सड़क पर नमाज, काली पट्टी और फूलों की बारिश: रमजान के आखिरी जुमे पर क्यों गरमाई राजनीति?
नई दिल्ली: रमजान का पवित्र महीना अपने अंतिम पड़ाव पर है और आज अलविदा जुमे की नमाज के साथ यह और खास हो गया है। लेकिन इस बार ईद से पहले नमाज का तरीका, जगह और इससे जुड़े मुद्दे राजनीति के केंद्र में आ गए हैं। सड़क पर नमाज पर रोक से लेकर वक्फ बिल के खिलाफ काली पट्टी और नमाजियों पर फूल बरसाने की मांग तक—हर तरफ बहस छिड़ी है। नेताओं की बयानबाजी और धार्मिक संगठनों की अपील ने इसे और तूल दे दिया है। आइए, इस पूरे मामले को विस्तार से समझते हैं।
वक्फ बिल को लेकर काली पट्टी बांधकर विरोध
ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (AIMPLB) ने वक्फ (संशोधन) विधेयक के खिलाफ मुस्लिम समुदाय से अपील की है कि वे अलविदा जुमे की नमाज के दौरान दाहिने हाथ पर काली पट्टी बाँधकर विरोध जताएँ। AIMPLB के महासचिव मौलाना मोहम्मद फजलुर रहीम मुजद्दिदी ने एक वीडियो संदेश में कहा, "यह विधेयक मुस्लिम अधिकारों पर हमला है। हमारा प्रदर्शन जारी है, और जुमातुल विदा इसका हिस्सा है।" यह बयान संसद की संयुक्त समिति की रिपोर्ट के बाद आया है, जो 30 जनवरी को लोकसभा अध्यक्ष को सौंपी गई थी। विपक्ष ने इस रिपोर्ट से असहमति जताई है, और अटकलें हैं कि यह बिल मौजूदा सत्र में पेश हो सकता है। AIMPLB का यह कदम रमजान को राजनीतिक मंच बनाने के आरोपों के बीच चर्चा में है।
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रमज़ान के इस आख़री जुमा, जुमातुल विदा को मुसलमान यह काम ज़रूर करें...👇🏻
This Ramazan's Jumma Tul Wida Let us Protest against Waqf Amendment Bill by this method 👇🏻#IndiaAgainstWaqfBill… pic.twitter.com/FPFC0XSZbk
— All India Muslim Personal Law Board (@AIMPLB_Official) March 27, 2025
नमाजियों पर फूल बरसाने की माँग
समाजवादी पार्टी के नेता फिरोज खाँ ने उत्तर प्रदेश के सीएम योगी आदित्यनाथ से माँग की है कि जैसे कांवड़ियों और महाकुंभ में स्नान करने वालों पर हेलिकॉप्टर से पुष्पवर्षा होती है, वैसे ही अलविदा जुमे की नमाज के दौरान नमाजियों पर भी फूल बरसाए जाएँ। उन्होंने कहा, "अगर सरकार ऐसा नहीं कर सकती, तो हमें अनुमति दे।" फिरोज ने इसके लिए एक पत्र लिखा और स्थानीय प्रशासन को ज्ञापन सौंपने की बात कही। यह माँग जहाँ समानता की बात करती है, वहीं इसे सियासी स्टंट के तौर पर भी देखा जा रहा है।
सड़क पर नमाज पर रोक से मचा बबाल!
उत्तर प्रदेश में प्रशासन ने सड़क और चौराहों पर नमाज पढ़ने पर सख्ती बरती है। मेरठ में एडिशनल एसपी आयुष विक्रम सिंह ने चेतावनी दी कि सड़क पर नमाज पढ़ने वालों के खिलाफ कड़ा ऐक्शन होगा, जिसमें पासपोर्ट और लाइसेंस रद्द करना शामिल है। उन्होंने कहा, "आपराधिक रिकॉर्ड वाले लोगों के दस्तावेज़ जब्त होंगे, और कोर्ट से बरी होने तक वापस नहीं मिलेंगे।" संभल और बागपत में भी इसी तरह के निर्देश हैं, जहाँ पुलिस ने फ्लैग मार्च और ड्रोन निगरानी बढ़ा दी है।
इसके जवाब में AIMIM के दिल्ली अध्यक्ष शोएब जमई ने कहा कि "यह संभल या मेरठ नहीं, दिल्ली है—सबकी दिल्ली। यहाँ मस्जिद में जगह कम पड़े तो सड़क, ईदगाह और छतों पर भी नमाज होगी। कांवड़ यात्रा में सड़कें घंटों बंद रहती हैं, तो नमाज के 15 मिनट क्यों नहीं?" दिल्ली में बीजेपी विधायक करनैल सिंह और मोहन सिंह बिष्ट ने पुलिस कमिश्नर को पत्र लिखकर सड़क पर नमाज पर रोक की माँग की है, जिसे AAP ने "धर्म की राजनीति" करार दिया।
इफ्तार पार्टियों पर सियासी शोर
रमजान के दौरान इफ्तार पार्टियाँ भी राजनीति का अड्डा बनी हैं। नेता अपने हिसाब से इसमें शिरकत कर रहे हैं या आयोजन कर रहे हैं। हाल ही में व्हाइट हाउस में डोनाल्ड ट्रंप की इफ्तार पार्टी चर्चा में रही और भारत में भी ऐसे आयोजन सियासी संदेश दे रहे हैं। जयंत चौधरी जैसे नेताओं ने सड़क पर नमाज की रोक के फरमानों पर नाराज़गी जताई है, जिससे सत्ता पक्ष में भी मतभेद उभरे हैं।
रमजान और ईद पर राजनीति क्यों?
रमजान और ईद हमेशा से भारत में धूमधाम से मनाए जाते हैं, लेकिन इस बार वक्फ बिल, सड़क पर नमाज, और फूल बरसाने जैसे मुद्दों ने इसे सियासी रंग दे दिया। AIMPLB का विरोध, बीजेपी की सख्ती, और विपक्ष की माँगों ने इसे धर्म और वोट की जंग में बदल दिया है। कई शहरों में आज नमाज के लिए सुरक्षा कड़ी कर दी गई है, ताकि शांति बनी रहे।
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