उमर अब्दुल्ला ने कहा, ‘हम कभी सिंधु जल संधि के पक्ष में नहीं थे...’
जम्मू-कश्मीर में हुए पहलगाम आतंकी हमले के बाद जब भारत सरकार ने पाकिस्तान के खिलाफ सख्त कदम उठाते हुए सिंधु जल संधि को स्थगित करने का फैसला लिया, तो पूरे देश में इसकी जोरदार चर्चा शुरू हो गई। लेकिन इस बीच पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला का बयान नई बहस को जन्म दे गया है। उनका कहना है कि ये संधि जम्मू-कश्मीर के लोगों के साथ सबसे बड़ा अन्याय रही है।
"हम कभी सिंधु जल संधि के पक्ष में नहीं थे" – उमर का बयान
श्रीनगर में पर्यटन, व्यापार और उद्योग जगत के प्रतिनिधियों से मुलाकात के बाद मीडिया से बातचीत में उमर अब्दुल्ला ने दो टूक कहा, “सच कहूं तो जम्मू-कश्मीर ने कभी सिंधु जल समझौते का समर्थन नहीं किया। यह दस्तावेज कश्मीरियों के हक़ को छीनने वाला है।” उन्होंने कहा कि अब जबकि केंद्र सरकार ने इसे निलंबित किया है, तो ये हमारे लिए कोई नुकसान नहीं, बल्कि राहत जैसा है।
भारत सरकार की सख्ती – पाकिस्तान को दिया करारा जवाब
22 अप्रैल को पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद जब पाकिस्तान से जुड़ा लिंक सामने आया, तो भारत ने कड़ा रुख अपनाते हुए कई सख्त निर्णय लिए। इनमें सिंधु जल संधि स्थगित करना, सभी पाकिस्तानी नागरिकों को 48 घंटे में भारत छोड़ने का आदेश देने सहित सभी पाकिस्तानी वीजा तत्काल रद्द करना शामिल नहीं है। भारत सरकार के इस फैसले को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी बड़ी रणनीतिक प्रतिक्रिया माना जा रहा है।
सैयद आदिल हुसैन की तारीफ की
उमर अब्दुल्ला ने इस दौरान पहलगाम हमले के हीरो बने टट्टूवाले सैयद आदिल हुसैन शाह की भी खुलकर तारीफ की। उन्होंने कहा, "वो सिर्फ एक बहादुर कश्मीरी नहीं, बल्कि असली ‘कश्मीरियत’ और मेहमाननवाज़ी की मिसाल हैं।" उन्होंने यह भी कहा कि आदिल जैसे लोगों को सम्मान देना सिर्फ एक रस्म नहीं, हमारी जिम्मेदारी है।
सिंधु जल संधि: जम्मू-कश्मीर के लिए लाभ या नुकसान?
1960 में भारत और पाकिस्तान के बीच हुई यह संधि भले ही दो देशों के जल बंटवारे का एक समझौता थी, लेकिन जम्मू-कश्मीर के बहुत से नेताओं और जानकारों का मानना है कि इसने राज्य के संसाधनों को सीमित कर दिया। खासतौर पर सिंचाई और हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट्स को लेकर राज्य को हमेशा मुश्किलों का सामना करना पड़ा।
क्या अब बदलेंगे हालात?
भारत का सख्त रवैया और जम्मू-कश्मीर के नेताओं की प्रतिक्रिया यह साफ कर रही है कि अब सिर्फ आतंकी नहीं, आतंक के हर साझेदार को जवाब मिलेगा। उमर अब्दुल्ला के बयान से यह भी संकेत मिलता है कि आने वाले समय में जम्मू-कश्मीर में संसाधनों और अधिकारों को लेकर नई बहस तेज हो सकती है।
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