हो रही है। कोरोना काल के दौरान महामारी के कारण अंतिम संस्कार की विधियों में बदलाव आया, जिससे पारसियों की परंपरा पर रोक लगी। इसके अलावा, भारत में चील-गिद्ध जैसे पक्षियों की संख्या भी घट रही है, जिससे पारसियों को अपनी पुरानी परंपरा निभाना मुश्किल हो रहा है। ऐसे में पारसी परिवार अब परिजनों का अंतिम संस्कार हिंदुओं के श्मशान घाटों या विद्युत शवदाह में करने लगे हैं।

रतन टाटा का अंतिम संस्कार हिंदू रीति-रिवाज से जलाकर किया जाएगा। उनका अंतिम संस्कार विद्युत शवदाह में होगा। इससे पहले, 2022 में टाटा संस के पूर्व चेयरमैन साइरस मिस्त्री का भी अंतिम संस्कार हिंदू रीति-रिवाज से किया गया था। रतन टाटा के अंतिम संस्कार में इस परिवर्तन से यह स्पष्ट होता है कि पारसी परंपरा में बदलाव आ रहा है और समुदाय अपनी परंपराओं को लेकर नए रास्ते अपना रहा है।

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