पहलगाम अटैक: हमला नया साजिश वही पुरानी! जानिए कब-कब कश्मीर की पीठ में उतारा गया 'नफरत का खंजर'?
22 अप्रैल 2025 को पहलगाम की बैसरन घाटी में आतंकियों ने 28 पर्यटकों की गोलियों से भूनकर जान ले ली। लश्कर-ए-तैयबा की शाखा द रेसिस्टेंस फ्रंट (TRF) ने इस नरसंहार की जिम्मेदारी ली, जिसमें खासकर हिंदुओं को निशाना बनाया गया। यह हमला कश्मीर में शांति और पर्यटन की बहार के बीच पाकिस्तान की बौखलाहट का सबूत है। आजादी के बाद से पाकिस्तान ने कश्मीर को भारत से छीनने के लिए युद्ध, घुसपैठ और आतंक का सहारा लिया, लेकिन हर बार मुंह की खाई। फिर भी, उसकी नापाक साजिशें थमने का नाम नहीं ले रही हैं। आइए, जानें कैसे पाकिस्तान ने कश्मीर को बार-बार खून से रंगा।
1.1947: कबाइली हमला कर दिया भारत को पहला घाव
1947 में भारत की आजादी के बाद कश्मीर के महाराजा हरी सिंह ने भारत में विलय का फैसला किया। लेकिन पाकिस्तान ने इसे स्वीकार नहीं किया। उसने कबाइली लड़ाकों को हथियार देकर कश्मीर पर हमला करवाया। पाकिस्तानी सेना की शह पर ये हमलावर श्रीनगर तक पहुंच गए।
भारत ने सेना भेजकर हमला रोका, लेकिन तत्कालीन PM जवाहरलाल नेहरू ने UN में अपील की, जिससे युद्धविराम हुआ। नतीजा यह हुआ कि कश्मीर का एक हिस्सा (PoK) पाकिस्तान के कब्जे में चला गया। यह था पाकिस्तान का पहला खंजर।
2.1965 में जिब्राल्टर नाम से छेड़ा युद्ध
1965 में पाकिस्तान ने ‘ऑपरेशन जिब्राल्टर’ के तहत घुसपैठिए भेजे और युद्ध छेड़ा, लेकिन भारतीय सेना ने उसे तगड़ी धूल चटाई। ताशकंद समझौते ने जंग रोकी, पर पाकिस्तान सुधरा नहीं। 1971 में बांग्लादेश युद्ध में भारत ने पाकिस्तान को घुटनों पर ला दिया। 93,000 पाक सैनिकों ने सरेंडर किया, लेकिन कश्मीर पर उसकी नजर टिकी रही।
1999 का कारगिल युद्ध भी पाकिस्तान की हार के साथ खत्म हुआ। हर बार युद्ध में मात खाने के बावजूद पाकिस्तान ने आतंक का रास्ता चुना।
3.1980 का दशक: आतंक को बनाया नया हथियार
युद्ध में हारने के बाद पाकिस्तान ने रणनीति बदली। उसने कश्मीर में आतंकवाद को हथियार बनाया। 1980 के दशक में पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी ISI ने स्थानीय नौजवानों को धर्म और पैसे का लालच देकर भड़काया। उन्हें PoK में ट्रेनिंग दी और हथियारों के साथ घाटी में उतारा।
1987 के जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव में धांधली ने आग में घी डाला। नेशनल कॉन्फ्रेंस और कांग्रेस की साठगांठ ने युवाओं का भरोसा तोड़ा, जिसका फायदा अलगाववादियों ने उठाया। 1989 तक घाटी सुलग उठी।
4.1989-90: कश्मीर में रुबिया अपहरण से लेकर पंडितों का पलायन
1989 में आतंक ने कश्मीर को दहला दिया। 8 दिसंबर 1989 को तत्कालीन गृह मंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद की बेटी रुबिया सईद का अपहरण हुआ। केंद्र सरकार ने पांच आतंकियों को रिहा कर रुबिया को छुड़ाया, लेकिन इससे आतंकियों के हौसले बुलंद हो गए।
1990 में कश्मीरी पंडितों को घाटी छोड़ने का फरमान मिला। मस्जिदों से ऐलान हुए, “रलिव, गलिव या चलिव” (मिल जाओ, मर जाओ या भाग जाओ)। नतीजा यह हुआ कि लाखों पंडितों को अपनी जमीन छोड़नी पड़ी। यह पाकिस्तान प्रायोजित आतंक का सबसे काला अध्याय था।
5.धारा 370 हटने के बाद: पाकिस्तान की बढ़ती बेचैनी
5 अगस्त 2019 को मोदी सरकार ने धारा 370 और 35A खत्म कर कश्मीर को भारत का अभिन्न अंग बनाया। जम्मू-कश्मीर को दो केंद्र शासित प्रदेशों में बांटा गया। आतंकवाद पर सख्ती और विकास योजनाओं ने घाटी का माहौल बदला।
बता दें कि 2024 में 2.36 करोड़ पर्यटक कश्मीर पहुंचे। आतंकी घटनाएं 66%, नागरिक हत्याएं 81%, और सुरक्षा बलों का नुकसान 48% कम हुआ। 2024 के विधानसभा चुनाव में रिकॉर्ड वोटिंग ने दिखाया कि कश्मीरी मुख्यधारा में जुड़ रहे हैं। यह सब पाकिस्तान को रास नहीं आया।
पहलगाम नरसंहार के रूप में दिया ताज़ा घाव
बता दें कि पहलगाम हमला कुछ और नहीं बल्कि पाकिस्तान की हताशा का नतीजा है। TRF ने पर्यटकों को निशाना बनाकर कश्मीर की शांति और पर्यटन को चोट पहुंचाने की कोशिश की। आतंकियों ने धार्मिक पहचान के आधार पर हिंदुओं को मारा, जो पाकिस्तान की पुरानी रणनीति है।
खुफिया सूत्रों के मुताबिक, हमलावरों के डिजिटल निशान मुजफ्फराबाद और कराची के सुरक्षित ठिकानों तक जाते हैं। यह हमला कश्मीर की प्रगति और भारत की ताकत से बौखलाए पाकिस्तान का जवाब है।
हर बार खाई मुंह की लेकिन सुधरने का नाम नहीं
पाकिस्तान की हर साजिश के जवाब में भारत ने ताकत और रणनीति दिखाई। 2016 की सर्जिकल स्ट्राइक और 2019 के बालाकोट हमले ने आतंकी ठिकानों को तबाह किया। इस बार पहलगाम हमले के बाद भारत ने सिंधु जल संधि रोकी, अटारी बॉर्डर बंद किया, और पाकिस्तानी वीजा रद्द किए। कश्मीर की जनता अब हिंसा नहीं, शांति और तरक्की चाहती है। पाकिस्तान का आतंक अब आखिरी सांसें ले रहा है, लेकिन भारत का संकल्प अटल है कि आतंक का खात्मा और कश्मीर का विकास।
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