मुर्शिदाबाद हिंसा में महिलाओं ने सुनाई आपबीती तो अबू आजमी ने भाजपा पर ही लगा दिया दंगे का आरोप
Murshidabad Violence: पश्चिम बंगाल का मुर्शिदाबाद जिला इन दिनों एक बार फिर सुर्खियों में है। वक्फ कानून को लेकर हुए विरोध प्रदर्शन ने देखते ही देखते हिंसा का रूप ले लिया, जिसमें तीन लोगों की जान चली गई और सैकड़ों लोग अपने घरों से पलायन करने को मजबूर हो गए। लेकिन असली सवाल ये है कि ये सब अचानक हुआ या इसके पीछे कोई सोची-समझी रणनीति थी?
मुर्शिदाबाद हिंसा पर अबू आजमी के बिगड़े बोल
वक्फ कानून के विरोध में हो रहे इन प्रदर्शनों के चलते जहां एक तरफ हिंदू समुदाय मुस्लिमों के निशाने पर आ गया है तो वहीं दूसरी ओर देश के बड़े मुस्लिम नेता हिंदुओं के विरुद्ध हो रही हिंसा और उनके पलायन का आरोप भी भाजपा पर ही लगा रहे हैं। अब इसी क्रम में समाजवादी पार्टी के नेता और विधायक अबू आज़मी ने बड़ा बयान देते हुए बवाल खड़ा कर दिया है। उन्होंने कहा कि हिंदू समुदाय का पलायन स्वाभाविक नहीं, बल्कि सुनियोजित है—और इसके पीछे बीजेपी का हाथ है।
अबू आज़मी ने कहा, "पलायन बीजेपी की स्क्रिप्ट का हिस्सा है"
अबू आज़मी ने साफ कहा कि मुर्शिदाबाद में हिंदू समुदाय स्वेच्छा से नहीं, बल्कि राजनीतिक भय और उकसावे की वजह से पलायन कर रहा है। उनके अनुसार, "बीजेपी एक ऐसा माहौल बनाना चाहती है जिसमें राष्ट्रपति शासन लागू करने का रास्ता साफ हो जाए।" उनका दावा है कि प्रदर्शन तो शांतिपूर्ण थे, लेकिन हालात को हिंसक मोड़ देने का प्रयास किया गया। “जनरल डायर के जमाने से लेकर आज तक, एक ही स्क्रिप्ट चल रही है—पहले विरोध, फिर हिंसा और फिर सुरक्षा के नाम पर दमन,” उन्होंने कहा।
हिंसा के बाद लोग गांव छोड़ने को मजबूर लोग, लेकिन फिर भी उम्मीद बाकी
मुर्शिदाबाद हिंसा के बाद गांव के लोग प्रताड़ित और परेशान होकर घर छोड़कर जा रहे हैं। यहां के कुछ परिवार खुद को बचाने के लिए मालदा की ओर भागे। ऐसी ही एक पीड़ित महिला सप्तमी मंडल, जिनकी गोद में एक आठ साल की बच्ची है, ने बताया कि कैसे उनके घर पर पत्थरबाज़ी की गई और पड़ोसी के घर में आग लगा दी गई। डर के मारे वे नदी पार करके किसी तरह जान बचाकर भागे।
दंगा पीड़ित बोले, "हम अपनी ही ज़मीन पर बेघर हो गए"
सप्तमी और उनके परिवार की कहानी उन 400 से ज्यादा लोगों की है, जो अब अस्थायी रूप से स्कूलों में रह रहे हैं। उनके पास ना कपड़े हैं, ना सामान, सिर्फ बदन पर पहने हुए कपड़े और आंखों में डर है। सप्तमी की मां महेश्वरी मंडल बताती है, "हम अपनी ही ज़मीन पर बेघर हो गए हैं। हम शरणार्थी बन गए हैं।" उनके साथ ही कई अन्य परिवार भी हैं जो इन दंगों में अपने किसी एक या अधिक परिजनों को खो चुके हैं और अपनी जान बचाने की लड़ाई लड़ रहे हैं।
पुलिस ने किया दावा, हालात नियंत्रण में हैं
स्थानीय पुलिस और प्रशासन का कहना है कि हालात पर काबू पा लिया गया है। अब तक 200 से ज्यादा लोगों को गिरफ्तार किया गया है और सुरक्षा बल पूरे क्षेत्र में गश्त कर रहे हैं। कुछ लोगों को पुलिस सुरक्षा में वापस उनके गांव भी पहुंचाया गया है। लेकिन जिन परिवारों ने डर के साए में अपना घर छोड़ा है, वे अभी भी डरे हुए हैं। उन्हें यकीन नहीं है कि वे फिर कभी उसी भरोसे के साथ अपने गांव लौट पाएंगे या नहीं।
क्या सच में सियासी स्क्रिप्ट है इन दंगों के पीछे
मुर्शिदाबाद में जो कुछ हुआ, वो सिर्फ एक स्थानीय घटना नहीं, बल्कि एक बड़ा राजनीतिक और सामाजिक सवाल बन गया है। क्या ये वास्तव में एक धार्मिक पलायन था? या फिर इसके पीछे कोई सियासी स्क्रिप्ट काम कर रही है? इस पर भी अबू आज़मी के बयान ने आग में घी डालने का काम किया है, और इस पूरी घटना ने एक बार फिर दिखा दिया कि राजनीति किस तरह आम जनता के डर और तकलीफ को अपनी रणनीति का हिस्सा बना लेती है।
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