समझिए क्या है शिमला समझौता, जिसे PAK रद्द करने की दे रहा धमकी, क्या होगा इसका भारत पर असर
जम्मू-कश्मीर के पहलगाम की बैसारन घाटी में हुए आतंकी हमले के बाद भारत सरकार ने पाकिस्तान के खिलाफ सख्त कदम उठाए हैं। इसके जवाब में अब पाकिस्तान ने भी अपनी ओर से कई फैसले लिए हैं।
पाकिस्तान ने वाघा बॉर्डर को बंद कर दिया है, साथ ही सार्क देशों के लिए वीजा सुविधा को भी रोक दिया गया है। इसके अलावा भारत के विमानों के लिए पाकिस्तान ने अपनी हवाई सीमा बंद कर दी है।
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ ने गुरुवार को जल्दी में नेशनल सिक्योरिटी कमेटी (NSC) की एक अहम बैठक बुलाई। इस बैठक में भारत को लेकर कई फैसले लिए गए। पाकिस्तान ने भारत पर अंतरराष्ट्रीय कानून और संयुक्त राष्ट्र के प्रस्तावों के उल्लंघन का आरोप लगाया है। साथ ही पाकिस्तान ने शिमला समझौते को भी सस्पेंड कर दिया है और कहा है कि वह भारत के साथ किए गए सभी द्विपक्षीय समझौतों को निलंबित करने का अधिकार अपने पास रखता है।
समझिये शिमला समझौते का इतिहास
साल 1971 में भारत और पाकिस्तान के बीच एक बड़ा युद्ध हुआ। ये लड़ाई पूर्वी पाकिस्तान को लेकर थी, जिसे हम आज बांग्लादेश के नाम से जानते हैं। उस समय पाकिस्तान की सेना ने पूर्वी पाकिस्तान में आम लोगों पर बहुत ज़ुल्म किए। हालात इतने बुरे हो गए कि वहां के लाखों लोग जान बचाकर भारत की सीमा में आ गए।
इन हालातों को देखते हुए भारत चुप नहीं बैठा। भारत ने पूर्वी पाकिस्तान की मदद के लिए सैनिक कार्रवाई शुरू कर दी। इसके बाद दोनों देशों के बीच ज़बरदस्त युद्ध छिड़ गया।
इस लड़ाई में भारतीय सेना ने ज़मीन, आसमान और पानी—तीनों जगहों पर पाकिस्तान को पीछे धकेल दिया। नतीजा ये हुआ कि पाकिस्तान के करीब 93,000 सैनिकों ने भारतीय सेना के सामने हथियार डाल दिए। ये युद्ध इतिहास में सबसे बड़े आत्मसमर्पणों में से एक माना जाता है।
भारत पूरी तरह से मज़बूत स्थिति में था, लेकिन उसने कुछ अलग ही रास्ता चुना। भारत ने युद्ध के बाद पाकिस्तान से बातचीत की पहल की और दोनों देश शिमला में एक समझौते पर पहुंचे।
क्या है शिमला समझौता और किसके बीच हुआ ये ?
2 जुलाई 1972 को भारत और पाकिस्तान के बीच एक अहम समझौता हुआ, जिसे शिमला समझौता कहा गया। ये समझौता भारत के शिमला शहर में साइन किया गया था। भारत की तरफ से उस वक्त की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और पाकिस्तान की तरफ से उस समय के राष्ट्रपति ज़ुल्फ़िकार अली भुट्टो ने इस पर हस्ताक्षर किए थे।
इस समझौते के लिए भुट्टो 28 जून 1972 को शिमला पहुंचे थे। उनके साथ उनकी बेटी बेनज़ीर भुट्टो भी थीं, जो आगे चलकर पाकिस्तान की प्रधानमंत्री बनीं। खास बात ये थी कि ज़ुल्फ़िकार अली भुट्टो वही नेता थे, जिन्होंने कभी कहा था कि अगर जरूरत पड़ी तो पाकिस्तान घास खाकर भी भारत से हजारों साल तक लड़ाई करेगा। लेकिन शिमला में जो मुलाकात हुई, उसका मकसद जंग के बाद की स्थिति को संभालना और आगे रिश्तों को सुधारने की कोशिश करना था।
शिमला समझौते के क्या है प्रावधान?
