पहलगाम हमले के बाद बदला सियासी मिज़ाज: विपक्ष सरकार के साथ, नहीं दोहराई पुरानी भूल
पहलगाम आतंकी हमले ने एक बार फिर देश को हिला कर रख दिया है। जनता गुस्से में है और एक बार फिर मोदी सरकार से कड़ा जवाब चाहती है। लेकिन इस बार कुछ अलग देखने को मिल रहा है—विपक्ष, जो आमतौर पर सरकार के हर कदम पर सवाल उठाता है, इस बार पूरी तरह साथ खड़ा है। न कोई सियासी बयानबाज़ी, न कोई टकराव। सिर्फ एक सुर—"देश पहले!"
प्रधानमंत्री ने दिया भरोसा, “हर अपेक्षा पर खरा उतरेंगे”
बिहार के मधुबनी में हुई जनसभा में जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पहली बार इस हमले पर सार्वजनिक बयान दिया, तो उनका लहजा सख्त था लेकिन संतुलित भी। उन्होंने साफ-साफ कहा कि देश की उम्मीदें पूरी होंगी और सरकार हर जरूरी कदम उठाने को तैयार है। यह भाषण न सिर्फ देश को भरोसा देने वाला था, बल्कि यह भी दिखाता है कि सरकार कूटनीति और सैन्य कार्रवाई—दोनों विकल्पों पर गंभीरता से विचार कर रही है।
2016-2019: जब राष्ट्रवाद बना था चुनावी धुरी
2016 में उड़ी हमले के बाद भारत की सर्जिकल स्ट्राइक और 2019 में पुलवामा हमले के बाद बालाकोट एयर स्ट्राइक ने भारतीय राजनीति को एक नए राष्ट्रवाद की दिशा दी। "घर में घुसकर मारेंगे"—यह नारा उस समय का प्रतीक बन गया। इस बदले की भावना ने बीजेपी को न सिर्फ चुनावी बढ़त दी बल्कि प्रधानमंत्री मोदी को एक निर्णायक नेता के रूप में स्थापित किया।
गलवान के बाद और मजबूत हुई छवि
लद्दाख की गलवान घाटी में चीन से टकराव ने भी मोदी सरकार की छवि को मजबूती दी। ये सारी घटनाएं उस भारत की तस्वीर पेश करती हैं जो अब कमजोर नहीं है, जवाब देना जानता है। यही कारण है कि इस बार भी सरकार से उसी दृढ़ता की अपेक्षा की जा रही है। लेकिन युद्ध जैसी स्थिति में कोई फैसला जल्दबाज़ी में नहीं लिया जाएगा—सरकारी सूत्रों की मानें तो रणनीति पूरी तरह व्यावहारिक सोच के साथ बनाई जा रही है।
विपक्ष इस बार संभलकर—साथ में, विरोध नहीं
जहां पहले विपक्षी दल सरकार के खिलाफ बयान देकर खुद नुकसान में आ जाते थे, वहीं इस बार उन्होंने परिपक्वता दिखाई है। कांग्रेस ने CWC (कांग्रेस वर्किंग कमेटी) की बैठक कर आधिकारिक तौर पर सरकार को हर एक्शन में समर्थन देने की बात कही। सूत्रों के अनुसार, विपक्ष के अन्य दलों को भी स्पष्ट निर्देश दिए गए हैं कि कोई भी गैरजिम्मेदार बयान नहीं दिया जाए, जिससे सेना या देश की छवि पर असर पड़े। 2016 और 2019 की घटनाओं में विपक्ष की आलोचना के चलते उन्हें राजनीतिक नुकसान उठाना पड़ा था। इस बार वे वैसी गलती नहीं दोहरा रहे।
राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दे पर एकजुट हुआ भारत
पहलगाम का हमला भले ही आतंकी मंसूबों की निशानी हो, लेकिन इसका एक असर ये भी हुआ है कि देश की राजनीति में इस बार एकता दिखी है। सत्ता और विपक्ष दोनों ने एक ही आवाज़ में कहा है—"देश पहले!" अब सबकी निगाहें सरकार के अगले कदम पर हैं, और पूरा देश साथ खड़ा है।
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