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'शरबत जिहाद' के बाद अब 'धर्म बर्बादी', पतंजलि के ऐड से फ़िर मचा बबाल

'शरबत जिहाद' के बाद अब पतंजलि के नए विज्ञापन ने मचाया बवाल। 'पुराने शरबत' को बताया धर्म और धन की बर्बादी। जानिए पूरा विवाद।
10:54 AM Apr 13, 2025 IST | Rohit Agrawal

Patanjali Sharbat Controversy: योग गुरु बाबा रामदेव और उनकी कंपनी पतंजलि एक बार फिर विवादों के केंद्र में हैं। 'शरबत जिहाद' के बाद अब पतंजलि के एक नए विज्ञापन ने तूफान खड़ा कर दिया है, जिसमें 'पुराने ढर्रे वाले शरबत' को 'धन और धर्म की बर्बादी' बताया गया है। यह विज्ञापन देशभर के प्रमुख अखबारों में प्रकाशित हुआ है और सोशल मीडिया पर गर्म बहस का विषय बन गया है। आइए जानते हैं कि आखिर इस विज्ञापन में क्या है, जिसने एक बार फिर रामदेव को विवादों में धकेल दिया है।

पतंजलि के नए ऐड में क्या कहा गया?

पतंजलि के इस विज्ञापन में कंपनी ने अपने गुलाब शरबत, बेल शरबत, ब्राह्मी शरबत और अन्य आयुर्वेदिक पेय पदार्थों को प्रमोट किया है। विज्ञापन में लिखा गया है कि समस्त ऋषि, ऋषिकाओं के वंशधरों से आह्वान है कि अपनी दुकान की प्रमुख शेल्फ पर पतंजलि शरबत को सबसे आगे रखें। जब पतंजलि का क्षेष्ठतम गुलाब शरबत, मैंगो पन्ना, बेल शरबत, ब्राह्मी शरबत, खस शरबत और ठंडाई पाउडर आदि उपलब्ध हैं, तो फिर पुराने ढर्रे वाले शरबत पर धन और धर्म की बर्बादी क्यों?"

इसके साथ ही विज्ञापन में "सर्वधर्म और राष्ट्रधर्म सर्वोपरि" जैसे नारे भी शामिल किए गए हैं, जिससे इसे एक धार्मिक और राष्ट्रवादी रंग देने की कोशिश की गई है। विज्ञापन का संदेश साफ है कि पतंजलि के उत्पादों को खरीदकर लोग न सिर्फ अपने स्वास्थ्य का ध्यान रख सकते हैं, बल्कि देश और धर्म की भी सेवा कर सकते हैं।

'शरबत जिहाद' के अब कौन सा विवाद?

यह विज्ञापन उस समय आया है जब बाबा रामदेव पहले ही 'शरबत जिहाद' बयान को लेकर चर्चा में हैं। उन्होंने हाल ही में दावा किया था कि एक प्रसिद्ध शरबत ब्रांड (जिसे रूह अफजा समझा जा रहा है) अपनी कमाई का हिस्सा मस्जिदों और मदरसों के निर्माण में खर्च करता है। उन्होंने कहा था कि अगर आप वह शरबत पीते हैं, तो मदरसे और मस्जिद बनेंगे। लेकिन अगर आप पतंजलि का शरबत पीते हैं, तो गुरुकुल बनेंगे और भारतीय शिक्षा पद्धति का विकास होगा। इस बयान के बाद उनकी कड़ी आलोचना भी हुई तो कुछ लोगों ने तारीफ भी की और सोशल मीडिया पर #SharbatJihad ट्रेंड होने लगा। अब नए विज्ञापन में 'धर्म बर्बादी' जैसे शब्दों का इस्तेमाल करने से विवाद और गहरा गया है।

सोशल मीडिया पर सामने आईं मिली-जुली प्रतिक्रियाएं

इस विज्ञापन को लेकर सोशल मीडिया पर लोगों की प्रतिक्रियाएं विभाजित हैं। कुछ लोगों ने रामदेव के बयान का समर्थन करते हुए इसे "देशभक्ति" और "हिंदू धर्म की रक्षा" से जोड़ा है। वहीं, दूसरी ओर, कई लोगों ने इसे "इस्लामोफोबिया" और "मार्केटिंग की गंदी रणनीति" बताया है।

 

समर्थकों का तर्क: "रामदेव सही कह रहे हैं। हमें भारतीय उत्पादों को ही प्राथमिकता देनी चाहिए।"

आलोचकों का तर्क: "यह सिर्फ एक मार्केटिंग स्टंट है जो धर्म के नाम पर लोगों को बांटने की कोशिश कर रहा है।"

सुप्रीम कोर्ट की फटकार का साया

यह पहली बार नहीं है जब पतंजलि के विज्ञापनों को लेकर विवाद हुआ है। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने पतंजलि के भ्रामक विज्ञापनों पर कड़ी फटकार लगाई थी और कहा था कि कंपनी "जनता के साथ धोखा" कर रही है। कोर्ट ने यह भी पूछा था कि क्या पतंजलि का माफीनामा उतना ही बड़ा था जितना कि उसके विज्ञापन थे।

पतंजलि का नया ऐड मार्केटिंग या ध्रुवीकरण?

पतंजलि का यह नया विज्ञापन एक बार फिर उस रणनीति का हिस्सा लगता है जिसमें धर्म और राष्ट्रवाद को उत्पादों की मार्केटिंग से जोड़ा जाता है। हालांकि, इस तरह के विज्ञापन सिर्फ उत्पादों की बिक्री बढ़ाने तक सीमित नहीं रहते, बल्कि समाज में ध्रुवीकरण को भी बढ़ावा देते हैं। सवाल यह है कि क्या वाकई एक शरबत धर्म और राष्ट्र के लिए खतरा हो सकता है, या यह सिर्फ एक मार्केटिंग ट्रिक है जो विवाद पैदा करके ध्यान खींचना चाहती है? जब तक इस सवाल का जवाब नहीं मिलता, तब तक यह बहस जारी रहने वाली है।

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