शिमला समझौते में भारत और पाकिस्तान के बीच कई अहम बातें तय हुई थीं, जो दोनों देशों के रिश्तों के लिए बहुत मायने रखती हैं। इनमें कुछ मुख्य बिंदु ये हैं:
- आपसी बातचीत से हल निकालना (द्विपक्षीयता)
भारत और पाकिस्तान ने तय किया कि अब से वे अपने सारे विवाद आपस में बैठकर सुलझाएंगे। इसका मतलब ये हुआ कि अब कोई तीसरा देश, जैसे संयुक्त राष्ट्र या अमेरिका, इन मामलों में दखल नहीं देगा। पाकिस्तान अकसर कश्मीर का मुद्दा अंतरराष्ट्रीय मंचों पर उठाता था, लेकिन इस समझौते के बाद ऐसा नहीं हो सका।
- हिंसा या युद्ध नहीं करेंगे
दोनों देशों ने यह वादा किया कि वे एक-दूसरे के खिलाफ न तो कोई हिंसक कदम उठाएंगे और न ही युद्ध छेड़ेंगे। सभी समस्याएं बातचीत और शांति के रास्ते सुलझाई जाएंगी।
- नई नियंत्रण रेखा तय हुई
1971 की जंग के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच जो स्थिति बनी, उसी के आधार पर एक नई 'नियंत्रण रेखा' यानी Line of Control (LoC) तय की गई। दोनों देशों ने इस रेखा को मान्यता दी, और आज भी यही रेखा दोनों देशों की सीमाओं को अलग करती है।
- कैदी और ज़मीन लौटाई गई
भारत ने 93,000 के करीब पाकिस्तानी सैनिकों को जो युद्ध के दौरान बंदी बनाए गए थे, बिना किसी शर्त के वापस भेज दिया। साथ ही, जो इलाके भारत ने युद्ध के समय कब्जा कर लिए थे, उसका एक बड़ा हिस्सा भी पाकिस्तान को लौटा दिया गया।
शिमला समझौते का समझें महत्व
शिमला समझौते में भारत ने ये तय करवा लिया कि कश्मीर का मुद्दा अब सिर्फ भारत और पाकिस्तान के बीच का मामला रहेगा। इसका मतलब ये था कि अब पाकिस्तान इस मामले में ना तो संयुक्त राष्ट्र और ना ही किसी तीसरे देश से मदद की उम्मीद कर सकता है।
एक तरफ पाकिस्तान को जंग में हार झेलनी पड़ी और उसके सैनिकों ने आत्मसमर्पण कर दिया, वहीं भारत ने इस पूरे मसले को बड़े शांतिपूर्ण और समझदारी से सुलझाने की कोशिश की। इससे दुनिया के सामने भारत की सोच और रुख का साफ संदेश गया।
कश्मीर और शिमला समझौता
शिमला समझौते का कश्मीर मुद्दे पर बड़ा असर पड़ा। पाकिस्तान कई बार इस मुद्दे को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर उठाने की कोशिश करता है, लेकिन शिमला समझौते के बाद ये तय हो गया कि ऐसे मसले सिर्फ भारत और पाकिस्तान के बीच आपसी बातचीत से ही सुलझाए जाएंगे। भारत इसी आधार पर कहता है कि कश्मीर कोई अंतरराष्ट्रीय मामला नहीं है।
हालांकि, 1948 में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने एक प्रस्ताव पास किया था जिसमें जनमत संग्रह की बात कही गई थी। लेकिन 1972 में हुए शिमला समझौते में पाकिस्तान ने खुद इस बात को माना कि अब सारे मुद्दे सिर्फ दो देशों के बीच बातचीत से हल होंगे। इसी वजह से भारत अब यूएन की भूमिका को जरूरी नहीं मानता।
शिमला संधि और पाकिस्तान का रवैया
पाकिस्तान ने भारत से एक ऐसा वादा किया था, जिसे न तो उसने कभी गंभीरता से लिया और न ही निभाया। शिमला समझौते में जो भरोसा जताया गया था, उसे पाकिस्तान ने कई बार तोड़ा।
इतिहास गवाह है कि पाकिस्तान ने कश्मीर जैसे भारत के अंदरूनी मुद्दे को बार-बार अंतरराष्ट्रीय मंचों पर उठाया—चाहे वो संयुक्त राष्ट्र हो या इस्लामी सहयोग संगठन (OIC)। लेकिन हर बार, पाकिस्तान के दावे झूठे साबित हुए।
सबसे बड़ा और ताजा उदाहरण 1999 का कारगिल युद्ध है। ये तब हुआ जब भारत और पाकिस्तान के रिश्ते सुधारने की कोशिशें चल रही थीं, जैसे लाहौर बस सेवा की शुरुआत। भारत ने दोस्ती का हाथ बढ़ाया था, लेकिन जवाब में पाकिस्तान ने कारगिल में घुसपैठ करके युद्ध छेड़ दिया। उस समय देश को पीठ पीछे वार का सामना करना पड़ा।
क्या पाकिस्तान इस समझौते को पूरी तरह रद्द भी कर सकता है?
2025 में पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद भारत ने पाकिस्तान के खिलाफ सख्त कूटनीतिक कदम उठाए। इसके जवाब में पाकिस्तान ने शिमला समझौते की बात करते हुए कहा कि वो भारत के साथ किए गए सभी समझौतों को फिलहाल के लिए स्थगित कर रहा है। पाकिस्तान का कहना है कि जब तक भारत संयुक्त राष्ट्र के प्रस्तावों और अंतरराष्ट्रीय कानूनों का पालन नहीं करता, तब तक ये स्थिति बनी रहेगी।
रक्षा मामलों के विशेषज्ञों के मुताबिक, तकनीकी रूप से कोई भी देश किसी भी समझौते से खुद को अलग कर सकता है। लेकिन ऐसा करने से उसकी अंतरराष्ट्रीय छवि और भरोसे पर असर पड़ता है। अगर पाकिस्तान शिमला समझौते को रद्द करता है, तो इसका मतलब ये माना जा सकता है कि अब कश्मीर पर आपसी बातचीत की कोई गुंजाइश नहीं बची। ऐसे में भारत भी साफ तौर पर कह सकता है कि अगर पाकिस्तान खुद को इस समझौते से अलग करता है, तो भारत पर भी किसी तरह की कोई बाध्यता नहीं रहेगी।
अगर पाकिस्तान शिमला समझौते को खत्म करता है, तो भारत और पाकिस्तान के बीच बातचीत पूरी तरह से रुक सकती है। इससे अंतरराष्ट्रीय मंचों पर दोनों देशों के बीच तनाव और बढ़ सकता है। शिमला समझौते में यह साफ कहा गया है कि दोनों देशों को लाइन ऑफ कंट्रोल (LoC) का सम्मान करना चाहिए। अगर यह समझौता नहीं रहेगा, तो LoC पर दोनों देशों की सेनाएं ज्यादा सख्त रवैया अपना सकती हैं। इससे सीमा पर टकराव की स्थिति बन सकती है और भविष्य में जब कभी कोई बड़ा झगड़ा या युद्ध जैसी हालत हो, तो उसे रोकने के लिए भरोसे की कमी महसूस हो सकती है।