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निशिकांत दुबे का बड़ा बयान, ‘अगर कानून कोर्ट ही बनाएगा, तो संसद का क्या काम?’

उनका यह बयान ऐसे समय आया है जब वक्फ कानून और पॉकेट वीटो के मुद्दे पर कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका के बीच शक्ति संतुलन को लेकर बहस तेज हो गई है।
01:54 PM Apr 19, 2025 IST | Sunil Sharma

देश में वक्फ संशोधन कानून और पॉकेट वीटो को लेकर चल रही बहस के बीच बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे का बयान चर्चा में आ गया है। उन्होंने सवाल उठाया है कि अगर कानून बनाना सुप्रीम कोर्ट का ही काम रह गया है, तो फिर संसद भवन को बंद कर देना चाहिए। संसद में पारित हो रहे कानूनों के खिलाफ लगातार सुप्रीम कोर्ट में हो रही कार्रवाई के चलते कोर्ट नेताओं के निशाने पर आ चुका है।

यह बोले निशिकांत दुबे

झारखंड के गोड्डा से बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे ने एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर एक तीखा पोस्ट शेयर किया। उन्होंने लिखा, "अगर कानून सुप्रीम कोर्ट ही बनाएगा, तो संसद भवन को ताला लगा देना चाहिए।" उनका यह बयान ऐसे समय आया है जब वक्फ कानून और पॉकेट वीटो के मुद्दे पर कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका के बीच शक्ति संतुलन को लेकर बहस तेज हो गई है।

वक्फ कानून पर बढ़ा टकराव

सुप्रीम कोर्ट में वक्फ अधिनियम को लेकर सुनवाई चल रही है। केंद्र सरकार ने कोर्ट से अपील की कि कोई भी अंतरिम आदेश पारित करने से पहले उसकी दलीलें सुनी जाएं। कोर्ट ने फिलहाल कोई फैसला नहीं सुनाया, लेकिन वक्फ बोर्ड में गैर-मुस्लिमों की एंट्री और ‘वक्फ बाय यूजर’ से जुड़ी संपत्तियों में बदलाव पर रोक लगा दी है। पूर्व में वक्फ कानून पर बनी जेपीसी (संयुक्त संसदीय समिति) के अध्यक्ष जगदंबिका पाल ने भी साफ शब्दों में कहा कि यदि कानून में कोई गलती निकली, तो वे अपने सांसद पद से इस्तीफा दे देंगे।

पॉकेट वीटो मामले पर भी कोर्ट और केंद्र आए आमने-सामने

तमिलनाडु विधानसभा द्वारा पारित 10 विधेयकों को राज्यपाल आर. एन. रवि ने वर्षों तक मंजूरी नहीं दी। इसे लेकर सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में फैसला सुनाया कि राष्ट्रपति या राज्यपाल को तीन महीने के भीतर विधेयकों पर निर्णय लेना होगा। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट कर दिया कि ‘पॉकेट वीटो’ यानी किसी बिल को अनिश्चितकाल तक रोककर रखने का कोई संवैधानिक अधिकार राज्यपाल को नहीं है। इसके जवाब में केंद्र सरकार कोर्ट के फैसले से असहमति जताते हुए पुनर्विचार याचिका दाखिल करने की तैयारी में है। केंद्र का मानना है कि ऐसी समय-सीमा तय करने से संवैधानिक संतुलन और राज्यों की स्वायत्तता पर असर पड़ेगा।

क्यों उठ रहा है 'कौन बनाएगा कानून' का सवाल?

केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू पहले ही कह चुके हैं कि न्यायपालिका को विधायी मामलों से दूर रहना चाहिए। उनका कहना है, “हमें एक-दूसरे की भूमिका का सम्मान करना चाहिए। अगर सरकार न्यायपालिका में दखल देती है, तो वह भी गलत होगा।” सांसद निशिकांत दुबे के बयान को इसी संदर्भ में देखा जा रहा है कि अब संसद बनाम सुप्रीम कोर्ट की स्थिति बनती नजर आ रही है। सवाल ये है कि कानून बनाने की प्रक्रिया का असली केंद्र विधायिका होगी या अदालत?

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