पहलगाम आतंकी हमला: वो देश जो अपने परमाणु बम खुद ही तबाह कर गया, वजह जानकर दंग रह जाओगे!
जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में 22 अप्रैल को आतंकियों ने टूरिस्ट्स को निशाना बनाया। इस खौफनाक हमले में 26 से ज्यादा लोग मारे गए और कई घायल हो गए। पूरे देश में गुस्से का माहौल है। भारत सरकार ने पाकिस्तान के खिलाफ सख्त कदम उठाए हैं। इस हमले ने भारत-पाकिस्तान के बीच तनाव को और बढ़ा दिया है। ऐसे में परमाणु हथियारों की चर्चा भी जोरों पर है। लेकिन आज हम आपको एक ऐसे देश की कहानी सुनाने जा रहे हैं, जिसने अपने परमाणु हथियार खुद ही नष्ट कर दिए। आइए, जानते हैं क्या है ये पूरा माजरा।
पहलगाम में आतंकी हमले ने मचाया कोहराम
22 अप्रैल को पहलगाम में आतंकियों ने टूरिस्ट्स पर हमला बोल दिया। इस हमले में 26 से ज्यादा लोग अपनी जान गंवा बैठे। कई लोग घायल हुए, जिनका इलाज चल रहा है। ये हमला इतना भयानक था कि पूरे देश में गम और गुस्से की लहर दौड़ गई। भारत ने इसके लिए पाकिस्तान को जिम्मेदार ठहराया और सख्त एक्शन लेने की बात कही। इस हमले ने दोनों देशों के बीच तनाव को और गहरा कर दिया। लोग अब परमाणु हथियारों को लेकर भी चर्चा कर रहे हैं, क्योंकि दोनों देशों के पास ये खतरनाक हथियार हैं।
वो देश, जिसने अपने परमाणु बम नष्ट कर दिए
दुनिया में एक देश ऐसा भी है, जिसने चुपके-चुपके परमाणु बम बनाए और फिर खुद ही उन्हें तबाह कर दिया। ये देश है दक्षिण अफ्रीका। 24 मार्च 1993 को दक्षिण अफ्रीका के तत्कालीन राष्ट्रपति एफ. डब्ल्यू. डी क्लार्क ने दुनिया को बताया कि उनके देश ने गुप्त तरीके से छह परमाणु बम बनाए थे, लेकिन अब वो सब नष्ट कर दिए गए हैं। ये सुनकर पूरी दुनिया हैरान रह गई थी।
कैसे शुरू हुआ दक्षिण अफ्रीका का परमाणु प्रोग्राम?
बात 1948 की है, जब दक्षिण अफ्रीका ने एटॉमिक एनर्जी बोर्ड बनाया और परमाणु ऊर्जा पर काम शुरू किया। 1960 में प्रिटोरिया के पास पेलिंडाबा नाम की एक परमाणु रिसर्च फैसिलिटी बनाई गई। दक्षिण अफ्रीका के पास यूरेनियम की खदानें थीं, जिसकी वजह से परमाणु बम बनाना उनके लिए आसान था। 1974 में एक रिपोर्ट आई, जिसमें कहा गया कि दक्षिण अफ्रीका परमाणु बम बना सकता है। बस फिर क्या, सरकार ने एक सीक्रेट प्रोजेक्ट शुरू कर दिया।
1982 तक दक्षिण अफ्रीका ने अपना पहला परमाणु बम बना लिया। कुल मिलाकर छह बम बनाए गए, जिनकी ताकत हिरोशिमा और नागासाकी जैसे बमों जितनी थी। हालांकि, इन बमों का कोई टेस्ट नहीं किया गया, लेकिन एक्सपर्ट्स का मानना है कि ये बम पूरी तरह काम करने लायक थे।
आखिर क्यों नष्ट किए परमाणु हथियार?
अब सवाल ये कि दक्षिण अफ्रीका ने इतनी मेहनत से बनाए बमों को क्यों तबाह कर दिया? इसके पीछे कई वजहें थीं। सबसे पहले, अंतरराष्ट्रीय दबाव। 1978 में अमेरिका ने एक कानून पास किया, जिसके तहत उन देशों को परमाणु तकनीक नहीं दी जा सकती थी, जो न्यूक्लियर नॉन-प्रोलिफरेशन ट्रीटी (एनपीटी) का हिस्सा नहीं थे। दक्षिण अफ्रीका इस ट्रीटी का हिस्सा नहीं था, तो उसे अमेरिका से कोई मदद नहीं मिली।
शीत युद्ध के दौरान दुनिया दो खेमों में बंटी थी- अमेरिका और सोवियत संघ। लेकिन दक्षिण अफ्रीका को इन दोनों में से किसी का भी साथ नहीं मिला। 1977 में जब दक्षिण अफ्रीका भूमिगत परमाणु टेस्ट की तैयारी कर रहा था, तब अमेरिका और सोवियत संघ ने मिलकर उसे रोक दिया। इसके अलावा, दक्षिण अफ्रीका की रंगभेद नीति की वजह से भी वो दुनिया में अलग-थलग पड़ गया था। उस पर हथियार खरीदने की पाबंदी थी, और हमले की सूरत में उसे कोई विदेशी मदद नहीं मिल सकती थी।
डी क्लार्क ने लिया बड़ा फैसला
1989 में जब एफ. डब्ल्यू. डी क्लार्क सत्ता में आए, तो उन्होंने परमाणु प्रोग्राम को बंद करने का फैसला लिया। बने हुए बमों को नष्ट किया गया, परमाणु प्लांट्स को बंद कर दिया गया, और उन्हें इस तरह बदला गया कि दोबारा बम न बनाए जा सकें। साथ ही, दक्षिण अफ्रीका ने एनपीटी जॉइन करने की प्रक्रिया शुरू की। इसके अलावा, देश में रंगभेद नीति को भी खत्म किया गया, जिससे उसकी अंतरराष्ट्रीय साख सुधरी।
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